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Vishnu Chalisa: विष्णु चालीसा Lyrics, PDF in Hindi

  • भारतीय धार्मिक साहित्य के अमूल्य रत्न में से एक विष्णु चालीसा एक ऐसी अनूठी और संपूर्ण गाथा है जो भगवान विष्णु के प्रति श्रद्धा और भक्ति का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करती है। Vishnu Chalisa in Hindi Lyrics PDF (विष्णु चालीसा) पवित्र हनुमान चालीसा की तरह चालीस चौपाईयों से बनी हुई है और हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए आध्यात्मिक आविर्भाव का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। विष्णु चालीसा के रहस्यमयी विश्व को विस्तार से समझने का प्रयास करेंगे।

 

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विष्णु चालीसा lyrics का मूल्य और महत्व

  • विष्णु चालीसा (Vishnu Chalisa Hindi) को हिंदी संस्कृति में एक प्राचीन आध्यात्मिक ग्रंथ के रूप में गर्व से संज्ञान किया जाता है। इसे भगवान विष्णु के सानिध्य में अवगत होने का एक साधन माना जाता है जो भक्तों को सबल और शक्तिशाली बनाता है। यह चालीसा उन समयों में लोकप्रिय थी जब लोग भगवान विष्णु के असीम प्रेम और भक्ति का अनुसरण करते थे जिन्हें वे अपने जीवन का अंश बनाना चाहते थे।

 

 

विष्णु चालीसा के पाठ की महिमा

  • विष्णु चालीसा lyrics का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में अनेक आध्यात्मिक और दैवीय लाभ होते हैं। इस चालीसा के पाठ से व्यक्ति का मन शुद्ध होता है और वह भगवान विष्णु के चरणों में अपने सभी कष्टों और व्यथाओं को सुपुर्द करता है।
  • दिव्य आशीर्वाद – इसका नियमित पाठ भगवान विष्णु के दिव्य आशीर्वाद को आमंत्रित करता है। भक्तों का मानना है कि भगवान विष्णु उन्हें अपने अनंत कृपा से आभूषित करते हैं और उनकी रक्षा करते हैं।
  • आंतरिक शांति – इस के सुरीले गान का प्रयोग आंतरिक शांति का सृजन करता है। इसका पाठ मन को शांत और स्थिर बनाता है जिससे व्यक्ति अपने जीवन की चुनौतियों को सहजता से निभा सकता है।
  • भय और नकारात्मकता का नाश –  इस के पाठ से नकारात्मकता का नाश होता है और व्यक्ति के जीवन से भय का साया उतर जाता है। भगवान विष्णु की कृपा से व्यक्ति शक्तिहीनता को भी सामना कर सकता है।
  • आध्यात्मिक उन्नति – इसके नियमित पाठ से व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास होता है। इसके पाठ से व्यक्ति की चिंताएं दूर होती हैं और उसकी मन की गहराईयों तक पहुंच जाती है।
  • सम्पूर्णता की प्राप्ति –  इस के पाठ से व्यक्ति को आत्मिक संपूर्णता की प्राप्ति होती है। इससे व्यक्ति का मन, शरीर और आत्मा संतुलित हो जाते हैं।

 

 

 

Shri Vishnu Chalisa in Hindi | Vishnu Chalisa hindi mai

श्री विष्णु चालीसा

।दोहा।।

विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय ।
कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय ॥

 

 

।।चौपाई।।

नमो विष्णु भगवान खरारी,कष्ट नशावन अखिल बिहारी ।
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी,त्रिभुवन फैल रही उजियारी ॥

सुन्दर रूप मनोहर सूरत,सरल स्वभाव मोहनी मूरत ।
तन पर पीताम्बर अति सोहत,बैजन्ती माला मन मोहत ॥

शंख चक्र कर गदा बिराजे,देखत दैत्य असुर दल भाजे ।
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे,काम क्रोध मद लोभ न छाजे ॥

सन्तभक्त सज्जन मनरंजन,दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ।
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन,दोष मिटाय करत जन सज्जन ॥

 

 

पाप काट भव सिन्धु उतारण,कष्ट नाशकर भक्त उबारण ।
करत अनेक रूप प्रभु धारण,केवल आप भक्ति के कारण ॥

धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा,तब तुम रूप राम का धारा ।
भार उतार असुर दल मारा,रावण आदिक को संहारा ॥

आप वाराह रूप बनाया,हरण्याक्ष को मार गिराया ।
धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया,चौदह रतनन को निकलाया ॥

अमिलख असुरन द्वन्द मचाया,रूप मोहनी आप दिखाया ।
देवन को अमृत पान कराया,असुरन को छवि से बहलाया ॥

कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया,मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया ।
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया,भस्मासुर को रूप दिखाया ॥

 

 

वेदन को जब असुर डुबाया,कर प्रबन्ध उन्हें ढुढवाया ।
मोहित बनकर खलहि नचाया,उसही कर से भस्म कराया ॥

असुर जलन्धर अति बलदाई,शंकर से उन कीन्ह लडाई ।
हार पार शिव सकल बनाई,कीन सती से छल खल जाई ॥

सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी,बतलाई सब विपत कहानी ।
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी,वृन्दा की सब सुरति भुलानी ॥

देखत तीन दनुज शैतानी,वृन्दा आय तुम्हें लपटानी ।
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी,हना असुर उर शिव शैतानी ॥

तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे,हिरणाकुश आदिक खल मारे ।
गणिका और अजामिल तारे,बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे ॥

 

 

हरहु सकल संताप हमारे,कृपा करहु हरि सिरजन हारे ।
देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे,दीन बन्धु भक्तन हितकारे ॥

चहत आपका सेवक दर्शन,करहु दया अपनी मधुसूदन ।
जानूं नहीं योग्य जब पूजन,होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन ॥

शीलदया सन्तोष सुलक्षण,विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण ।
करहुं आपका किस विधि पूजन,कुमति विलोक होत दुख भीषण ॥

करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण,कौन भांति मैं करहु समर्पण ।
सुर मुनि करत सदा सेवकाई हर्षित रहत परम गति पाई ॥

 

 

दीन दुखिन पर सदा सहाई,निज जन जान लेव अपनाई ।
पाप दोष संताप नशाओ,भव बन्धन से मुक्त कराओ ॥

सुत सम्पति दे सुख उपजाओ,निज चरनन का दास बनाओ ।
निगम सदा ये विनय सुनावै,पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै ॥

।। दोहा ।।

भक्त हृदय में वास करें पूर्ण कीजिये काज ।
शंख चक्र और गदा पद्म हे विष्णु महाराज ॥

 

  • विष्णु चालीसा lyrics (Vishnu Chalisa in Hindi Lyrics) हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक ग्रंथ है, जो भगवान विष्णु के प्रति भक्ति और समर्पण की अद्भुत उच्चकोटि की प्रशंसा करता है। इसे पाठ करने से व्यक्ति को आंतरिक शांति, दिव्य आशीर्वाद, और आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति होती है। विष्णु चालीसा व्यक्ति को भगवान विष्णु के दिव्य सानिध्य में ले जाता है और उसे अपने जीवन की हर परेशानी से निपटने की शक्ति प्रदान करता है। इस पवित्र चालीसा की आराधना करने से व्यक्ति आध्यात्मिक और भावनात्मक रूप से संपन्न होता है और उसका मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य सुधरता है।
  • विष्णु चालीसा (Vishnu Chalisa Hindi) एक पवित्र धार्मिक ग्रंथ है, इसे श्रद्धा और भक्ति से पढ़ना चाहिए।

 

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Shri Vishnu Chalisa Lyrics & PDF

  • Vishnu Chalisa belongs to Lord Vishnu. Devotees pray for Shri Vishnu Chalisa Lyrics PDF every day. The Vishnu Chalisa transcends the boundaries of ink and paper, coming alive when reverently recited or melodiously sung. His divine presence is often depicted with four arms, each holding symbolic objects such as the conch shell, discus, mace, and lotus.
  • Lord Vishnu also known as Narayana and Hari. Devotees are praised by Lord Vishnu for reading Shri Vishnu Chalisa Lyrics PDF. Every verse of the Vishnu Chalisa beautifully weaves an artistic tapestry of love and adoration, dedicated to the worship of Lord Vishnu. The hymn exalts his divine attributes, celestial form, and the sacred avatars that grace the earthly realm, safeguarding righteousness and triumphing over malevolence.

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Shri Vishnu Chalisa in English

॥ Doha॥

Vishnu Suniye Vinay, Sevak Ki Chitalaay ।
Keerat Kuchh Varnan Karun, Dijai Gyaan Bataay ॥

॥Chaupaai॥

Namo Vishnu Bhagwan Kharari, Kashat NashaAvan Akhil Vihari ।
Prabal Jagat Me Shakti Tumhari ,Tribhuvan Phail Rahi Ujiyari ॥

Sundar Roop Manohar Surat, Saral Swabhav Mohini Murat।
Tan Par Pitambar Ati Sohat, Baijanti Mala Man Mohat॥

 

 

Shankh Chakr Kar Gada Viraje, Dekhat Daitya Asur Dal Bhaje।
Satya Dharm Mad Lobh Na Gaaje, Kam Krodh Mad Lobh Na Chaaje॥

Santbhakt Sajjan Manranjan, Danuj Asur Dushtan Dal Ganjan।
Sukh Upjaay Kasht Sab Bhanjan, Dhosh Mitaay Karat Jan Sajjan॥

Paap Kaat Bhav Sindhu Utaaran, Kasht Naashakar Bhakt Ubaaran।
Karat Anek Roop Prabhu Dhaaran, Keval Aap Bhakti Ke Karan॥

Dharani Dhenu Ban Tumhi Pukaaraa, Tab Tum Roop Ram Ka dhaaraa।
Bhaar Utaar Asur Dal Maaraa, Ravan Aadik Ko Sanhaaraa॥

Aap Varaah Roop Banaayaa, Hiranyaaksh Ko Maar Giraayaa।
Dhar Matsya Tan Sindu Banaayaa, Choudah Ratanan Ko Nikalaayaa॥

Amilakh Asuran Dwand Machaayaa, Roop Mohini Aap Dikhaayaa।
Devan Ko Amrit Paan Karaayaa, Asuran Ko Chavi Se Bahalaayaa॥

 

 

Kurm Roop Dhar Sindu Mathaya, Mandraachal Giri Turant Uthaayaa।
Shankar Ka Tum Phand Chudaayaa, Bhasmasur Ko Roop Dikhaayaa॥

Vedan Ko Jab Asur Dubaayaa, Kar Prabanda Unhe Dhundhavaayaa।
Mohit Banakar Khalahi Nachaayaa, Usahi Kar Se Bhasm Karaayaa॥

