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Assam Kamakhya Devi Mandir: History, Online Ticket, Website & Guest House

 

भारत में हर मंदिर का अपना अदभुत रहस्य और इतिहास होता है। असम के कामाख्या देवी मंदिर (Assam Kamakhya Devi Mandir) का इतिहास भी कुछ इस तरह का है। यह मंदिर बहुत पुराने समय से ही भारतीय साहित्य, कला, और अमानत का हिस्सा रहा है। इस मंदिर का इतिहास अजीब है और इसकी विशेषता उसके विचित्र रूप, पूजा विधि, और समर्पण से जुड़ी हुई है। हम यहाँ पर कामाख्या देवी मंदिर के इतिहास, ऑनलाइन टिकट, वेबसाइट, और गेस्ट हाउस की जुड़ी सारी जानकारी की विस्तृत में चर्चा करेंगे।

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History Of Kamakhya Temple

कामाख्या देवी मंदिर की का इतिहास की मूल बहुत गहराई तक फैली हुई है। ऐसा माना जाता है कि यह उन शक्तिपीठों में से एक है जहां देवी सती के प्रजनन अंग गिरे थे वहां पर सदियों से कई पुनर्जीवित और व्यापक हुए हैं।

 

कामाख्या मंदिर धार्मिकता का केंद्र है। भक्तों द्वारा इस देवी की पूजा और अर्चना की जाती है। यह पूजा और अर्चना कामाख्या मंदिर में निर्माण करी गई धार्मिक चित्रपट का सबूत हैं। हर एक समारोह का अपना अनोखा महत्व है, जो इस पवित्र स्थल पर आध्यात्मिक ऊर्जा और अनुभव का अहसास दिलाता है। यह समारोह न केवल देवी कामाख्या का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए हैं बल्कि व्यक्तियों को मंदिर की कठिन ऊर्जा का अनुभव करने की भी संमति देते हैं। यह देवी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भक्तों इस प्रयोग में भाग भी ले सकते है।

Pooja Name Timings
Aarti Darshan (आरती दर्शन) Morning: 5:30 AM – 6:30 AM
Evening: 4:30 PM – 5:30 PM
Special Aarti (विशेष आरती) Morning: 6:30 AM – 7:00 AM
Evening: 5:30 PM – 6:00 PM
Ashtottara Archana (अष्टोत्तर अर्चना) Morning: 7:00 AM – 9:30 AM
Evening: 1:30 PM – 2:30 PM
Rudrabhishek (रुद्राभिषेक) Morning: 9:30 AM – 11:00 AM
Purnahuti (पूर्णाहुति) Morning: After the Rudrabhishek
Navagraha Pooja (नवग्रह पूजा) Morning: 10:00 AM – 12:00 PM
Prasadam Distribution (प्रसाद वितरण) After Morning Aarti and throughout the day
Bhandara Seva (भंडारा सेवा) Daily from 12:00 PM (noon) onwards
Kamakhya Temple Timings & Pooja Vidhi

Karu Kamakhya

कामाख्या देवी मंदिर भारत के असम राज्य में है। यह हिन्दू धर्म का एक मुख्य धार्मिक स्थल है। इस मंदिर का नाम ‘कामाख्या’ संस्कृत में ‘काम’ यानि इच्छा और ‘अख्या’ यानि आचरण जुड़ा हुआ है, जिसका अर्थ है ‘इच्छा का आचरण’। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में देवी सती की योनि यानि गर्भाशय गिरा था, और यहां पर प्रतिवर्ष देवी का मासिक अवसर में प्रवेश होता है, इसे कामाख्या के रूप में पूजा जाता है।

इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। महाभारत में रणभूमि में युद्ध हो रहा था और अर्जुन ने कृष्ण के साथ युद्ध में भाग नहीं लेने का निर्णय किया था। उन्होंने अपनी रथ को रथ के पीछे की चल पड़े और कामाख्या क्षेत्र की और बढ़ गए, जहां उन्होंने अपने आप को ब्राह्मण बनाकर रहने का निर्णय किया। वहां पर उन्होंने भगवती कामाख्या से अश्वमेध यज्ञ की सलाह मांगी और उन्हें यज्ञ सफलता प्राप्त हुई। इस कारण से कामाख्या मंदिर को यज्ञ शाला भी कहा जाता है।

