गायत्री चालीसा – Gayatri Chalisa Lyrics Hindi, Gujarati PDF

गायत्री चालीसा(Gayatri Chalisa) एक ऐसा पवित्र पाठ है जो माता गायत्री की महिमा का वर्णन करता है। प्रतिदिन लाखों लोगों द्वारा गायत्री चालीसा आरती का पाठ करते है। यह चालीसा 40 छंदों में रचित है और इसे नियमित पढ़ने से जीवन में शांति, सकारात्मकता और आध्यात्मिक शक्ति का अनुभव होता है। इस लेख में हम गायत्री चालीसा, उसके लाभ, पाठ विधि, और आरती के बारे में विस्तार से जानेंगे।

 

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हिन्दू धर्म में के सारे देवी-देवताओं है, जिनमें से गायत्री माता का भी प्रतिदिन आराधना होती है। माता गायत्री का वेदों की देवी के रूप से पूजा जाता है। इस चालीसा का स्थान हिन्दू धर्म के भक्तों में एक विशेष रूप से है। भक्तों द्वारा गायत्री माता का हवन भी किया जाता है। इस हवन में गायत्री चालीसा अर्थ सहित मंत्र एवं आरती भी की जाती है। हर भक्त गायत्री चालीसा और आरती पढ़ने और सुनने के लिए अपने नजदीकी गायत्री मंदिर में जाते है।

क्या आप गायत्री चालीसा लिखित में इमेज या PDF फाइल ढूढ़ रहे हो? गायत्री चालीसा लिखित में प्रारंभिक लिरिक्स “भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी” से शुरू होता है। पूरी गायत्री चालीसा लिरिक्स पढ़ने के लिए आप गायत्री चालीसा pdf डाउनलोड कर सकते हैं। गायत्री चालीसा आरती सहित आप इस लेख में पढ़ेंगे और सुनेंगे।

गायत्री चालीसा पढ़ने के फायदे कुछ इस तरह से है:

(१) मानसिक शांति: गायत्री चालीसा पाठ नियमित पढ़ने से मन को शांति और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।

(२) आध्यात्मिक उन्नति: गायत्री चालीसा आरती पाठ आध्यात्मिक ज्ञान और आत्मविश्वास को बढ़ाता है।

(३) स्वास्थ्य में सुधार: गायत्री चालीसा आरती लिरिक्स पढ़ने से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में लाभ मिलता है।

(४) संकटों से मुक्ति: गायत्री चालीसा पढ़ने से सभी प्रकार की मुश्किलों को दूर करता है।

॥ दोहा ॥
हीं श्रीं, क्लीं, मेधा, प्रभा, जीवन ज्योति प्रचण्ड ।
शांति, क्रांति, जागृति, प्रगति, रचना शक्ति अखण्ड ॥
जगत जननि, मंगल करनि, गायत्री सुखधाम ।
प्रणवों सावित्री, स्वधा, स्वाहा पूरन काम ॥

॥ चालीसा ॥
भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी ।
गायत्री नित कलिमल दहनी ॥१॥

अक्षर चौबिस परम पुनीता ।
इनमें बसें शास्त्र, श्रुति, गीता ॥

शाश्वत सतोगुणी सतरुपा ।
सत्य सनातन सुधा अनूपा ॥

हंसारुढ़ सितम्बर धारी ।
स्वर्णकांति शुचि गगन बिहारी ॥४॥

पुस्तक पुष्प कमंडलु माला ।
शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला ॥

ध्यान धरत पुलकित हिय होई ।
सुख उपजत, दुःख दुरमति खोई ॥

कामधेनु तुम सुर तरु छाया ।
निराकार की अदभुत माया ॥

तुम्हरी शरण गहै जो कोई ।
तरै सकल संकट सों सोई ॥८॥

सरस्वती लक्ष्मी तुम काली ।
दिपै तुम्हारी ज्योति निराली ॥

तुम्हरी महिमा पारन पावें ।
जो शारद शत मुख गुण गावें ॥

चार वेद की मातु पुनीता ।
तुम ब्रहमाणी गौरी सीता ॥

महामंत्र जितने जग माहीं ।
कोऊ गायत्री सम नाहीं ॥१२॥

सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै ।
आलस पाप अविघा नासै ॥

सृष्टि बीज जग जननि भवानी ।
काल रात्रि वरदा कल्यानी ॥

ब्रहमा विष्णु रुद्र सुर जेते ।
तुम सों पावें सुरता तेते ॥

तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे ।
जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे ॥१६॥

महिमा अपरम्पार तुम्हारी ।
जै जै जै त्रिपदा भय हारी ॥

पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना ।
तुम सम अधिक न जग में आना ॥

तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा ।
तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेषा ॥

जानत तुमहिं, तुमहिं है जाई ।
पारस परसि कुधातु सुहाई ॥२०॥

तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई ।
माता तुम सब ठौर समाई ॥

ग्रह नक्षत्र ब्रहमाण्ड घनेरे ।
सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे ॥