Asur Jalaandhar Ati Baldaai, Shankar Se Un Kinhi Ladaai।
Haar Paar Shiv Sakal Banaai, Kin Sati Se Chhal Khal Jaai॥

Sumiran Kin Tumhe Shivraani, Batlaai Sab Vipat Kahaani।
Tab Tum Bane Munishwar Gyaani, Vrinda Ki Sab Surati Bhulaani॥

Dekhat Teen Danuj Shaitaani, Vrindaa Aay Tumhe Lipataani ।
Ho Sparsh Dharm Kshati Maani, Hanaa Asur Ur Shiv Shaitaani॥

 

 

Tumne Dhruv Prahlaad Ubaare, Hirnaakush Aadik Khal Maare।
Ganikaa Aur Ajaamil Taare, Bahut Bhakt Bhav Sindhu Utaare॥

Harahu Sakal Santaap Hamaare, Kripaa Karahu Hari Sirajan Haare।
Dekhhu Main Nij Darash Tumhaare, Din Bandhu Bhaktan Hitkaare॥

Chaahataa Aapakaa Sevak Darshan, Karahu Dayaa Apani Madhusudan।
Janu Nahi Yogya Jab Poojan, Hoy Yagya Stuti Anumodan॥

Shiladayaa Santosh Sulakshan, Vidit Nahi Vratbodh Vilakshan।
Karhu Apakaa Kis Vidhi Poojan, Kumati Vilok Hote Dukh Bhishan॥

 

 

Karahu Pranaam Kaun Vidhi Sumiran, Kaun bhaanti Mai Karahu Samarpan।
Sur Muni Karat Sadaa Sevkaai, Harshit Rahat Param Gati Paai॥

Din Dukhin Par Sadaa Sahaai, Nij Jan Jaan Lev Apanaai।
Paap Dosh Santaap Nashaao, Bhav Bandhan Se Mukt Karaao॥

Sut Sampati De Sukh Upjaao, Nij Charanan Ka Daas Banaao।
Nigam Sadaa Ye Vinay Sunavai, Padhai Sune So Jan Sukh Paavai॥

 

  • Regular recitation of the Vishnu Chalisa invokes divine blessings from Lord Vishnu, the cosmic preserver. Devotees believe that the Supreme Being showers them with grace, protection, and guidance on their spiritual journey.
  • Shri Vishnu Chalisa Lyrics PDF is a testament to Lord Vishnu’s enduring devotion and adoration. Let us honour the heavenly knowledge and profound spirituality of the Vishnu Chalisa with reverence and humility, cherishing its holy lines and embracing the eternal essence of devotion to Lord Vishnu. May its omnipotent force direct us to the righteous road and bring us nearer to the heavenly embrace of the ever-protector.

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गायत्री चालीसा – Gayatri Chalisa Lyrics & PDF

  • इस लेख में हम गायत्री चालीसा (Gayatri Chalisa Lyrics & PDF) के महत्व, इतिहास और सार का पता लगाएंगे,  इसे लाखों लोगों द्वारा आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक माना जाता है।
  • भारत एक धार्मिक रूप से धन्य है, जहां अनगिनत प्रार्थनाओं और स्तुतियों के विषय में विविधता है। इनमें से एक प्रसिद्ध प्रार्थना है “गायत्री चालीसा पाठ”, जो अनगिनत भक्तों के दिलों में विशेष स्थान रखती है।

 

गायत्री चालीसा लिरिक्स  लिखित में – Gayatri Chalisa Lyrics & PDF

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  • गायत्री चालीसा इन हिंदी pdf एक भक्तिपूर्ण प्रार्थना है जो देवी गायत्री को समर्पित है, जिसे अक्सर “वेदमाता” के रूप में जाना जाता है। इसके मूल में गायत्री मंत्र है, जो हिंदू धर्म में सबसे प्रभावशाली और पूज्य मंत्रों में से एक है, जो ऋग्वेद से उत्पन्न हुआ है। गायत्री मंत्र एक गहरे आवाहन के रूप में है, जो भगवान के प्रकाश की कृपा की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करता है, अज्ञान और अंधकार को हटाने, और ज्ञान और प्रकाश का उपहार प्रदान करने की विनती करता है।

 

Shri Gayatri Chalisa – Gayatri Chalisa Hindi

॥ दोहा ॥
हीं श्रीं, क्लीं, मेधा, प्रभा, जीवन ज्योति प्रचण्ड ।
शांति, क्रांति, जागृति, प्रगति, रचना शक्ति अखण्ड ॥
जगत जननि, मंगल करनि, गायत्री सुखधाम ।
प्रणवों सावित्री, स्वधा, स्वाहा पूरन काम ॥

॥ चालीसा ॥
भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी ।
गायत्री नित कलिमल दहनी ॥१॥

अक्षर चौबिस परम पुनीता ।
इनमें बसें शास्त्र, श्रुति, गीता ॥

शाश्वत सतोगुणी सतरुपा ।
सत्य सनातन सुधा अनूपा ॥

हंसारुढ़ सितम्बर धारी ।
स्वर्णकांति शुचि गगन बिहारी ॥४॥

पुस्तक पुष्प कमंडलु माला ।
शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला ॥

ध्यान धरत पुलकित हिय होई ।
सुख उपजत, दुःख दुरमति खोई ॥

कामधेनु तुम सुर तरु छाया ।
निराकार की अदभुत माया ॥

तुम्हरी शरण गहै जो कोई ।
तरै सकल संकट सों सोई ॥८॥

सरस्वती लक्ष्मी तुम काली ।
दिपै तुम्हारी ज्योति निराली ॥

तुम्हरी महिमा पारन पावें ।
जो शारद शत मुख गुण गावें ॥

चार वेद की मातु पुनीता ।
तुम ब्रहमाणी गौरी सीता ॥

महामंत्र जितने जग माहीं ।
कोऊ गायत्री सम नाहीं ॥१२॥

सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै ।
आलस पाप अविघा नासै ॥

सृष्टि बीज जग जननि भवानी ।
काल रात्रि वरदा कल्यानी ॥

ब्रहमा विष्णु रुद्र सुर जेते ।
तुम सों पावें सुरता तेते ॥

तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे ।
जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे ॥१६॥

महिमा अपरम्पार तुम्हारी ।
जै जै जै त्रिपदा भय हारी ॥

पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना ।
तुम सम अधिक न जग में आना ॥

तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा ।
तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेषा ॥

जानत तुमहिं, तुमहिं है जाई ।
पारस परसि कुधातु सुहाई ॥२०॥

तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई ।
माता तुम सब ठौर समाई ॥

ग्रह नक्षत्र ब्रहमाण्ड घनेरे ।
सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे ॥

सकलसृष्टि की प्राण विधाता ।
पालक पोषक नाशक त्राता ॥

मातेश्वरी दया व्रत धारी ।
तुम सन तरे पतकी भारी ॥२४॥

जापर कृपा तुम्हारी होई ।
तापर कृपा करें सब कोई ॥

मंद बुद्घि ते बुधि बल पावें ।
रोगी रोग रहित है जावें ॥

दारिद मिटै कटै सब पीरा ।
नाशै दुःख हरै भव भीरा ॥

गृह कलेश चित चिंता भारी ।
नासै गायत्री भय हारी ॥२८ ॥

संतिति हीन सुसंतति पावें ।
सुख संपत्ति युत मोद मनावें ॥

भूत पिशाच सबै भय खावें ।
यम के दूत निकट नहिं आवें ॥

जो सधवा सुमिरें चित लाई ।
अछत सुहाग सदा सुखदाई ॥

घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी ।
विधवा रहें सत्य व्रत धारी ॥३२॥

जयति जयति जगदम्ब भवानी ।
तुम सम और दयालु न दानी ॥

जो सदगुरु सों दीक्षा पावें ।
सो साधन को सफल बनावें ॥

सुमिरन करें सुरुचि बड़भागी ।
लहैं मनोरथ गृही विरागी ॥

अष्ट सिद्घि नवनिधि की दाता ।
सब समर्थ गायत्री माता ॥३६॥

ऋषि, मुनि, यती, तपस्वी, जोगी ।
आरत, अर्थी, चिंतित, भोगी ॥

जो जो शरण तुम्हारी आवें ।
सो सो मन वांछित फल पावें ॥

बल, बुद्घि, विघा, शील स्वभाऊ ।
धन वैभव यश तेज उछाऊ ॥

सकल बढ़ें उपजे सुख नाना ।
जो यह पाठ करै धरि ध्याना ॥४०॥

॥ दोहा ॥
यह चालीसा भक्तियुत, पाठ करे जो कोय ।
तापर कृपा प्रसन्नता, गायत्री की होय ॥

 

गायत्री चालीसा का सार – Gayatri Chalisa Lyrics in Hindi

  • गायत्री चालीसा शांतिकुंज का उद्देश्य गायत्री मंत्र के विशेष महत्व को समझने, उसकी पूजा करने, और उसके अर्थ को ध्यान में रखते हुए देवी गायत्री की कृपा और आशीर्वाद का प्राप्ति करना है। यह प्रार्थना पाठ करने से भक्त अपने मन को शुद्ध और ध्यानकारी बनाकर अध्यात्मिक उन्नति की दिशा में अग्रसर होते हैं। गायत्री चालीसा के माध्यम से भक्त अपने जीवन को सकारात्मकता और सत्य की ओर मोड़ते हैं और अंतः आत्म-अनुभूति और मुक्ति की प्राप्ति के लिए प्रयास करते हैं।

 

गायत्री चालीसा का महत्व –  गायत्री चालीसा के चमत्कार

  • गायत्री चालीसा pdf, गायत्री माँ की स्तुति है, जिसे गायत्री मंत्र के साथ मिलाकर पढ़ा जाता है। यह चालीसा गायत्री माँ के समर्थन, आशीर्वाद, और कृपा की प्राप्ति का माध्यम है। गायत्री मंत्र जो है “ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।” इस मंत्र के जाप से व्यक्ति का मानसिक, आध्यात्मिक और शारीरिक विकास होता है। यह मंत्र जीवन के सभी क्षेत्रों में सकारात्मकता, समृद्धि, और संतुष्टि का संचार करता है। इस विशेष मंत्र के प्रति लोगों का श्रद्धा अत्यंत गहरी है और उन्हें गायत्री चालीसा का पाठ करके अपने जीवन को सफल बनाने के लिए शक्ति मिलती है।

 

गायत्री चालीसा के लाभ –  गायत्री चालीसा पढ़ने के फायदे

 

मानसिक शक्ति का संचार:

  • गायत्री चालीसा के पाठ से व्यक्ति की मानसिक शक्ति में सकारात्मकता का संचार होता है। गायत्री माँ के आशीर्वाद से मन की शांति होती है और विचारों में सकारात्मक बदलाव आता है। इससे व्यक्ति को मानसिक रूप से स्थिरता मिलती है और उसकी सोच पॉजिटिव दिशा में विकसित होती है।