Significance Of Kamakhya Devi Mandir

Goddess Kamakhya (देवी कामाख्या) –

 यह मंदिर देवी कामाख्या की शक्ति का साक्षात्कार और नारी शक्ति को समर्पित किया गया है। तीर्थ यात्रा पर आने वाले भक्तों की बड़ी संख्या इस मंदिर में देवी से आशीर्वाद लेने ले लिए आते है।

Yoni Peeth (योनि पीठ)-

 इस मंदिर के गर्भगृह में योनि पीठ है, वह दिव्य स्त्री ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करने वाला एक मुख्य संकेत है। यहाँ पर किया गया हर काम एक तांत्रिक प्रथाओं के साथ किया जाता है।

Yajna Shala (यज्ञ शाला)-

कामाख्या देवी मंदिर को दूसरा यज्ञ शाला के रूप में जाना जाता है, इसे उस प्रसंग से जोड़ा जाता है जहां पर महाभारत में जब अर्जुन ने जीत के लिए देवी से सलाह ली थी।

(Kamakhya Temple) मंदिर की विशेषताएँ 

गर्भगृह –

 इस मंदिर का मुख्य स्थान गर्भगृह है, जहां पर पुजारी देवी की पूजा और अर्चना करते हैं और भक्तों उनकी कृपा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए यहां आते हैं।

योनिपीठ –

 इस मंदिर में योनिपीठ का स्थान अतिशय महत्वपूर्ण है, जो देवी का पवित्र योनि प्रतिष्ठित है।

कामरूप कामख्या पीठ –

 इस मंदिर को कामरूप कामख्या पीठ के रूप में भी जाना जाता है, जो शक्ति पीठों में से एक मुख्य है।

बिल्व पत्र यज्ञ –

 इस मंदिर में एक अदभुत परंपरा है जिसमें भक्तों शक्तिपीठ के लिए बिल्व पत्र यज्ञ करते हैं, जिसे योनि यज्ञ भी जाना जाता है।

महाकाली गुफा –

 इस मंदिर के पास महाकाली गुफा भी है, जो भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है जहां वे तपस्या और पूजा करते हैं।

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Online Ticket Booking and Website Of Assam Kamakhya Devi Mandir

आप यह नीचे दिए गए टेबल से ऑनलाइन डोनेशन, मंदिर की ऑफिसियल वेबसाइट और टिकट बुक करने की जानकारी प्राप्त कर सकते है।

Online Ticket Booking and Website Of Assam Kamakhya Devi Mandir

ऑनलाइन टिकट बुकिंग और वेबसाइट (Kamakhya Devi Mandir)

कामाख्या देवी मंदिर के लिए ऑनलाइन टिकट बुकिंग उपलब्ध है जिससे आप पवित्र स्थलों का आनंद ले सकते हैं। इसकी आधिकारिक वेबसाइट से आप यात्रा की सम्बंधित विस्तृत जानकारी, योनि यज्ञ और अन्य सामान्य जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

Kamakhya Temple Guest House

कामाख्या देवी मंदिर के आसपास कई गेस्ट हाउस हैं जो यात्रिओं को सुरक्षित और आरामदायक मकान या रूम की व्यवस्था उपलब्ध करते हैं। यात्रा के दौरान यहां रहने के लिए आप ऑनलाइन बुकिंग कर सकते हैं जिससे आपकी यात्रा सुखद और आरामदायक होगी। आप यह नीचे दिए गए टेबल से गेस्ट हाउस बुक करने की जानकारी प्राप्त कर सकते है।

Description Website
For Trust Guest House Inquiry Kamakhya Temple Trust Guest House
Kamakhya Temple Guest House

Kamakhya Temple

कामाख्या देवी मंदिर का यात्रा करना एक अदभुत और आध्यात्मिक अनुभव है। इस मंदिर को इसकी पवित्रता, ऐतिहासिक महत्व, और धार्मिक प्रस्थान ने इसे भारतीय सांस्कृतिक परंपरा का एक हिस्सा बना दिया है।

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FAQ’s

कामाख्या मंदिर क्यों प्रसिद्ध है?

