Kamakhya Devi Kavach in Hindi with Black Magic and Benefits

कामाख्या कवच एक अदभुत धार्मिक रचना है। यह कवच भक्तों को नारी शक्ति के साथ जोड़ती है। इस अंक में हम आपको इस कवच के लिरिक्स, इसका पाठ करने का रहस्य और इसका क्या महत्व है वह सारी जानकारी आप यहाँ पर पा सकेंगे।

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Kamakhya Kavach

हिन्दू धर्म में ऐसे तो कई सारे देवी देवता है मगर नारी शक्ति को प्रस्थापित करने वाली माँ कामाख्या देवी प्रचलित है।आख़िरकार क्यों इस कवच का पाठ करना उचित है? इसके जवाब में कई लोग ऐसा मानते है की इस कवच का पाठ कोई तांत्रिक रूप और विधि से किया जाये तो ज्यादातर इसमें सफलता मिलती है। असम स्थित कामाख्या मंदिर के गर्भ गृह में देवी की योनि को प्रस्थापित किया गया है जहाँ पर सैकड़ो भक्तों द्वारा तांत्रिक विधि की जाती है। कई भक्तों द्वारा इस कवच का पाठ वही करते है जहाँ पर यह उचित है। आप कुछ समय और स्थल पे ही आप इसका पाठ कर सकते हो।

Kamakhya Devi Black Magic

आत्मरक्षा – इस कवच का पाठ करने का एक ही उद्देश्य हो सकता है की आत्मा रक्षा। ऐसे तो बहुत सारे उद्देश्य हो सकते है परन्तु मुख्य रूप से जो नारी के प्रति जो दुर्व्यवहार किया जाता है उसके चलते यह कवच का पाठ करना अति उचित मन जा रहा है।

कामाख्या देवी कवच (Kamakhya Devi Kavach) – यह कवच एक अदभुत आध्यात्मिक और रोगों से मुक्त करने वाला यंत्र है जो भक्तों को देवी के साथ जुटे रहने में मदद करता है और उनका आध्यात्मिक विचार और दृष्टि को एक सही राह पर ले जाने में भी मददगार साबित होता है।

आध्यात्मिक विकास – ऐसे तो कई सारे लोग है जो उनकी युवा अवस्था में ही आध्यात्मिक राह से जुड़े हुए होते है। ऐसा नहीं की आप आध्यात्मिक राह से जुड़े नहीं हो तो आप यह कामाख्या देवी का कवच नहीं पढ़ सकते। लेकिन हा, अगर आपको आध्यात्मिक मार्ग के युवा अवस्था में ही पता है तो आप इस चीज़ से जुड़ी सारी बातें समझने में आसानी रहती है। कामाख्या देवी कवच का पाठ किसी उम्र के व्यक्ति और भक्त कर सकते है। इसमें उम्र की कोई पाबंदी नहीं है। यह कवच का पाठ आप शुरू करते हो तो आपको आध्यात्मिक विकास में मददरुप होता है। इसके अलावा, कामाख्या देवी चालीसा और कामाख्या स्तोत्रम का पाठ नियमित रूप से पढ़ते हो, तो आपको अपनी आध्यात्मिक विकास में उन्नति देखने को मिल सकती है।

Kamakhya Devi Kavach

कवचं कीदृशं देव्या, महा-भय-निवर्तकम्। कामाख्यायास्तु तद् ब्रूहि, साम्प्रतं मे महेश्वर।।

श्रीमहादेव उवाच:

श्रृणुष्व परमं गुह्यं, महा-भय-निवर्तकम्। कामाख्यायाः सुर-श्रेष्ठ, कवचं सर्व-मंगलम्।।

यस्य स्मरण-मात्रेण, योगिनी-डाकिनी-गणाः। राक्षस्यो विघ्न-कारिण्यो। याश्चात्म-विघ्नकारिकाः।।

क्षुत्-पिपासा तथा निद्रा, तथाऽन्ये ये च विघ्नदाः। दूरादपि पलायन्ते, कवचस्य प्रसादतः।।

निर्भयो जायते मर्त्यस्तेजस्वी भैरवोपमः। समासक्त-मनासक्त-मनाश्चापि, जप-होमादि-कर्मसु।।

भवेच्च मन्त्र-तन्त्राणां, निर्विघ्नेन सु-सिद्धये।।

अथ कवचम्:

ॐ प्राच्यां रक्षतु मे तारा, कामरुप-निवासिनी। आग्नेय्यां षोडशी पातु, याम्यां धूमावती स्वयम्।।

नैऋत्यां भैरवी पातु, वारुण्यां भुवनेश्वरी। वायव्यां सततं पातु, छिन्न-मस्ता महेश्वरी।।