शारीरिक स्वास्थ्य का सुधार:

  • गायत्री चालीसा के जाप से शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। गायत्री माँ की कृपा से रोगों का नाश होता है और व्यक्ति को उच्च स्वास्थ्य दोष मुक्त शरीर मिलता है। गायत्री मंत्र के जाप से मानसिक और शारीरिक दोनों ही स्वास्थ्य का संचार होता है।

विद्या और ज्ञान के प्राप्ति:

  • गायत्री मंत्र का जाप विद्या और ज्ञान के प्राप्ति में सहायक होता है। यह मंत्र ज्ञान की देवी, गायत्री माँ की कृपा से अज्ञानता का नाश करके व्यक्ति को ज्ञान की अधिकारी बनाता है। गायत्री माँ के आशीर्वाद से विद्या, बुद्धि और ज्ञान के क्षेत्र में समृद्धि होती है।

आत्मिक संवृद्धि:

  • गायत्री माँ की प्रार्थना करने से हमें आत्मिक संवृद्धि का संचार होता है। यह प्रार्थना हमें अपने आत्मा के साथ संबंध स्थापित करती है और हमें अपने भगवानी स्वरूप का पहचानने में मदद करती है। गायत्री माँ के द्वारा हम अपनी आत्मा की गहराईयों को समझते हैं और आत्मिक शांति, संतुष्टि और उन्नति को प्राप्त करते हैं।

अन्तरंग शुद्धि:

  • गायत्री चालीसा के पाठ से हमारे अन्तरंग की शुद्धि होती है। इस प्रार्थना के जाप से हम अपने मन, विचार, और अनुभवों को शुद्ध करते हैं और दिव्यता की अनुभूति करते हैं। यह हमें अपने असली भगवानी स्वरूप की पहचान करने में मदद करता है और हमें आत्मा की उच्चतम अनुभूति की ओर प्रेरित करता है।
  • गायत्री चालीसा गायत्री माँ के दिव्यता, ज्ञान, और आत्मिक उन्नति की प्रार्थना का सार्थक मंत्र है। यह प्रार्थना पाठ करने से हम अपने जीवन को उज्ज्वल, सकारात्मक, और शांत बना सकते हैं। गायत्री माँ की कृपा से हम भगवान की अनंत दया, प्रकाश, और ज्ञान को प्राप्त कर सकते हैं, जो हमें अपने जीवन के सभी क्षेत्रों में समृद्ध, सफल और संतुष्ट बनाते हैं। इसलिए, गायत्री चालीसा के पाठ को नियमित रूप से करके हम आत्मिक शक्ति को प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन को एक सार्थक दिशा में उन्नत कर सकते हैं।

गायत्री चालीसा मंत्र:

  • हिंदू धर्म में भक्ति और उपासना के लिए गायत्री मंत्र एक प्राचीन और प्रतिष्ठित मंत्र है। गायत्री मंत्र को वेदमाता के रूप में जाना जाता है, जिसे “ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।” इस मंत्र का जाप करने से मन की शुद्धि होती है और आत्मा की उन्नति होती है। इस लेख में, हम गायत्री चालीसा मंत्र के बारे में विस्तार से जानेंगे, जो हमारे आत्मिक विकास और ध्यान के मार्ग में हमें प्रेरित करता है।

 

गायत्री आरती – गायत्री चालीसा आरती

 

॥ आरती ॥
जयति जय गायत्री माता। सुर भूप विमलामति ज्योति॥
तुम सम्पति तुम ही धन धान्य। अवगुण गणन भूलति भक्त जननी॥
चालीसा सोहवीं आरती ज्योति। भावें भक्ति निवारे गायत्री माता॥
सत्य धर्म शक्ति ब्रह्मा जग पालक। नमो नमो तुम सद्गति पारवाल॥
सब दुख भयहीनि तुम तारिणी। भक्तार्ति हारिणि सुखदायिनी॥
विद्या बुद्धि देहि मोहिनी त्रिजगजननी।
भक्ति भाव निवारणी गायत्री माता॥
मंगल स्वरूपी जगदम्बे शरणागती। नमो नमो तुम शरणागती॥
जयति जय गायत्री माता। सुर भूप विमलामति ज्योति॥

गायत्री मंत्र का महत्व:

  • गायत्री मंत्र अद्भुत ध्वनि, शक्ति और दिव्यता से भरा हुआ है। इस मंत्र के जाप से व्यक्ति को अपने मन की उन्नति, ज्ञान, और आत्मा की प्राप्ति का मार्ग प्रदान होता है। गायत्री मंत्र का विशेष महत्व है, क्योंकि इसे जाप करने से व्यक्ति को सत्य की पहचान होती है और उसके जीवन को प्रकाशमय बनाने में मदद मिलती है।

गायत्री मंत्र के फायदे:

  • आत्मिक विकास का समर्थन: गायत्री मंत्र के जाप से व्यक्ति का आत्मिक विकास होता है। यह मंत्र व्यक्ति को अपने सच्चे स्वरूप का अनुभव करने में मदद करता है और उसे आत्मिक स्वयंप्रकाश मिलता है।
  • ज्ञान की प्राप्ति: गायत्री मंत्र के जाप से व्यक्ति को ज्ञान की प्राप्ति होती है। यह मंत्र विद्या, बुद्धि और ज्ञान के क्षेत्र में समृद्धि के लिए सहायक सिद्ध होता है।
  • शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य: गायत्री मंत्र के जाप से व्यक्ति का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य सुधारता है। यह मंत्र शक्तिशाली ऊर्जा का संचार करता है और व्यक्ति को स्वस्थ बनाता है।
  • आत्मिक शांति: गायत्री मंत्र के जाप से व्यक्ति को आत्मिक शांति मिलती है। यह मंत्र व्यक्ति को मानसिक तनाव से मुक्त करता है और उसको आत्मिक शांति देता है।
  • ध्यान की प्राप्ति: गायत्री मंत्र के जाप से व्यक्ति को ध्यान की प्राप्ति होती है। यह मंत्र व्यक्ति को अपने आंतरिक शक्ति का अनुभव करने में मदद करता है और उसे ध्यानावस्था में प्रवेश करता है।
  • गायत्री मंत्र एक शक्तिशाली और प्राचीन मंत्र है, जो हमारे आत्मिक विकास और ध्यान के मार्ग में हमें प्रेरित करता है। यह मंत्र वेदमाता की कृपा से हमें ज्ञान, शक्ति, और आनंद की प्राप्ति होती है। गायत्री मंत्र के जाप से हम अपने आत्मा की गहराईयों को समझते हैं और आत्मिक संवृद्धि, शांति, और समृद्धि को प्राप्त करते हैं। यह मंत्र हमें अपने जीवन की दिशा में प्रकाशमय बनाकर सफलता की ओर प्रेरित करता है। गायत्री मंत्र का पाठ करने से हमारा जीवन आत्मिकता और उच्चतम अनुभूति के दिशा में प्रगति करता है।

 

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Shiv Chalisa: Shiv Aarti | Shiv Tandav | शिव चालीसा

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Shiv Chalisa Lyrics in English

Jai Ganesh Girija Suvan
Mangal Mul Sujan
Kahat Ayodhya Das
Tum Dey Abhaya Varadan

Jai Girija Pati Dinadayala
Sada Karat Santan Pratipala
Bhala Chandrama Sohat Nike
Kanan Kundal Nagaphani Ke

Anga Gaur Shira Ganga Bahaye
Mundamala Tan Chhara Lagaye
Vastra Khala Baghambar Sohain
Chhavi Ko Dekha Naga Muni Mohain

Maina Matu Ki Havai Dulari
Vama Anga Sohat Chhavi Nyari
Kara Trishul Sohat Chhavi Bhari
Karat Sada Shatrun Chhayakari

Nandi Ganesh Sohain Tahan Kaise
Sagar Madhya Kamal Hain Jaise
Kartik Shyam Aur Gana rauo
Ya Chhavi Ko Kahi Jata Na Kauo

Devan Jabahi Jaya Pukara
Tabahi Dukha Prabhu Apa Nivara
Kiya Upadrav Tarak Bhari
Devan Sab Mili Tumahi Juhari

Turata Shadanana Apa Pathayau
Luv nimesh Mahi Mari Girayau
Apa Jalandhara Asura Sanhara
Suyash Tumhara Vidit Sansara

Tripurasur Sana Yudha Machai
Sabhi Kripakar Lina Bachai
Kiya Tapahin Bhagiratha Bhari
Purahi Pratigya Tasu Purari

Darpa chod Ganga thabb Aayee
Sevak Astuti Karat Sadahin
Veda Nam Mahima Tav Gai
Akatha Anandi Bhed Nahin Pai

Pragati Udadhi Mantan te Jvala
Jarae Sura-Sur Bhaye bihala
Mahadev thab Kari Sahayee,
Nilakantha Tab Nam Kahai

Pujan Ramchandra Jab Kinha
Jiti Ke Lanka Vibhishan Dinhi
Sahas Kamal Men Ho Rahe Dhari
Kinha Pariksha Tabahin Purari

Ek Kamal Prabhu Rakheu goyee
Kushal-Nain Pujan Chahain Soi
Kathin Bhakti Dekhi Prabhu Shankar
Bhaye Prasanna Diye-Ichchhit Var

Jai Jai Jai Anant Avinashi
Karat Kripa Sabake Ghat Vasi
Dushta Sakal Nit Mohin Satavai
Bhramat Rahe Man Chain Na Avai

Trahi-Trahi Main Nath Pukaro
Yahi Avasar Mohi Ana Ubaro
Lai Trishul Shatrun Ko Maro
Sankat Se Mohin Ana Ubaro

Mata Pita Bhrata Sab Hoi
Sankat Men Puchhat Nahin Koi
Swami Ek Hai Asha Tumhari
Ai Harahu Ab Sankat Bhari

Dhan Nirdhan Ko Deta Sadahin
Arat jan ko peer mitaee,
Astuti Kehi Vidhi Karai Tumhari
Shambhunath ab tek tumhari

Dhana Nirdhana Ko Deta Sadaa Hii
Jo Koi Jaanche So Phala Paahiin
Astuti Kehi Vidhi Karon Tumhaarii
Kshamahu Naatha Aba Chuuka Hamaarii

Shankar Ho Sankat Ke Nashan
Vighna Vinashan Mangal Karan
Yogi Yati Muni Dhyan Lagavan
Sharad Narad Shisha Navavain

Namo Namo Jai Namah Shivaya
Sura Brahmadik Par Na Paya
Jo Yah Patha Karai Man Lai
To kon Hota Hai Shambhu Sahai

Riniyan Jo Koi Ho Adhikari
Patha Karai So Pavan Hari
Putra-hin Ichchha Kar Koi
Nischaya Shiva Prasad Tehin Hoi