कामाख्या मंदिर भारत के उत्तरपूर्वी राज्य असम में आया है और यह हिन्दू धर्म के एक अदभुत तांत्रिक शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। इसकी मुख्य देवी को “कामाख्या” से जाना जाता है और यहां के मंदिर को एक प्रमुख शक्ति पीठ के रूप में पूजा की जाती है।

कामाख्या मंदिर की असली कहानी क्या है?

कामाख्या मंदिर की कहानी तांत्रिक और पूर्वकालीन वास्तविकता पर आधारित है और यह देवी कामाख्या की प्रसिद्ध विक्रमादित्य गुप्त वंश की रानी कामाख्या देवी से संबंधित है। इस मंदिर को दिव्य शक्ति पीठ के रूप में जाना जाता है और इसका संबंध तांत्रिक साधना और शक्ति पूजा से है।

कामाख्या मंदिर कौन से 3 दिन बंद रहता है?

कामाख्या मंदिर में सालाना में एक बार, देवी कामाख्या की मासिक पुराण के दौरान, मंदिर के तीन दिनों के लिए बंद होता है। इस समय को अम्बुबाची मेला कहा जाता है। यह मेला संबंधित भक्तों के लिए विशेष महत्वपूर्ण है।

यह मेला वर्ष के एक विशेष मासिक तिथि के दौरान होता है, जिसमें मंदिर में देवी कामाख्या के संदर्भ में कैद रहती हैं। इस समय पे मंदिर के दरबार में आराधना नहीं होती और तीन दिनों की बाद मंदिर फिर से खुलता है। इस समय पे मंदिर में तिर्थयात्री, यात्री, और श्रद्धालु आने वाले होते हैं ताकि वे इस महत्वपूर्ण महाविद्या योग में भाग लें सके।

कामाख्या मंदिर कब जाना चाहिए?

कामाख्या मंदिर की यात्रा करने का समय धार्मिक और सांस्कृतिक संबंधों, पूर्वकालीन वास्तविकता, और विविध उत्सवों के आधार पर विभिन्न मास और तिथियों पर निर्भर करता है। नवरात्रि, अम्बुबाची मेला, आषाढ़ मास के पूर्णिमा, माघ मास के संक्रांति की दौरान कामाख्या मंदिर का दौरा करना विशेष लाभदायी हो सकता है ।

कामाख्या देवी को क्या चढ़ाया जाता है?

कामाख्या देवी को पूजा के दौरान कुमकुम और चंदन, फूलों की माला, नींबू, नारियल और फल, दीपों की माला, धूप और अगरबत्ती, अन्न और प्रसाद की चीजें चढ़ाई जाती हैं जो भक्तों की भक्ति और श्रद्धा देवी के लिए प्रगट करती है।

Ganga Aarti: Haridwar, Rishikesh & Varanasi (Banaras) Time

भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा में गंगा नदी को माँ गंगा (Ganges) के रूप में पूजा जाता है और उसकी आरती (Ganga Aarti) सुंदरता और भक्ति का संगम है। हम हरिद्वार, ऋषिकेश और वाराणसी (Haridwar, Rishikesh & Varanasi (Banaras) ) में होने वाली गंगा आरतियों के समयों की चर्चा करेंगे।

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Ganga Aarti Haridwar

हरिद्वार में गंगा आरती गंगा घाट पर होती है और यह दृश्य देखने लायक है। सुन्दर दीपों की रौशनी, धूप, चमकते हुए पुष्पों की वर्षा और भक्तों की भक्तिभाव आवाज में इस आरती का समापन होता है। प्रतिदिन संध्याकाल को यह आरती रोचक और शांतिपूर्ण वातावरण में होती है।

In Haridwar, Ganga Aarti happens at Ganga Ghat, and the view is worth seeing. This Aarti ends with the light of beautiful lamps, sunlight, a shower of shining flowers, and the devotional voices of the devotees. In the evening, Aarti happens in an interesting and peaceful environment.