सकलसृष्टि की प्राण विधाता ।
पालक पोषक नाशक त्राता ॥

मातेश्वरी दया व्रत धारी ।
तुम सन तरे पतकी भारी ॥२४॥

जापर कृपा तुम्हारी होई ।
तापर कृपा करें सब कोई ॥

मंद बुद्घि ते बुधि बल पावें ।
रोगी रोग रहित है जावें ॥

दारिद मिटै कटै सब पीरा ।
नाशै दुःख हरै भव भीरा ॥

गृह कलेश चित चिंता भारी ।
नासै गायत्री भय हारी ॥२८ ॥

संतिति हीन सुसंतति पावें ।
सुख संपत्ति युत मोद मनावें ॥

भूत पिशाच सबै भय खावें ।
यम के दूत निकट नहिं आवें ॥

जो सधवा सुमिरें चित लाई ।
अछत सुहाग सदा सुखदाई ॥

घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी ।
विधवा रहें सत्य व्रत धारी ॥३२॥

जयति जयति जगदम्ब भवानी ।
तुम सम और दयालु न दानी ॥

जो सदगुरु सों दीक्षा पावें ।
सो साधन को सफल बनावें ॥

सुमिरन करें सुरुचि बड़भागी ।
लहैं मनोरथ गृही विरागी ॥

अष्ट सिद्घि नवनिधि की दाता ।
सब समर्थ गायत्री माता ॥३६॥

ऋषि, मुनि, यती, तपस्वी, जोगी ।
आरत, अर्थी, चिंतित, भोगी ॥

जो जो शरण तुम्हारी आवें ।
सो सो मन वांछित फल पावें ॥

बल, बुद्घि, विघा, शील स्वभाऊ ।
धन वैभव यश तेज उछाऊ ॥

सकल बढ़ें उपजे सुख नाना ।
जो यह पाठ करै धरि ध्याना ॥४०॥

॥ दोहा ॥
यह चालीसा भक्तियुत, पाठ करे जो कोय ।
तापर कृपा प्रसन्नता, गायत्री की होय ॥

 

यहाँ पर आपने गायत्री चालीसा लिरिक्स हिंदी में पढ़े। अब हम यहाँ पर नीचे दिए गए टेबल में Gayatri Chalisa PDF फाइल दी रखी है। आप यह फाइल का डाउनलोड कर सकते है।

DetailsInformation
PDF NAMEGayatri Chalisa PDF
No. Of Pages4
PDF Size108 KB
LanguageHindi

गायत्री चालीसा और आरती को लिखित में या pdf फॉर्मेट में पढ़ने के लिए आप ऑनलाइन गायत्री चालीसा pdf डाउनलोड कर सकते हैं। यह फाइल हिंदी और गुजराती में उपलब्ध है। यदि आप गायत्री चालीसा एवं आरती को सुनना चाहते हैं, तो इसे किसी भी पूजा मोबाइल ऐप या ऑनलाइन म्यूजिक प्लेटफॉर्म पर सुन सकते हैं।

To read Gayatri Chalisa fast, you can download Gayatri Chalisa Gujarati PDF from the below table.

DetailsInformation
PDF NAMEGayatri Chalisa Gujarati PDF
No. Of Pages2
PDF Size140 KB
LanguageGujarati

 
जयति जय गायत्री माता।
सुर भूप विमलामति ज्योति॥

तुम सम्पति तुम ही धन धान्य।
अवगुण गणन भूलति भक्त जननी॥

चालीसा सोहवीं आरती ज्योति।
भावें भक्ति निवारे गायत्री माता॥

सत्य धर्म शक्ति ब्रह्मा जग पालक।
नमो नमो तुम सद्गति पारवाल॥

सब दुख भयहीनि तुम तारिणी।
भक्तार्ति हारिणि सुखदायिनी॥

विद्या बुद्धि देहि मोहिनी त्रिजगजननी।
भक्ति भाव निवारणी गायत्री माता॥

मंगल स्वरूपी जगदम्बे शरणागती।
नमो नमो तुम शरणागती॥

जयति जय गायत्री माता।
सुर भूप विमलामति ज्योति॥

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गायत्री चालीसा पढ़ने से क्या होता है?

गायत्री चालीसा का पाठ प्रतिदिन पढ़ने से आपके मनोबल में वृद्धि होती है। घर या ऑफिस में आप यह चालीसा पढ़ते है, नकारात्मक ऊर्जा का विनाश होता है। यह चालीसा के अलावा आप गायत्री मंत्र और आरती भी कर सकते है।

गायत्री मंत्र कब नहीं पढ़ना चाहिए?

गायत्री मंत्र आपको मांस, मछली या मदिरा पान का सेवन करने के बाद कभी नहीं करना चाहिए।

क्या हम बिना स्नान के गायत्री मंत्र का जाप कर सकते हैं?

नहीं, आप बिना स्नान के गायत्री मंत्र का जाप नहीं कर सकते हैं। आप यह मंत्र पढ़ने से पहले स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनें।

गायत्री मंत्र कितने दिनों में सिद्ध होता है?

गायत्री मंत्र सिद्ध होने का कोई समय की सीमा नहीं है। हाँ, आप अगर यह मंत्र का जाप सही तरह से पुरे मन से प्रतिदिन पढ़ते है, आप यह मंत्र एक दिन में भी पढ़ सकते है।

असली गायत्री मंत्र कौन सा है?

असली गायत्री मंत्र कुछ इस तरह से है:

ॐ भूर्भुवः स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्।।