Pandit Trayodashi Ko Lavai
Dhyan-Purvak Homa Karavai
Trayodashi Vrat Kare Hamesha
Tan Nahin Take Rahe Kalesha

Dhuupa Diipa Naivedya Chadhaave
Shankara Sammukha Paatha Sunaave
Janma Janma Ke Paapa Nasaave
Anta Dhaama Shivapura Men Paave

Doha

Nitya Nema kari Pratahi
Patha karau Chalis
Tum Meri Man Kamana
Purna Karahu Jagadisha

 

शिव चालीसा

 

  • शिव चालीसा एक प्रसिद्ध हिंदी भक्ति गीत है जो महादेव शिव की महिमा और भक्ति को समर्पित है। यह चालीसा शिव भक्ति और पूजा में प्रयोग होती है और भक्तों द्वारा उनकी आराधना और उनके दिव्य गुणों का गान करने के लिए प्रयोग की जाती है। इसमें  अर्धमात्रा, संक्षेप में शिव के महत्त्व, उनकी विभिन्न नाम, गुण, आराध्यता के विषयों की महिमा का वर्णन किया गया है। इसमें भक्तों द्वारा शिव की स्तुति की जाती है और उनकी आशीर्वाद का आह्वान किया जाता है। शिव चालीसा में महिमा स्तोत्र, शिव आरती हिंदी में, तांडव, मंत्र, स्तुति ,जप गुजराती और हिंदी में शामिल हैं।
  • शिव चालीसा के पठन और सुनने का महत्वपूर्ण उद्देश्य है महादेव शिव की आराधना और उनके प्रति श्रद्धा और भक्ति को जीवंत रखना। यह चालीसा शिव भक्तों को मनोयोग और आध्यात्मिकता में स्थिरता और सुख प्रदान करने का मान्यता है। इसका पाठ या सुनना शिव भक्ति और अनुशासन को बढ़ावा देता है और व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है।
  • शिव चालीसा के पाठ के द्वारा भक्त शिव की प्राप्ति, आशीर्वाद, धैर्य, शक्ति, सुख, समृद्धि, आनंद, मोक्ष और आध्यात्मिक समृद्धि की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। यह चालीसा शिव की जयंती, महाशिवरात्रि, कार्तिक मास और अन्य पर्व और उत्सव के अवसर पर विशेष रूप से की जाती है। शिव चालीसा विभिन्न संस्कृति और भाषाओं में उपलब्ध है। हिंदी, संस्कृत, गुजराती, बंगाली, तेलुगु, मराठी और अन्य भाषाओं में इसके विभिन्न रूप मौजूद हैं। इसे भक्त अपनी आस्था और भाषा के अनुसार चुन सकते हैं और शिव की महिमा के एक रूप के रूप में इसका पाठ या सुनना कर सकते हैं।

Shiv Chalisa Lyrics in Hindi

श्री शिव चालीसा

दोहा

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥

जय गिरिजा पति दीन दयाला । सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके । कानन कुण्डल नागफनी के॥

अंग गौर शिर गंग बहाये । मुण्डमाल तन छार लगाये ॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे । छवि को देख नाग मुनि मोहे ॥

मैना मातु की ह्वै दुलारी । बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी । करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे । सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ । या छवि को कहि जात न काऊ ॥

देवन जबहीं जाय पुकारा । तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥
किया उपद्रव तारक भारी । देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥

तुरत षडानन आप पठायउ । लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई । सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥
किया तपहिं भागीरथ भारी । पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥

दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं । सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥
वेद नाम महिमा तव गाई । अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥

प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला । जरे सुरासुर भये विहाला ॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई । नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥

पूजन रामचंद्र जब कीन्हा । जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥
सहस कमल में हो रहे धारी । कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥

एक कमल प्रभु राखेउ जोई । कमल नयन पूजन चहं सोई ॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर । भये प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥

जय जय जय अनंत अविनाशी । करत कृपा सब के घटवासी ॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै ॥

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो । यहि अवसर मोहि आन उबारो ॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो । संकट से मोहि आन उबारो ॥

मातु पिता भ्राता सब कोई । संकट में पूछत नहिं कोई ॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी । आय हरहु अब संकट भारी ॥

धन निर्धन को देत सदाहीं । जो कोई जांचे वो फल पाहीं ॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी । क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥

शंकर हो संकट के नाशन । मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं । नारद शारद शीश नवावैं ॥

नमो नमो जय नमो शिवाय । सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥
जो यह पाठ करे मन लाई । ता पार होत है शम्भु सहाई ॥

ॠनिया जो कोई हो अधिकारी । पाठ करे सो पावन हारी ॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई । निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥

पण्डित त्रयोदशी को लावे । ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा । तन नहीं ताके रहे कलेशा ॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे । शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥
जन्म जन्म के पाप नसावे । अन्तवास शिवपुर में पावे ॥

कहे अयोध्या आस तुम्हारी । जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

॥ दोहा ॥

नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश ॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान ।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण ॥

॥ इति शिव चालीसा ॥

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Sai Baba Aarti Evening: Sai Chalisa | साईं बाबा की आरती

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Sai Chalisa Lyrics in English

Pehle Sai ke charan main, apna sheesh namaaun main,
Kaise Shirdi Sai aaye, saara haal sunaun main.Kaun hai mata, pita kaun hai, yeh na kisi ne bhi jaana,
Kaha janam Sai ne dhara, prashan paheli raha bana.Koyee kahe Ayodhya ke, yeh Ramchandra bhagvan hain,
Koyee kehta SaiBaba, pavan putra Hanuman hain.Koyee kehta mangal murti, Shri Gajanan hain Sai,
Koyee kehta Gokul-Mohan Devki Nandan hain Sai.Shanker samaj bhakta kayee to, Baba ko bhajhte rahte,
Koyee kahe avatar datta ka, pooja Sai ki karte.Kuchha bhi maano unko tum, pur Sai hain sachche bhagvan,
Bade dayalu deen-bandhu, kitno ko diya jivan-daan.Kayee baras pehle ki ghatna, tumhe sunaunga main baat,
Kisee bhagyashaali ki , Shirdi main aayee thi baraat.Aaya saath usi ke tha, baalak aik bahut sunder,
Aaya aaker vahin bus gaya, paavan Shirdi kiya nagar.Kayee dino tak raha bhatakta, bhiksha maangi usne dar dar,
Aur dikhaee aisee leela, jag main jo ho gayee amar.Jaise-jaise umar badi, badti hee vaisy, gaee shaan,
Ghar ghar hone laga nagar main, Sai Baba kaa gungaan.Dig digant main laga goonjane, phir to Saiji ka naam,
Deen-dhukhi ki raksha karna, yahi raha Baba ka kaam.Baba ke charno main ja kar, jo kehta main hoo nirdhan,
Daya usee par hoti unkee, khul jaate dhukh ke bandhan.

Kabhi kisee ne maangi bhiksha, do Baba mujhko suntaan,
Avum astoo tava kaihkar Sai dete the usko vardaan.

Swayam dhukhi Baba ho jaate, deen-dukhijan ka lakh haal,
Anteh: karan shree Sai ka, sagar jaisa raha vishal.

Bhakta ek madrasi aaya, ghar ka bahut bada dhanvaan,
Maal khajana behadh uskaa, keval nahi rahi suntaan.

Laga manane Sainath ko, Baba mujh per daya karo,
Junjha se junkrit naiya ko, tum hee mairee par karo.

Kuldeepak ke bina andhera, chchaya hua ghar mein mere,
Isee liye aaya hoon Baba, hokar sharnagat tere.

Kuldeepak ke re abhav main, vyartha hai daulat ki maya,
Aaj bhikhari ban kar Baba, sharan tumhari main aaya,

De do mujhko putra-daan, main runi rahoonga jivan bhar,
Aur kisi ki aas na mujko, siraf bharosa hai tum par.

Anunaye-vinaye bahut ki usne, charano main dhar ke sheesh,
Tub prasana hokar Baba ne, diya bhakta ko yeh aashish.

‘Allah bhala karega tera,’ putra janam ho tere ghar,
Kripa rahegi tum per uski, aur tere uss balak per.

Ab tak nahi kisi ne payaa, Sai ki kripa ka paar,
Putra ratna de madrasi ko, dhanya kiya uska sansaar.

Tan-man se jo bhaje usi ka jug main hota hai uddhar,
Sanch ko aanch nahi haiy Koyee, sada jooth ki hoti haar.

Main hoon sada sahare uske, sada rahoonga uska daas,
Sai jaisa prabhu mila hai, itni ki kum haiy kya aash.

Mera bhi din tha ek aisa, miltee nahi mujhe thi roti,
Tan par kapda duur raha tha, sheish rahi nanhi si langoti,

Sarita sammukh hone par bhi main pyasa ka pyasa tha,
Durdin mera mere ooper, davagani barsata tha.

Dharti ke atirikt jagat main, mera kuch avalumbh na tha,
Bana bhikhari main duniya main, dar dar thokar khata tha.

Aise main ik mitra mila jo, param bhakt Sai ka tha,
Janjalon se mukta, magar iss, jagti main veh bhi mujh sa tha.

Baba ke darshan ke khatir, mil dono ne kiya vichaar,
Sai jaise daya murti ke darshan ko ho gaiye taiyar.

Paavan Shirdi nagari main ja kar, dhekhi matvaali murti,
Dhanya janam ho gaya ki humne jab dhekhi Sai ki surti.

Jabse kiye hai darshan humne, dukh sara kaphur ho gaya,
Sankat saare mite aur vipdaon ka ant ho gaya.

Maan aur sammaan mila, bhiksha main humko Baba se,
Prati bambit ho uthe jagat main, hum Sai ki abha se.

Baba ne sammaan diya haiy, maan diya is jivan main,
Iska hee sambal le main, hasta jaunga jivan main.

Sai ki leela ka mere, man par aisa assar huaa,
Lagta, jagti ke kan-kan main, jaise ho veh bhara huaa.

‘Kashiram’ Baba ka bhakt, iss Shirdi main rehta tha,
Maiy Sai ka Sai mera, veh duniya se kehta tha.

Seekar svayam vastra bechta, gram nagar bazaro main,
Jhankrit uski hridh-tantri thi, Sai ki jhankaron se.

Stabdh nisha thi, thay soye, rajni aanchal me chand sitare,
Nahi soojhta raha hath ka, hath timiri ke maare.

Vastra bech kar lote raha tha, hai! Haath se ‘kaashi’,
Vichitra bada sanyoga ki uss din aata tha veh akaki.

Gher raah main khade ho gaye, usse kutil, anyaayi,
Maaro kaato looto iski, hee dhvani pari sunayee.