कौबेर्यां पातु मे नित्यं, श्रीविद्या बगला-मुखी। ऐशान्यां पातु मे नित्यं, महा-त्रिपुर-सुन्दरी।।

ऊर्ध्वं रक्षतु मे विद्या, मातंगी पीठ-वासिनी। सर्वतः पातु मे नित्यं, कामाख्या-कालिका स्वयम्।।

ब्रह्म-रुपा महाविद्या, सर्वविद्यामयी-स्वयम्। शीर्षे रक्षतु मे दुर्गा, भालं श्री भव-मोहिनी।।

त्रिपुरा भ्रू-युगे पातु, शर्वाणी पातु नासिकाम्। चक्षुषी चण्डिका पातु, श्रोत्रे नील-सरस्वती।।

मुखं सौम्य-मुखी पातु, ग्रीवां रक्षतु पार्वती। जिह्वां रक्षतु मे देवी, जिह्वा ललन-भीषणा।।

वाग्-देवी वदनं पातु, वक्षः पातु महेश्वरी। बाहू महा-भुजा पातु, करांगुलीः सुरेश्वरी।।

पृष्ठतः पातु भीमास्या, कट्यां देवी दिगम्बरी। उदरं पातु मे नित्यं, महाविद्या महोदरी।।

उग्रतारा महादेवी, जंघोरु परि-रक्षतु। गुदं मुष्कं च मेढ्रं च, नाभिं च सुर-सुन्दरी।।

पदांगुलीः सदा पातु, भवानी त्रिदशेश्वरी। रक्त-मांसास्थि-मज्जादीन्, पातु देवी शवासना।।

महा-भयेषु घोरेषु, महा-भय-निवारिणी। पातु देवी महा-माया, कामाख्या पीठ-वासिनी।।

भस्माचल-गता दिव्य-सिंहासन-कृताश्रया। पातु श्रीकालिका देवी, सर्वोत्पातेषु सर्वदा।।

रक्षा-हीनं तु यत् स्थानं, कवचेनापि वर्जितम्। तत् सर्वं सर्वदा पातु, सर्व-रक्षण-कारिणी।।

फल-श्रुति:

इदं तु परमं गुह्यं, कवचं मुनि-सत्तम! कामाख्याया मयोक्तं ते, सर्व-रक्षा-करं परम्।।

अनेन कृत्वा रक्षां तु, निर्भयः साधको भवेत्। न तं स्पृशेद् भयं घोरं, मन्त्र-सिद्धि-विरोधकम्।।

जायते च मनः-सिद्धिर्निर्विघ्नेन महा-मते! इदं यो धारयेत् कण्ठे, बाही वा कवचं महत्।।

अव्याहताज्ञः स भवेत्, सर्व-विद्या-विशारदः। सर्वत्र लभते सौख्यं, मंगलं तु दिने-दिने।।

यः पठेत् प्रयतो भूत्वा, कवचं चेदमद्भुतम्। स देव्याः पदवीं याति, सत्यं सत्यं न संशयः।।

 

कामाख्या मंदिर में योनि की पूजा क्यों करते हैं?

कामाख्या मंदिर में योनि पूजा इसीलिए की जाती है ताकि नारी की शक्ति और साधना में मदद, संतान प्राप्ति, और पारंपरिक कथा के आधीन यहाँ खास विशेष रूप से पूजा की जाती है।

कामाख्या देवी किसकी कुलदेवी है?

कामाख्या देवी को महाकाली, महागौरी, महासरस्वती, और महालक्ष्मी रूपों में पूजा जाता है और इनका संबध दक्ष प्रजापति की पुत्री सती और शिवजी की पत्नी की भूमि से भी है। कामाख्या देवी बड़गूजर राजवंश की शाखा सिकरवार राजपूतों की कुलदेवी भी हैं।

कामाख्या मंदिर में किस चीज की अनुमति नहीं है?

कामाख्या मंदिर में कोई व्यक्ति किसी भी चीज को लेकर अंधविश्वास या परंपरागत दृष्टिकोण के खिलाफ किसी भी अनुमति का दावा नहीं कर सकता है।

क्या पुरुषों को कामाख्या मंदिर जाने की अनुमति है?

कामाख्या मंदिर में पुरुषों का प्रवेश कुछ मुख्य तिथियों, तहेवार और परंपरागत नियमों के अनुसार होता है। मुख्य रूप से पुरुषो को शक्ति पीठ क्षेत्र में जाने की अनुमति नहीं है। यह क्षेत्र में सिर्फ महिलाएं जा के देवी की पूजा कर सकती है।