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Ganga Aarti Rishikesh

ऋषिकेश में गंगा आरती त्रिवेणी घाट पर होती है और यह आरती मुख्यरूप से सांस्कृतिक अनुभव का अहसास दिलाती है। प्रतिदिन संध्याकाल को इस आरती का आयोजन होता है, जिसमें पुष्प, दीप, और संगीत से गंगा का पूजन किया जाता है। इस आरती की ताल और शोभा अपने आप में एक धार्मिक अनुभव का अहसास दिलाती है।

In Rishikesh, Ganga Aarti happens at Triveni Ghat, and this Aarti mainly gives a feeling of cultural experience. This Aarti is organised every day in the evening. The Ganga is worshipped with flowers, lamps, and music. The flow and charm of this aarti give the feeling of a religious experience in itself.

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Ganga Aarti Varanasi (Banaras)

वाराणसी, जिसे हम प्यार से काशी कहते हैं। काशी गंगा के किनारे पर स्थित है और यहां गंगा आरती प्रतिदिन शाम को की जाती है। यह आरती मणिकर्णिका घाट पर की जाती है। यह आरती ब्राह्मण पुजारियों के द्वारा की जाती है। प्रतिदिन शाम को इस आरती में नृत्य, दीपों की माला और आरती की भक्ति एक अद्‌भुत वातावरण बनाती हैं।

Varanasi, which is also called Kashi. Kashi is situated on the banks of the Ganga. Every day, Ganga Aarti is performed by Pujari. This aarti is performed at Manikarnika Ghat. This aarti is done by Brahmin priests. Every evening in this Aarti, dance, the circle of lamps, and the devotion of the Aarti create a wonderful atmosphere.

Haridwar Evening, typically around sunset. (6:00 pm to 7:00 pm)
Rishikesh Evening, after sunset. (6:00 PM – 7:00 PM)
Varanasi Evening, after sunset. 6:30 PM post sundown in summer and 7:00 PM in winters
हरिद्वार शाम, आमतौर पर सूर्यास्त के आसपास. शाम 7 बजे (Approximately)
ऋषिकेश शाम, सूर्यास्त के बाद. शाम 7 बजे (Approximately)
वाराणसी (काशी) शाम, सूर्यास्त के बाद. शाम 7 बजे (Approximately)

गंगा आरती हरिद्वार, ऋषिकेश और वाराणसी में एक सुंदर धार्मिक और सांस्कृतिक अनुभव प्रदान करती हैं। यह सभी जगह पे भक्तों की भीड़ जमा होती है। यह दृश्य जब हम हर शाम को देखते है तब हम अपने मन में शांति का अहसास पाते है। ये आरतियां गंगा को एक माता की भावना से की जाती हैं और भक्तों से आध्यात्मिक संबंध के साथ जुड़ी रहती हैं। यह माहौल इतना सुंदर होता है की हर भक्त के मन में भक्ति और शांति का अहसास दिलाता है, जो भारतीय सांस्कृतिक सदियों से चली आ रही परंपरा का प्रणाम है।

Ganga Aarti gives a beautiful religious and cultural experience in Haridwar, Rishikesh, and Varanasi. Devotees gather at these places for Aarti. When we see this scene every evening, we feel peace in our minds. These aartis are performed in the spirit of Ganga and are associated with a spiritual connection with the devotees. This aarti gives a feeling of devotion and peace in the mind of every devotee, which is a tribute to the Indian cultural tradition.

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FAQ’s


गंगा आरती कब शुरू होती है?

गंगा आरती हर शहर में अलग अलग समय पे होती है। हर शहर में लगभग शाम के समयों में होती है। यह आरती श्रृंगार और संध्याकाल आरती के रूप में जानी जाती है।

गंगा जी का मंत्र क्या है?