Loot peet kar usse vahan se, kutil gaye champat ho,
Aaghaton se marmahat ho, usne di thi sangya kho.

Bahut der tak pada raha vaha, vahin usi halat main,
Jaane kab kuch hosh ho utha, usko kisi palak main.

Anjane hee uske muh se, nikal para tha Sai,
Jiski prati dhvani Shirdi main, Baba ko padi sunai.

Shubdh utha ho manas unka, Baba gaye vikal ho,
Lagta jaise ghatna sari, ghati unhi ke sanmukh ho.

Unmadi se idhar udhar tab, Baba lage bhatakne,
Sanmukh chizein jo bhi aiee, unkoo lage patkne.

Aur dhadhakte angaro main, Baba ne kar dala,
Huye sashankit sabhi vahan, lakh tandav nritya nirala.

Samajh gaye sab log ki koi, bhakt para sankat ain,
Shubit khade thai sabhi vahan par, pade huae vismaiye main.

Usse bachane ke hi khatir, Baba aaj vikal hai,
Uski hi piraa se pirit, unka ant sthal hai.

Itne me hi vidhi ne apni, vichitrata dhikhlayi,
Lakh kar jisko janta ki, shradha sarita lehrayee.

Lekar sanghya heen bhakt ko, gaadi ek vahan aayee,
Sanmukh apne dekh bhakt ko, Sai ki aankhe bhar aayee.

Shant, dheer, gambhir sindhu sa, Baba ka anthsthal,
Aaj na jane kyon reh-rehkar, ho jaata tha chanchal.

Aaj daya ki murti svayum tha bana hua upchaari,
Aur bhakt ke liye aaj tha, dev bana prati haari.

Aaj bhakti ki visham pariksha main, safal hua tha Kaashi,
Uske hee darshan ki khatir, thai umre nagar-nivasi.

Jab bhi aur jahan bhi koyee, bhakta pade sankat main,
Uski raksha karne Baba jate hai palbhar main.

Yuga yuga ka hai satya yeh, nahi koi nayee kahani,
Aapat grasta bhakt jab hota, jate khudh antar yami.

Bhedh bhaav se pare pujari manavta ke the Sai,
Jitne pyare Hindu-Muslim uutne hi Sikh isai.

Bhed bhaav mandir masjid ka tod phod Baba ne dala,
Ram rahim sabhi unke the, Krishan Karim Allah Tala.

Ghante ki pratidhvani se gunja, masjid ka kona kona,
Mile paraspar Hindu Muslim, pyar bada din din doona.

Chamatkar tha kitna sundar, parichaye iss kaya ne dee,
Aur neem karvahat main bhi mithaas Baba ne bhar dee.

Sabko sneha diya Sai ne, sabko suntul pyar kiya,
Jo kuch jisne bhi chaha, Baba ne usko vahi diya.

Aise sneha sheel bhajan ka, naam sada jo japa kare,
Parvat jaisa dhukh na kyoon ho, palbhar main veh door tare.

Sai jaisa daata humne, aare nahi dekha koi,
Jiske keval darshan se hee, saari vipda door gayee.

Tan main Sai, man main Sai, Sai Sai bhajha karo,
Apne tan ki sudh budh khokur, sudh uski tum kiya karo.

Jab tu apni sudh tajkur, Baba ki sudh kiya karega,
Aur raat din Baba, Baba, hi tu rata karega.

To Baba ko aare! vivash ho, sudhi teri leni hee hogi,
Teri har icha Baba ko, puree hee karni hogi.

Jungal jungal bhatak na pagal, aur dhundne Baba ko,
Ek jagah keval Shirdi main, tu paiga Baba ko.

Dhanya jagat main prani hai veh, jisne Baba ko paya,
Dukh main sukh main prahar aath ho, Sai ka hee gune gaya.

Giren sankat ke parvat, chahe bijli hi toot pare,
Sai ka le naam sada tum, sanmukh sub ke raho ade.

Iss budhe ki sunn karamat, tum ho javo ge hairaan,
Dung raha sunkar jisko, jane kitne chatur sujaan.

Ek baar Shirdi main sadhu dhongi tha koi aaya,
Bholi bhali nagar nivasi janta ko tha bharmaya.

Jari, butiyan unhe dhikha kar, karne laga vaha bhashan,
Kehne laga sunno shrotagan, ghar mera hai vrindavan.

Aushadhi mere paas ek hai, aur ajab iss main shakti,
Iske sevan karne se hi, ho jaati dukh se mukti.

Aggar mukta hona chaho tum, sankat se bimari se,
To hai mera numra nivedan, har nar se har nari se.

Lo kharid tum isko, sevan vidhiyan hai nyari,
Yadyapi tuch vastu hai yeh, gun uske hai atisheh bhari.

Jo hai suntaan heen yahen yadi, meri aushdhi ko khayen,
Putra ratan ho parapat, aare aur veh mooh manga phal paye.

Aushadh meri jo na kharide, jeevan bhar pachtayega,
Mujh jaisa prani shayad hi, aare yaha aa payega.

Duniya do din ka mela hai, mauj shaunk tum bhi kar lo,
Gar is se milta hai, sub kuch, tum bhi isko le lo.

Hairani badti janta ki, lakh iski kaarastaani,
Pramudit veh bhi man hi man tha, lakh logo ki nadani.

Khabar suna ne Baba ko yeh, gaya daud kar sevak ek,
Sun kar bhukuti tani aur, vismaran ho gaya sabhi vivek.

Hukum diya sevak ko, satvar pakad dusht ko lavo,
Ya Shirdi ki seema se, kapti ko duur bhagavo.

Mere rehte bholi bhali, Shirdi ki janta ko,
Kaun neech aisa jo, sahas karta hai chalne ko.

Palbhar mai hi aise dhongi, kapti neech lootere ko,
Maha naash ke maha gart main, phahuncha doon jivan bhar ko.

Tanik mila aabhaas madari, krur kutil anyayi ko,
Kaal nachta hai ab sir par, gussa aaya Sai ko.

Pal bhar main sab khel bandh kar, bhaga sir par rakh kar pairr,
Socha tha man hi man, bhagvan nahi hai ab khair.

Such hai Sai jaisa daani, mil na sakega jag main,
Ansh iish ka Sai Baba, unhe na kuch bhi mushkil jag main.

Sneh, sheel, sojanya, aadi ka abhushan dharan kar,
Badta iss duniya main jo bhi, manav sevaye path par.

Vahi jeet leta hai jagti, ke jan jan ka anthsthal,
Uski ek udasi hi jag, jana ko kar deti hai vivhal.

Jab jab jag main bhar paap ka bar bar ho jaata hai,
Usse mita ne ke hi khatir, avtari ho aata hai.

Paap aur anyaya sabhi kuch, iss jagti ka har ke,
Duur bhaga deta duniya ke danav ko shan bhar main.

Sneh sudha ki dhar barasne, lagti hai duniya main,
Gale paraspar milne lagte, jan jan hai aapas main.

Aisse hee avtari Sai, mrityulok main aakar,
Samta ka yeh paath padhaya, sabko apna aap mitakar.

Naam dwarka masjid ka , rakha Shirdi main Sai ne,
Daap taap, suntaap mitaya, jo kuch aaya Sai ne.

Sada yaad main mast ram ki, baithe rehte the Sai,
Peher aath hee raam naam ka, bhaite rehte the Sai.

Sookhee rookhee tazi baasi, chahe ya hovai pakvaan,
Sada pyar ke bhooke Sai ke, khatir the sabhi samaan.

Sneh aur shradha se apni, jan jo kuch de jaate the,
Bade chaav se uss bhojan ko, Baba paavan karte the.

Kabhi kabhi man behlane ko, Baba baag main jate the,
Pramudit man main nirukh prakrati, chatta ko veh hote the.

Rang-birange pushpa baag ke mand mand hil dul karke,
Bihau birane mana main bhi sneh salil bhar jate the.

Aise su-madhur bela main bhi, dukh aafat vipada kai maare,
Apne man ki vyatha sunane, jan rehte Baba ko ghere.

Sunkar jinki karun katha ko, nayan kamal bhar aate the,
De vibhuti har vyatha, shanti, unke uur main bhar dete the.

Jaane kya adhbut, shakti, uss vibhuti main hoti thi,
Jo dharan karke mastak par, dukh saara har leti thi.

Dhanya manuja veh sakshaat darshan, jo Baba Sai ke paye,
Dhanya kamal kar unke jinse, charan kamal veh parSai.

Kaash nirbhaiy tumko bhi, saakshat Sai mil jaata,
Barshon se ujra chaman apna, phir se aaj khil-jata.

Gar pakar main charan shri ke, nahi chorta umar bhar,
Mana leta main jaroor unko gar rooth te Sai mujh par!!

 

साईं बाबा की आरती हिंदी में – Sai baba aarti in hindi

 

  • साईं बाबा की आरती एक भक्तिपूर्ण गीत या हिम्मत है जो साईं बाबा को समर्पित है, जो एक पूज्य ऋषि और आध्यात्मिक गुरु हैं और जिन्हें विभिन्न धर्मों के लोग वंदना करते हैं। आरती एक भक्तिपूर्ण पूजा प्रक्रिया है जिसमें देवी-देवता या आध्यात्मिक आकार को गाने और प्रार्थना करके आदर्शित किया जाता है।
  • साईं बाबा की आरती हिंदी में आमतौर पर साईं बाबा के मंदिरों में या साईं बाबा के भजन सत्रों के दौरान किया जाता है। यह भक्तों के द्वारा साईं बाबा के प्रति उनके प्यार, भक्ति और कृतज्ञता का अभिव्यक्ति करने का एक तरीका है। आरती के साथ दीप जलाना, घंटी बजाना और देवता के सामने कपूर या धूप का हाथ हिलाना शामिल होता है।
  • साईं बाबा की आरती के बोल आमतौर पर साईं बाबा के गुण, चमत्कार और उनके शिक्षाओं को दर्शाते हैं। वे भक्त की आस्था, विश्वास और साईं बाबा के आशीर्वाद और मार्गदर्शन की अभिव्यक्ति करते हैं। आरती भक्ति और समर्पण के साथ गाई जाती है, जिससे आध्यात्मिक माहौल बनता है और साईं बाबा की दिव्य उपस्थिति के साथ आपातित्व बढ़ाता है। आरती विशेष समय पर, जैसे सुबह और शाम को की जाती है और यह माना जाता है कि यह भक्तों के जीवन में शांति, सुख और पूर्णता लाती है। यह साईं बाबा के भक्तों के लिए एक प्रिय अभ्यास है जिसमें आरती में भाग लेने और उसमें उठाने के माध्यम से आध्यात्मिक ऊर्जा को अनुभव करने का सुअवसर प्रदान किया जाता है।

 

आरती श्री साईं गुरुवर की, परमानन्द सदा सुरवर की।

जा की कृपा विपुल सुखकारी, दुःख, शोक, संकट, भयहारी।

शिरडी में अवतार रचाया, चमत्कार से तत्त्व दिखाया।

कितने भक्त शरण में आए, वे सुख शान्ति निरंतर पाये।

भाव धरै जो मन में जैसा, साईं का अनुभव हो वैसा।

गुरु की उदी लगावे तन को, समाधान लाभत उस तन को।

साईं नाम सदा जो गावे, सो फल जग में शाश्वत पावे।

गुरुवासर करि पूजा सेवा, उस पर कृपा करत गुरुदेवा।

राम, कृष्ण, हनुमान रूप में, दे दर्शन जानत जो मन में।

विविध धर्म के सेवक आते, दर्शन कर इच्छित फल पाते।

जै बोलो साईं बाबा की, जै बोलो अवधूत गुरु की।

साईं की आरती जो कोई गावै, घर में बस सुख मंगल पावे।

अनंतकोटि ब्रम्हांडनायक राजाधिराज योगिराज जय जय जय साईं बाबा की,
आरती श्री साईं गुरुवार की।

आरती श्री साईं गुरुवर की, परमानन्द सदा सुरवर की।

 

 

साईं चालीसा – Sai chalisa in hindi

 

  • शिरडी वाले साईं बाबा की आरती, भक्तों द्वारा साईं बाबा के प्रति श्रद्धा और भक्ति का अभिव्यक्ति करने के लिए गाया जाने वाला एक पूजा गीत है। इस चालीसा में साईं बाबा की महिमा, गुण, शक्ति और आशीर्वादों का वर्णन किया जाता है। यह गीत साईं बाबा के भक्तों के द्वारा नियमित रूप से गाया जाता है और इसे साईं बाबा के मंदिरों में भक्ति सत्रों के दौरान भी सुना जाता है।भगवान साईं बाबा के प्रति समर्पित एक पवित्र भजन, साईं चालीसा के माध्यम से दिव्य कृपा और आध्यात्मिक उन्नति का अनुभव करें। साईं चालीसा के सुरीले पंक्तियों में लव, सहानुभूति और ज्ञान का प्रतिष्ठान है, जो महान आध्यात्मिक गुरु को प्रतिष्ठित करता है।
  • साईं बाबा की आरती में उल्लेखित श्लोकों और पंक्तियों के माध्यम से भक्तों को साईं बाबा के संदेश, कृपा और आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। इस चालीसा के द्वारा भक्त अपनी श्रद्धा और विश्वास को प्रकट करते हैं और साईं बाबा के समर्पण में अपना मन और आत्मा लगाते हैं। यह उन्हें शांति, सुख, समृद्धि और स्वर्गीय आनंद की प्राप्ति की दिशा में प्रेरित करता है। साईं चालीसा के अद्यायों को पठने और सुनने के द्वारा भक्त अपने अंतर्मन को शुद्ध करके साईं बाबा के प्रति समर्पित होते हैं और उनके आशीर्वाद से जीवन को पूर्णता, समृद्धि और आनंद से भर देते हैं। साईं चालीसा के उपदेशों पर विचार करें, भक्ति, कृतज्ञता और सहनशीलता का विकास करें। यह पवित्र भजन आपके हृदय को शुद्ध करता है, आंतरिक शांति लाता है और आपको स्वयं-साक्षात्कार और आध्यात्मिक विकास की मार्गदर्शन करता है। भगवान साईं बाबा की दिव्य प्रतिष्ठा को अपनाएं और अपने जीवन में साईं चालीसा के गहराई में छिपी गहरी प्रभावशाली शक्ति का अनुभव करें।

 