गंगा जी का मंत्र भक्तों द्वारा बोले जाते हैं। यहां कुछ मुख्य मंत्र हैं जो गंगा माता की आराधना में बोले जाते हैं:

(1) गंगा ध्यान मंत्र:
“ॐ गंगे च यमुने चैव, गोदावरी सरस्वती। नर्मदे सिंधु कावेरी जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु।”

(2) गंगा आरती मंत्र:
“जय गंगे मैया, जय यमुने मैया, जय गोदावरी मैया, जय सरस्वती मैया। जय नर्मदे मैया, जय सिंधु मैया, जय कावेरी मैया, जय जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु।”

(3) गंगा चालीसा मंत्र:
“ॐ जय गंगे माता, मैया जय गंगे माता। जो नर तुमको ध्याता, मन वांछित फल पाता। चंद्र सियों रजत मुख में, मुण्डमाल तन छारी। जटाजूट शिर गाली फूलत मन हारी। भारी श्रृंगार सोहे, छवि को अति सुंदर छाया। विपिन विहारिणी या तु शोक नाशिनी दिन राति। जनक भाग्य विधाता।”

गंगा आरती कितने बजे होता है?

गंगा आरती का समय हमने हर शहर के लिए यहाँ पर दिखाया गया है। यह समय में बदलाव हो सकता है। यहाँ पर तीन शहर के गंगा आरती का समय कुछ इस तरह से है:

(1) हरिद्वार

श्रृंगार आरती: सुबह 5:30 बजे
सायंकाल आरती: शाम 6:00 बजे

(2) रिशिकेश:
श्रृंगार आरती: सुबह 5:30 बजे
सायंकाल आरती: शाम 5:30 बजे

(3) वाराणसी (काशी):

श्रृंगार आरती: सुबह 4:00 बजे
सायंकाल आरती: शाम 6:00 बजे

गंगा जी की आरती कैसे होती है?

गंगा आरती एक सांस्कृतिक रीती रिवाज से होती है जो गंगा नदी के किनारे कई स्थानों पर मनाई जाती है, जैसे कि हरिद्वार, ऋषिकेश, और वाराणसी। यहां गंगा आरती की सामान्य विधि दी जा रही है –

(1) सजावट –
आरती की तैयारी सजावट के साथ होती है, जैसे कि दीप, फूल, धूप, और पुष्पों से होती है। पुजारी और भक्तों इसे आध्यात्मिक भावना के साथ आरती की सजावट करते हैं।

(2) आरती की शुरुआत –
आरती का समय आते ही, पुजारी दीपों को जलाने की तैयारी करते हैं। धूप का अद्भुत धुंआ और संगीत की मिठास से मिलकर, आरती की शुरुआत होती है।

(3) आरती गाने का समय –
पुजारी गंगा माता को याद करते हुए आरती गाना शुरु करते हैं। पुजारी के साथ हर कोई भक्त अपने हाथ से ताली बजाते है और इस आरती के बोल को पुजारी के साथ उच्चारण भी करते है।

(4) दीपों का दर्शन –
गंगा आरती के दौरान जलते हुए दीपों का दर्शन करना एक बेहद सूंदर दृश्य होता है। दीपों की रौशनी नदी के पावन जल में दिखाई देती है।

(5) समापन –
आरती के समापन के समय पुजारी और भक्त मिलकर देवी-देवता और गंगा माता से प्रार्थना करते हैं और सभी लोग गंगा माता से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

हरिद्वार में गंगा आरती कब होती है?

हरिद्वार में गंगा आरती सुबह के समय पर श्रृंगार आरती और शाम को सायंकाल आरती के रूप में होती है।


गंगा का असली नाम क्या है?