॥श्री साई चालीसा॥

पहले साई के चरणों में, अपना शीश नमाऊं मैं।
कैसे शिरडी साई आए, सारा हाल सुनाऊं मैं॥1॥
कौन है माता, पिता कौन है, ये न किसी ने भी जाना।
कहां जन्म साई ने धारा, प्रश्न पहेली रहा बना॥2॥
कोई कहे अयोध्या के, ये रामचंद्र भगवान हैं।
कोई कहता साई बाबा, पवन पुत्र हनुमान हैं॥3॥
कोई कहता मंगल मूर्ति, श्री गजानंद हैं साई।
कोई कहता गोकुल मोहन, देवकी नन्दन हैं साई॥4॥
शंकर समझे भक्त कई तो, बाबा को भजते रहते।
कोई कह अवतार दत्त का, पूजा साई की करते॥5॥
कुछ भी मानो उनको तुम, पर साई हैं सच्चे भगवान।
ब़ड़े दयालु दीनबंधु, कितनों को दिया जीवन दान॥6॥
कई वर्ष पहले की घटना, तुम्हें सुनाऊंगा मैं बात।
किसी भाग्यशाली की, शिरडी में आई थी बारात॥7॥
आया साथ उसी के था, बालक एक बहुत सुन्दर।
आया, आकर वहीं बस गया, पावन शिरडी किया नगर॥8॥
कई दिनों तक भटकता, भिक्षा माँग उसने दर-दर।
और दिखाई ऐसी लीला, जग में जो हो गई अमर॥9॥
जैसे-जैसे अमर उमर ब़ढ़ी, ब़ढ़ती ही वैसे गई शान।
घर-घर होने लगा नगर में, साई बाबा का गुणगान॥10॥
दिग् दिगंत में लगा गूंजने, फिर तो साई जी का नाम।
दीन-दुखी की रक्षा करना, यही रहा बाबा का काम॥11॥
बाबा के चरणों में जाकर, जो कहता मैं हूं नि़रधन।
दया उसी पर होती उनकी, खुल जाते दुःख के बंधन॥12॥
कभी किसी ने मांगी भिक्षा, दो बाबा मुझको संतान।
एवं अस्तु तब कहकर साई, देते थे उसको वरदान॥13॥
स्वयं दुःखी बाबा हो जाते, दीन-दुःखी जन का लख हाल।
अन्तःकरण श्री साई का, सागर जैसा रहा विशाल॥14॥
भक्त एक मद्रासी आया, घर का बहुत ब़ड़ा धनवान।
माल खजाना बेहद उसका, केवल नहीं रही संतान॥15॥
लगा मनाने साईनाथ को, बाबा मुझ पर दया करो।
झंझा से झंकृत नैया को, तुम्हीं मेरी पार करो॥16॥
कुलदीपक के बिना अंधेरा, छाया हुआ घर में मेरे।
इसलिए आया हँूबाबा, होकर शरणागत तेरे॥17॥
कुलदीपक के अभाव में, व्यर्थ है दौलत की माया।
आज भिखारी बनकर बाबा, शरण तुम्हारी मैं आया॥18॥
दे-दो मुझको पुत्र-दान, मैं ऋणी रहूंगा जीवन भर।
और किसी की आशा न मुझको, सिर्फ भरोसा है तुम पर॥19॥
अनुनय-विनय बहुत की उसने, चरणों में धर के शीश।
तब प्रसन्न होकर बाबा ने , दिया भक्त को यह आशीश॥20॥
`अल्ला भला करेगा तेरा´ पुत्र जन्म हो तेरे घर।
कृपा रहेगी तुझ पर उसकी, और तेरे उस बालक पर॥21॥
अब तक नहीं किसी ने पाया, साई की कृपा का पार।
पुत्र रत्न दे मद्रासी को, धन्य किया उसका संसार॥22॥
तन-मन से जो भजे उसी का, जग में होता है उद्धार।
सांच को आंच नहीं हैं कोई, सदा झूठ की होती हार॥23॥
मैं हूं सदा सहारे उसके, सदा रहूँगा उसका दास।
साई जैसा प्रभु मिला है, इतनी ही कम है क्या आस॥24॥
मेरा भी दिन था एक ऐसा, मिलती नहीं मुझे रोटी।
तन पर कप़ड़ा दूर रहा था, शेष रही नन्हीं सी लंगोटी॥25॥
सरिता सन्मुख होने पर भी, मैं प्यासा का प्यासा था।
दुिर्दन मेरा मेरे ऊपर, दावाग्नी बरसाता था॥26॥
धरती के अतिरिक्त जगत में, मेरा कुछ अवलम्ब न था।
बना भिखारी मैं दुनिया में, दर-दर ठोकर खाता था॥27॥
ऐसे में एक मित्र मिला जो, परम भक्त साई का था।
जंजालों से मुक्त मगर, जगती में वह भी मुझसा था॥28॥
बाबा के दर्शन की खातिर, मिल दोनों ने किया विचार।
साई जैसे दया मूर्ति के, दर्शन को हो गए तैयार॥29॥
पावन शिरडी नगर में जाकर, देख मतवाली मूरति।
धन्य जन्म हो गया कि हमने, जब देखी साई की सूरति॥30॥
जब से किए हैं दर्शन हमने, दुःख सारा काफूर हो गया।
संकट सारे मिटै और, विपदाओं का अन्त हो गया॥31॥
मान और सम्मान मिला, भिक्षा में हमको बाबा से।
प्रतिबिम्‍िबत हो उठे जगत में, हम साई की आभा से॥32॥
बाबा ने सन्मान दिया है, मान दिया इस जीवन में।
इसका ही संबल ले मैं, हंसता जाऊंगा जीवन में॥33॥
साई की लीला का मेरे, मन पर ऐसा असर हुआ।
लगता जगती के कण-कण में, जैसे हो वह भरा हुआ॥34॥
`काशीराम´ बाबा का भक्त, शिरडी में रहता था।
मैं साई का साई मेरा, वह दुनिया से कहता था॥35॥
सीकर स्वयंं वस्त्र बेचता, ग्राम-नगर बाजारों में।
झंकृत उसकी हृदय तंत्री थी, साई की झंकारों में॥36॥
स्तब़्ध निशा थी, थे सोए रजनी आंचल में चाँद सितारे।
नहीं सूझता रहा हाथ को हाथ तिमिर के मारे॥37॥
वस्त्र बेचकर लौट रहा था, हाय ! हाट से काशी।
विचित्र ब़ड़ा संयोग कि उस दिन, आता था एकाकी॥38॥
घेर राह में ख़ड़े हो गए, उसे कुटिल अन्यायी।
मारो काटो लूटो इसकी ही, ध्वनि प़ड़ी सुनाई॥39॥
लूट पीटकर उसे वहाँ से कुटिल गए चम्पत हो।
आघातों में मर्माहत हो, उसने दी संज्ञा खो॥40॥
बहुत देर तक प़ड़ा रह वह, वहीं उसी हालत में।
जाने कब कुछ होश हो उठा, वहीं उसकी पलक में॥41॥
अनजाने ही उसके मुंह से, निकल प़ड़ा था साई।
जिसकी प्रतिध्वनि शिरडी में, बाबा को प़ड़ी सुनाई॥42॥
क्षुब़्ध हो उठा मानस उनका, बाबा गए विकल हो।
लगता जैसे घटना सारी, घटी उन्हीं के सन्मुख हो॥43॥
उन्मादी से इ़धर-उ़धर तब, बाबा लेगे भटकने।
सन्मुख चीजें जो भी आई, उनको लगने पटकने॥44॥
और ध़धकते अंगारों में, बाबा ने अपना कर डाला।
हुए सशंकित सभी वहाँ, लख ताण्डवनृत्य निराला॥45॥
समझ गए सब लोग, कि कोई भक्त प़ड़ा संकट में।
क्षुभित ख़ड़े थे सभी वहाँ, पर प़ड़े हुए विस्मय में॥46॥
उसे बचाने की ही खातिर, बाबा आज विकल है।
उसकी ही पी़ड़ा से पीडित, उनकी अन्तःस्थल है॥47॥
इतने में ही विविध ने अपनी, विचित्रता दिखलाई।
लख कर जिसको जनता की, श्रद्धा सरिता लहराई॥48॥
लेकर संज्ञाहीन भक्त को, गा़ड़ी एक वहाँ आई।
सन्मुख अपने देख भक्त को, साई की आंखें भर आई॥49॥
शांत, धीर, गंभीर, सिन्धु सा, बाबा का अन्तःस्थल।
आज न जाने क्यों रह-रहकर, हो जाता था चंचल॥50॥
आज दया की मू स्वयं था, बना हुआ उपचारी।
और भक्त के लिए आज था, देव बना प्रतिहारी॥51॥
आज भिक्त की विषम परीक्षा में, सफल हुआ था काशी।
उसके ही दर्शन की खातिर थे, उम़ड़े नगर-निवासी।52॥
जब भी और जहां भी कोई, भक्त प़ड़े संकट में।
उसकी रक्षा करने बाबा, आते हैं पलभर में॥53॥
युग-युग का है सत्य यह, नहीं कोई नई कहानी।
आपतग्रस्त भक्त जब होता, जाते खुद अन्र्तयामी॥54॥
भेदभाव से परे पुजारी, मानवता के थे साई।
जितने प्यारे हिन्दू-मुस्लिम, उतने ही थे सिक्ख ईसाई॥55॥
भेद-भाव मंदिर-मिस्जद का, तोड़-फोड़ बाबा ने डाला।
राह रहीम सभी उनके थे, कृष्ण करीम अल्लाताला॥56॥
घण्टे की प्रतिध्वनि से गूंजा, मिस्जद का कोना-कोना।
मिले परस्पर हिन्दू-मुस्लिम, प्यार बढ़ा दिन-दिन दूना॥57॥
चमत्कार था कितना सुन्दर, परिचय इस काया ने दी।
और नीम कडुवाहट में भी, मिठास बाबा ने भर दी॥58॥
सब को स्नेह दिया साई ने, सबको संतुल प्यार किया।
जो कुछ जिसने भी चाहा, बाबा ने उसको वही दिया॥59॥
ऐसे स्नेहशील भाजन का, नाम सदा जो जपा करे।
पर्वत जैसा दुःख न क्यों हो, पलभर में वह दूर टरे॥60॥
साई जैसा दाता हमने, अरे नहीं देखा कोई।
जिसके केवल दर्शन से ही, सारी विपदा दूर गई॥61॥
तन में साई, मन में साई, साई-साई भजा करो।
अपने तन की सुधि-बुधि खोकर, सुधि उसकी तुम किया करो॥62॥
जब तू अपनी सुधि तज, बाबा की सुधि किया करेगा।
और रात-दिन बाबा-बाबा, ही तू रटा करेगा॥63॥
तो बाबा को अरे ! विवश हो, सुधि तेरी लेनी ही होगी।
तेरी हर इच्छा बाबा को पूरी ही करनी होगी॥64॥
जंगल, जगंल भटक न पागल, और ढूंढ़ने बाबा को।
एक जगह केवल शिरडी में, तू पाएगा बाबा को॥65॥
धन्य जगत में प्राणी है वह, जिसने बाबा को पाया।
दुःख में, सुख में प्रहर आठ हो, साई का ही गुण गाया॥66॥
गिरे संकटों के पर्वत, चाहे बिजली ही टूट पड़े।
साई का ले नाम सदा तुम, सन्मुख सब के रहो अड़े॥67॥
इस बूढ़े की सुन करामत, तुम हो जाओगे हैरान।
दंग रह गए सुनकर जिसको, जाने कितने चतुर सुजान॥68॥
एक बार शिरडी में साधु, ढ़ोंगी था कोई आया।
भोली-भाली नगर-निवासी, जनता को था भरमाया॥69॥
जड़ी-बूटियां उन्हें दिखाकर, करने लगा वह भाषण।
कहने लगा सुनो श्रोतागण, घर मेरा है वृन्दावन॥70॥
औषधि मेरे पास एक है, और अजब इसमें शिक्त।
इसके सेवन करने से ही, हो जाती दुःख से मुिक्त॥71॥
अगर मुक्त होना चाहो, तुम संकट से बीमारी से।
तो है मेरा नम्र निवेदन, हर नर से, हर नारी से॥72॥
लो खरीद तुम इसको, इसकी सेवन विधियां हैं न्यारी।
यद्यपि तुच्छ वस्तु है यह, गुण उसके हैं अति भारी॥73॥
जो है संतति हीन यहां यदि, मेरी औषधि को खाए।
पुत्र-रत्न हो प्राप्त, अरे वह मुंह मांगा फल पाए॥74॥
औषधि मेरी जो न खरीदे, जीवन भर पछताएगा।
मुझ जैसा प्राणी शायद ही, अरे यहां आ पाएगा॥75॥
दुनिया दो दिनों का मेला है, मौज शौक तुम भी कर लो।
अगर इससे मिलता है, सब कुछ, तुम भी इसको ले लो॥76॥
हैरानी बढ़ती जनता की, लख इसकी कारस्तानी।
प्रमुदित वह भी मन- ही-मन था, लख लोगों की नादानी॥77॥
खबर सुनाने बाबा को यह, गया दौड़कर सेवक एक।
सुनकर भृकुटी तनी और, विस्मरण हो गया सभी विवेक॥78॥
हुक्म दिया सेवक को, सत्वर पकड़ दुष्ट को लाओ।
या शिरडी की सीमा से, कपटी को दूर भगाओ॥79॥
मेरे रहते भोली-भाली, शिरडी की जनता को।
कौन नीच ऐसा जो, साहस करता है छलने को॥80॥
पलभर में ऐसे ढोंगी, कपटी नीच लुटेरे को।
महानाश के महागर्त में पहुँचा, दूँ जीवन भर को॥81॥
तनिक मिला आभास मदारी, क्रूर, कुटिल अन्यायी को।
काल नाचता है अब सिर पर, गुस्सा आया साई को॥82॥
पलभर में सब खेल बंद कर, भागा सिर पर रखकर पैर।
सोच रहा था मन ही मन, भगवान नहीं है अब खैर॥83॥
सच है साई जैसा दानी, मिल न सकेगा जग में।
अंश ईश का साई बाबा, उन्हें न कुछ भी मुश्किल जग में॥84॥
स्नेह, शील, सौजन्य आदि का, आभूषण धारण कर।
बढ़ता इस दुनिया में जो भी, मानव सेवा के पथ पर॥85॥
वही जीत लेता है जगती के, जन जन का अन्तःस्थल।
उसकी एक उदासी ही, जग को कर देती है वि£ल॥86॥
जब-जब जग में भार पाप का, बढ़-बढ़ ही जाता है।
उसे मिटाने की ही खातिर, अवतारी ही आता है॥87॥
पाप और अन्याय सभी कुछ, इस जगती का हर के।
दूर भगा देता दुनिया के, दानव को क्षण भर के॥88॥
स्नेह सुधा की धार बरसने, लगती है दुनिया में,
गले परस्पर मिलने लगते, जान जान है आपस में॥89॥
ऐसे ही अवतारी साई, मृत्युलोक में आकर।
समता का यह पाठ पढ़ाया, सबको अपना आप मिटाकर ॥90॥
नाम द्वारका मिस्जद का, रखा शिरडी में साई ने।
दाप, ताप, संताप मिटाया, जो कुछ आया साई ने॥91॥
सदा याद में मस्त राम की, बैठे रहते थे साई।
पहर आठ ही राम नाम को, भजते रहते थे साई॥92॥
सूखी-रूखी ताजी बासी, चाहे या होवे पकवान।
सौदा प्यार के भूखे साई की, खातिर थे सभी समान॥93॥
स्नेह और श्रद्धा से अपनी, जन जो कुछ दे जाते थे।
बड़े चाव से उस भोजन को, बाबा पावन करते थे॥94॥
कभी-कभी मन बहलाने को, बाबा बाग में जाते थे।
प्रमुदित मन में निरख प्रकृति, छटा को वे होते थे॥95॥
रंग-बिरंगे पुष्प बाग के, मंद-मंद हिल-डुल करके।
बीहड़ वीराने मन में भी स्नेह सलिल भर जाते थे॥96॥
ऐसी समुधुर बेला में भी, दुख आपात, विपदा के मारे।
अपने मन की व्यथा सुनाने, जन रहते बाबा को घेरे॥97॥
सुनकर जिनकी करूणकथा को, नयन कमल भर आते थे।
दे विभूति हर व्यथा, शांति, उनके उर में भर देते थे॥98॥
जाने क्या अद्भुत शिक्त, उस विभूति में होती थी।
जो धारण करते मस्तक पर, दुःख सारा हर लेती थी॥99॥
धन्य मनुज वे साक्षात् दर्शन, जो बाबा साई के पाए।
धन्य कमल कर उनके जिनसे, चरण-कमल वे परसाए॥100॥
काश निर्भय तुमको भी, साक्षात् साई मिल जाता।
वर्षों से उजड़ा चमन अपना, फिर से आज खिल जाता॥101॥
गर पकड़ता मैं चरण श्री के, नहीं छोड़ता उम्रभर॥
मना लेता मैं जरूर उनको, गर रूठते साई मुझ पर॥102॥

 

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Shri Shani Chalisa Lyrics in English

Doha

Jai Ganesh Girija Suwan, Mangal Karan Krupaal.
Deenan Ke Dhuk Dhoor Kari, Kheejai Naath Nihaal
Jai Jai Sri Shanidev Prabhu, Sunahu Vinay Maharaaj
Karahu Krupa Hey Ravi Thanay, Rakhahu Jan Ki Laaj.

Jayathi Jayathi Shani Dayaala,
Karath Sadha Bhakthan Prathipaala.
Chaari Bhuja, Thanu Shyam Viraajai,
Maathey Rathan Mukut Chavi Chaajai.

Param Vishaal Manohar Bhaala,
Tedi Dhrishti Bhrukuti Vikraala.
Kundal Shravan Chamaacham Chamke,
Hiye Maal Mukthan Mani Dhamkai.

Kar Me Gadha Thrishul Kutaara,
Pal Bich Karai Arihi Samhaara.
Pinghal, Krishno, Chaaya, Nandhan,
Yum, Konasth, Raudra, Dhuk Bhamjan.

Sauri, Mandh Shani, Dhasha Naama,
Bhanu Puthra Poojhin Sab Kaama.
Jaapar Prabu Prasan Havain Jhaahin,
Rakhhun Raav Karai Shan Maahin.

Parvathhu Thrun Hoi Nihaarath,
Thrunhu Ko Parvath Kari Daarath.
Raaj Milath Ban Raamhin Dheenhyo,
Kaikeyihu Ki Mathi Hari Linhiyo.

Banhu Mae Mrug Kapat Dhikaayi,
Maathu Janki Gayi Churaayi.
Lashanhin Shakthi Vikal Kari Daara,
Machiga Dhal Mae Haahaakaar.

Raavan Ki Ghathi-Mathi Bauraayi,
Ramchandra Soan Bair Badaayi.
Dhiyo Keet Kari Kanchan Lanka,
Baji Bajarang Beer Ki Danka.

Nrup Vikram Par Thuhin Pagu Dhaara,
Chitra Mayur Nigli Gai Haara.
Haar Naulakka Laagyo Chori,
Haath Pair Darvaayo Thori.

Bhaari Dhasha Nikrusht Dhikaayo
Thelhin Ghar Kholhu Chalvaayo.
Vinay Raag Dheepak Mah Khinhayo,
Thab Prasann Prabhu Hvai Sukh Dheenhayo.

Harishchandrahun Nrup Naari Bhikani,
Aaphun Bharen Dome Gar Paani.
Thai nal par dasha sirani’
Bhunji-Meen Koodh Gayi Paani.

Sri Shankarhin Gahyo Jab Jaayi,
Paarvathi Ko Sathi Karaayi.
Thanik Vilokath Hi Kari Reesa,
Nabh Udi Gayo Gaurisuth Seesa.

Paandav Par Bhay Dasha Thumhaari,
Bachi Draupadhi Hothi Udhaari.
Kaurav Ke Bi Gathi Mathi Maaryo,
Yudh Mahabharath Kari Daryo.

Ravi Kah Mukh Mahn Dhari Thathkala,
Lekar Koodhi Paryo Paathaala.
Sesh Dhev-Lakhi Vinthi Laayi,
Ravi Ko Mukh Thay Dhiyo Chudaayi.

Vaahan Prabhu Kay Sath Sujana,
Juj Dhigaj Gadharbh Mrugh Swaana.
Jambuk Sinh Aadhi Nakh Dhari,
So Phal Jyothish Kahath Pukari.

Gaj Vahan Lakshmi Gruha Aavai,
Hay Thay Sukh Sampathi Upjaavai.
Gadharbh Haani Karai Bahu Kaaja,
Sinha Sidhkar Raaj Samaja.

Jhambuk Budhi Nasht Kar Darai,
Mrug Dhe Kasht Praan Samharai.
Jab Aavahi Prabu Svan Savaari,
Choru Aaadhi Hoy Dar Bhaari.

Thaishi Chaari Charan Yuh Naama,
Swarn Laoh Chaandhi Aru Thama.
Lauh Charan Par Jab Prabu Aavain,
Daan Jan Sampathi Nashta Karavain.

Samatha Thaamra Rajath Shubhkari ,
Swarn Sarva Sarva Sukh Mangal Bhaari.
Jo Yuh Shani Charithra Nith Gavai,
Kabahu Na Dasha Nikrushta Sathavai.

Adhbuth Nath Dhikavain Leela,
Karain Shatru Kay Nashi Bhali Deela.
Jo Pundith Suyogya Bulvaayi
Vidhvath Shani Gruha Shanthi Karayi.

Peepal Jal Shani Diwas Chadavath,
Deep Dhaan Dhai Bahu Sukh Pawath.
Kahath Raam Sundhar Prabu Dhasa,
Shani Sumirath Sukh Hoth Prakasha.

Doha

Path Shanishchar Dev Ko, Ki Ho Bhakt Taiyaar,
Karat Path Chalis Din, Ho Bhavasaagar Paar.

 

शनि चालीसा

 

  • शनि चालीसा एक भक्तिपूर्ण प्रार्थना है जो भगवान शनि को समर्पित है। यह चालीसा चालीस श्लोकों का समूह है जो भगवान शनि की प्रशंसा करता है और उनकी कृपा की मांग करता है। चालीसा भगवान शनि के पवित्र गुणों और आदर्शों का वर्णन करती है और उनके धर्मनिरपेक्ष और अदालती स्वरूप की महत्वता पर बल देती है। शनि चालीसा में शनि देव की आरती, मंत्र, शनि महाराज की कथा, भजन, शनि देव की महिमा, स्तोत्र हिंदी और गुजराती ऑडियो के साथ सामग्री शामिल है।
  • शनि चालीसा आरती में भगवान शनि की दिव्य गुणों की महिमा और उनकी भूमिका को उजागर किया गया है। यह चालीसा शनि के श्रद्धालु बनने के लिए और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए मांग करती है। इसके श्लोकों में भक्ति, विश्वास और भगवान शनि की कृपा और संरक्षा की आकांक्षा व्यक्त की गई है।
  • शनि चालीसा हिंदी का नियमित जाप करने या सुनने से विशेष रूप से शनि के अनुकूल प्रभावों को कम करने में सहायता मिलती है और भगवान शनि को प्रसन्न करने में मदद करती है। भक्त अपने जीवन में दुःखों को शांत करने, चुनौतियों को पार करने और जीवन के विभिन्न पहलुओं में आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उनकी कृपा की कामना करते हैं।
  • श्री शनि चालीसा को आमतौर पर भगवान शनि के विशेष अवसरों पर पठाया जाता है, जैसे कि शनिवार को या शनि जयंती के दिन। यह उनकी दिव्य हस्तक्षेप की मांग करने के लिए एक प्रभावशाली उपकरण माना जाता है और उनकी दैवी हस्तक्षेप की प्राप्ति के लिए माध्यम के रूप में उपयोगी होता है।
  • शनि मंत्र ज्ञान, ध्यान और आराधना के लिए उपयोगी होता है। यह मंत्र शनि देव के आराधना में जाप किया जाता है और उनकी कृपा और आशीर्वाद को प्राप्त करने में सहायता प्रदान करता है। इसका जाप शनि दोष, कर्मिक बंधन और अन्य ग्रह सम्बन्धी समस्याओं के निवारण में भी मददगार साबित होता है।

 

श्री शनि चालीसा

॥ दोहा ॥

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल ।
दीनन के दुःख दूर करि , कीजै नाथ निहाल ॥1॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु , सुनहु विनय महाराज ।
करहु कृपा हे रवि तनय , राखहु जन की लाज ॥2॥

जयति जयति शनिदेव दयाला । करत सदा भक्तन प्रतिपाला ॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै । माथे रतन मुकुट छवि छाजै ॥

परम विशाल मनोहर भाला । टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला ॥

कुण्डल श्रवन चमाचम चमके । हिये माल मुक्तन मणि दमकै ॥

कर में गदा त्रिशूल कुठारा । पल बिच करैं अरिहिं संहारा ॥
पिंगल, कृष्णो, छाया, नन्दन । यम, कोणस्थ, रौद्र, दुःख भंजन ॥

सौरी, मन्द शनी दश नामा । भानु पुत्र पूजहिं सब कामा ॥
जापर प्रभु प्रसन्न हवैं जाहीं । रंकहुं राव करैं क्षण माहीं ॥

पर्वतहू तृण होइ निहारत । तृणहू को पर्वत करि डारत ॥
राज मिलत वन रामहिं दीन्हयो । कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो ॥

वनहुं में मृग कपट दिखाई । मातु जानकी गई चुराई ॥
लषणहिं शक्ति विकल करिडारा । मचिगा दल में हाहाकारा ॥

रावण की गति-मति बौराई । रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई ॥
दियो कीट करि कंचन लंका । बजि बजरंग बीर की डंका ॥

नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा । चित्र मयूर निगलि गै हारा ॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी । हाथ पैर डरवायो तोरी ॥

भारी दशा निकृष्ट दिखायो । तेलहिं घर कोल्हू चलवायो ॥
विनय राग दीपक महँ कीन्हयों । तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों ॥

हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी । आपहुं भरे डोम घर पानी ॥
तैसे नल पर दशा सिरानी । भूंजी-मीन कूद गई पानी ॥

श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई । पारवती को सती कराई ॥
तनिक विकलोकत ही करि रीसा । नभ उड़ि गतो गौरिसुत सीसा ॥

पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी । बची द्रोपदी होति उधारी ॥
कौरव के भी गति मति मारयो । युद्ध महाभारत करि डारयो ॥

रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला । लेकर कूदि परयो पाताला ॥
शेष देव-लखि विनती लाई । रवि को मुख ते दियो छुड़ाई ॥

वाहन प्रभु के सात सुजाना । जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना ॥
जम्बुक सिह आदि नख धारी । सो फल ज्योतिष कहत पुकारी ॥

गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं । हय ते सुख सम्पत्ति उपजावै ॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा । सिह सिद्ध्कर राज समाजा ॥

जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै । मृग दे कष्ट प्राण संहारै ॥
जब आवहिं स्वान सवारी । चोरी आदि होय डर भारी ॥

तैसहि चारि चरण यह नामा । स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा ॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं । धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं ॥

समता ताम्र रजत शुभकारी । स्वर्ण सर्वसुख मंगल भारी ॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै । कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै ॥

अद्भुत नाथ दिखावैं लीला । करैं शत्रु के नशि बलि ढीला ॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई । विधिवत शनि ग्रह शांति कराई ॥

पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत । दीप दान दै बहु सुख पावत ॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा । शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा ॥

॥ दोहा ॥

पाठ शनिश्चर देव को, की हों ‘भक्त’ तैयार ।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार ॥

॥इति श्री शनि चालीसा॥

  • यहां एक प्रमुख शनि मंत्र दिया गया है:

ॐ शं शनैश्चराय नमः॥ (Om Sham Shanishchraya Namah)

  • इस मंत्र को ध्यानपूर्वक और नियमित रूप से जाप किया जाना चाहिए। यह शनि देव की कृपा और आशीर्वाद को प्राप्त करने में सहायता प्रदान करता है। यदि आप शनि दोष से पीड़ित हैं या शनि ग्रह से संबंधित किसी भी समस्या का सामना कर रहे हैं, तो शनि मंत्र का नियमित जाप आपके लिए उपयोगी साबित हो सकता है।

 

 

 

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