गंगा नदी का असली नाम भागीरथी है। भागीरथी नाम उसके प्रथम मुख्य नृत्य कर्ता भगीरथ के नाम पर से रखा गया है, जिन्होंने इसे अपने तपस्या और प्रार्थना से भगवान शिव से व्यवहार करने के लिए प्राप्त किया था।

Ram Mandir Pran Pratishtha Geet: श्री राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा अभियान गीत

राम मंदिर, भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक वास्तविकता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस नये युग की शुरुआत में, राम मंदिर का पुनर्निर्माण करना वह हमारे लिए एक भव्य समर्पण का पल है, यह क्षण हमें राष्ट्रीय एकता, अखंडता, और भारतीय होने की अनुभूति कराता है। इस अद्भुत समय में, हम राम मंदिर प्राणप्रतिष्ठा के इस कठिन संकल्प को ‘श्री राम मंदिर प्राणप्रतिष्ठा गीत’ (Ram Mandir Pran Pratishtha Geet) के माध्यम से आप तक पहुंचना चाहते है।

 

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राम मंदिर 

भारतीय समाज में राम मंदिर को एक सांस्कृतिक और धार्मिक स्थल को एक भाग्य के रूप से माना जाता है। । इस शानदार पर्व में, हम एक नए अध्याय की शुरुआत कर रहे हैं जिसका नाम है ‘श्री राम मंदिर प्राणप्रतिष्ठा गीत’। यह गीत हमें अद्भुत क्षण की महत्व को समझाने के लिए मददरूप साबित होगा। ।

राम मंदिर प्राणप्रतिष्ठा गीत | Ram Mandir Pran Pratishtha Geet

इस गीत में समाविष्ट होने वाला संगीत हमें राम मंदिर के प्राणप्रतिष्ठा के अद्भुत महत्व को समझाएगा। यह गीत हमें एक सांस्कृतिक और धार्मिक समर्पण का अहसास दिलाएगा, भारत का हर नागरिक इसे एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक अधिकार समझ के इस गीत के हर लिरिक्स गाते हुए खुद पर गर्व महसूस करेगा।

 

श्री रघुवर जी के अवधपुरी में
प्राण प्रतिष्ठा होना है
निमन्त्रण को स्वीकार करो
अब सबको अयोध्या चलना है


जय बजरंगी जय हनुमान
वन्दे मातरम जय श्री राम
श्री राम जय राम जय जय राम
वन्दे मातरम, जय श्री राम


इस मंदिर को पाने हेतु
बार बार संघर्ष हुआ
राम भक्तों के बलिदानो से
मंदिर बन कर खङा हुआ
अब मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा


धुम धाम से होना है
निमन्त्रण को स्वीकार करो
अब सबको अयोध्या चलना है
जय बजरंगी जय हनुमान
वन्दे मातरम जय श्री राम


श्री राम जय राम जय जय राम
वन्दे मातरम जय श्री राम
पोष शुक्ल पक्ष द्वादशी को
प्राण प्रतिष्ठा होना है


मंदिर में कीर्तन भजन हो
घर घर दीया जलाना है
मंदिर भव्य बनाकर हमनें
अपना वचन निभाया है


निमन्त्रण को स्वीकार करो
अब सबको अयोध्या चलना है
जय बजरंगी जय हनुमान
वन्दे मातरम जय श्री राम


श्री राम जय राम जय जय राम
गांव गांव के मन्दिर मठ में
सबको एकत्रित करना है
श्री राम की प्राण प्रतिष्ठा


जन जन मे दिखलाना है हिन्दू संस्कृति को जन जन मे जगाना है।

भगवान राम की भक्ति को जगाना है।

मन्दिर सजा है जैसा ऐसे ही दिल को सजाना है।

मन्दिर भव्य बना है हमारा ऐसे ही हर देश वासी के दिल बड़े हो

भारत में राम लहर को जगाओ भारत से ऊठ कर राम लहर

विश्व लहर बन जायेगी भारत विश्व गुरु कहलाता है। 

राम मन्दिर राम राज्य की स्थापना है

श्री राम जय राम जय जय राम भारत में

हर घर हर मन्दिर को पुष्पो से सजाना है
श्री राम की प्रथम आरती
मिलकर सबको गाना है


निमन्त्रण को स्वीकार करो
अब सबको अयोध्या चलना है
जय बजरंगी जय हनुमान

श्री राम जय राम जय जय राम

वन्दे मातरम जय श्री राम
श्री रघुवर जी के अवधपुरी में


प्राण प्रतिष्ठा होना है
निमन्त्रण को स्वीकार करो
अब सबको अयोध्या चलना है

जय बजरंगी जय हनुमान
वन्दे मातरम जय श्री राम

श्री राम जय राम जय जय राम

 

गीत का भाव – Shri Ram Mandir Ayodhya Pran Pratishtha Abhiyan Song

इस गीत में राग, ताल, और गीतकारी की लय से भरा हुआ है। गीत के हर शब्द हमें राम मंदिर के प्राणप्रतिष्ठा के महत्वपूर्ण क्षण को समझने का एक अद्भुत अलग अंदाज प्रदान करता है। इसमें राम की भक्ति और उनकी समर्पण शक्ति का अजीब भाव छुपे हैं, जो हमें भारत के हर नागरिक के अंदर एक सकारात्मक सोच प्रदान करता है।

सांस्कृतिक समर्पण का महत्व

गीत के माध्यम से हमें यह अहसास होगा कि राम मंदिर का निर्माण एक विशेष उत्सव नहीं है, यह हमारे समृद्धि और एकता की दिशा में भारत के हर व्यक्ति का एक विशेष समर्पण है। इस समर्पण के माध्यम से हम अपनी सांस्कृतिक संपत्ति को सुरक्षित रखने के लिए एक बड़ा कदम बढ़ा रहे हैं।

 

प्राण प्रतिष्ठा से जुड़ा पहला भजन रिलीज

मिट्टी से चौका लीपो तुम, वंदनवार सजाओ

भांति-भांति के व्यंजन रखकर, प्रभु को भोग लगाओ

मुग्ध मगन हो नृत्य करो तुम, छोड़ के सारे काम

भवन में आए हैं श्रीराम, अवध में आए हैं श्रीराम।

अखियां जो वर्षों से प्यासी, उसकी प्यास बुझाओ

केवट ने जैसे पग धोए, नैनन जल बरसाओ

भवसागर को पार करो तुम लेकर उनका नाम

भवन में आए हैं श्रीराम, अवध में आए हैं श्रीराम

द्वार पे रंगोली सजाकर, उसपर दीप जलाओ

पीढ़े पर बिठाकर प्रभु को, खुद सबरी बन जाओ

तीन लोक में सबसे सुंदर रामलला का धाम

भवन में आए हैं श्रीराम, अवध में आए हैं श्रीराम

सरयू जी के पावन जल में पुष्प लिए नर-नारी हैं

साधु राजा खड़े हैं, स्वागत की तैयारी है

रामलला की चरण धूल का नहीं है कोई दाम

भवन में आए हैं श्रीराम, अवध में आए हैं श्रीराम

 

भावनात्मक संबंध

यह गीत हमें राम मंदिर के प्राणप्रतिष्ठा के उत्सव पर हमें अद्भुत और भावनात्मक क्षणों की ओर जाने की अनुमति का अहसास दिलाता है, इस गीत में जुड़े हुए संगीत और शब्दों का तालमेल हमें एक अनोखा अनुभव में ले जाएगा। यह गीत के उच्चारण के समय राम भक्तों भक्ति और समर्पण की गहरी भावना महसूस कर सकेंगे।

‘श्री राम मंदिर प्राणप्रतिष्ठा गीत’ (Shri Ram Mandir Ayodhya Pran Pratishtha Abhiyan Song) के माध्यम से हम सभी राम मंदिर प्राणप्रतिष्ठा के इस अद्भुत उत्सव हम अयोध्या में मनाएंगे। राम मंदिर की प्राणप्रतिष्ठा महोत्सव में हम सभी मिलकर एक नए युग की शुरुआत करेंगे।

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Nag Panchami Ki Puja, Vidhi in Hindi 2024: नाग पंचमी

नाग पंचमी हिन्दू धर्म का त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। इस त्यौहार में सर्पों (नागों) की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है की सर्पों की पूजा इसीलिए की जाती है क्यों की इनसे मानव जीवन को सर्पों से रक्षा मिलती है। यह पर्व श्रावण मास के पांचवें दिन को मनाया जाता है, जिसको हम नाग पंचमी के दिन से जानते है। नाग पंचमी के दिन भगवान सर्पों की पूजा करने भक्तों को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। हम इस अंक में आपको नाग पंचमी की पूजा के महत्व और इसकी विधि के बारे में जानकारी देंगे, तो इसे आप नागपंचमी के दिन यह विधि कर सकते है।

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नाग पंचमी का महत्व 

Importance of Nag Panchami Ki Puja

नाग पंचमी का महत्व बहुत सदियों से परंपरागत चला आ रहा है। इस दिन सब भक्तगण शिवजी के मंदिर में दूध ले के जाते है। यह दूध नाग को चढ़ाते है। इसके आलावा सर्पों की पूजा की सामग्री भी साथ में लाते है। कई बार मंदिर में साप दूध पिने के लिए भी आते है। वह पर भक्तों सर्पों के सामने दिया भी जलाते है। ऐसा माना जाता है की जब कोई साप आप को नागपंचमी के दिन दिख जाये तो आप का दिन अच्छा जाता है। गांव में ज्यादातर खेत में सर्पों की छोटा सा मंदिर होता है, जहां पर खेत मालिक उस मंदिर में सर्पों की फोटो या मूर्ति के सामने पूजा विधि करते है। उस मंदिर में दूध का कटोरा भी रखते है। ऐसा माना जाता है की जब खेत में कोई व्यक्ति की आना जानी नहीं होती है, तब साप उस मंदिर में आके कटोरे में से दूध पिजाने के बाद मंदिर में से चला जाता है। कई सारे राज्य में नागपंचमी का त्यौहार अलग अलग रूप से मनाया जाता है।

नाग पंचमी की तारीख
नाग पंचमी वर्ष के श्रावण मास के पांचवें दिन मनाई जाती है, जो हर साल जुलाई या अगस्त महीने के आसपास आती है।

नाग पंचमी की पूजा का महत्व – Importance of Nagula Panchami

सर्पों की रक्षा – Nagula panchami का मुख्य उद्देश्य सर्पों की रक्षा करना है। यह त्यौहार व्यक्ति को सर्प संबधित कोई समस्या हो तो इसे निवारण करने के लिए सर्पों की पूजा की जाती है।

काल सर्प दोष से मुक्ति – इस मानवजीवन में कई व्यक्तियों के जन्मकुंडली में काल सर्प दोष होता है। इस काल सर्प दोष से मुक्ति पाने के लिए आपको कोई ना कोई विधि करनी पड़ती है। अगर ऐसे व्यक्ति नाग पंचमी के दिन सर्पों की पूजा करते है और ब्राह्मण के बताये हुए नियम से विधि करते ह। तो हर व्यक्ति अपने जीवन में काल सर्प दोष से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं।

आशीर्वाद और शांति – विशेष रूप से सर्पों की पूजा करने से व्यक्ति को आशीर्वाद प्राप्त होता हैं और उन्हें अपने जीवन में आनेवाली सारी मुसीबतों से मुक्ति मिलती है और वह व्यक्ति शांति, सुख, और समृद्धि की प्राप्ति को महसूस कर सकते है।

नाग पंचमी की पूजा कैसे करें – How to do Nag Panchami Pooja

पूजा स्थल की पसंदगी – सबसे पहले आपको पूजा के लिए एक शुभ स्थल को पसंद करें, जैसे कि एक मंदिर या पवित्र सरोवर। ध्यान रखे जो भी पूजा स्थल आप पसंद करते है, वह स्वच्छ होना चाहिए।

पूजा सामग्री – जब भी आप पूजा करने के लिए जाये, उसे पहले आप पूजा के लिए आवश्यक सामग्री जैसे कि दूध, पुष्प, फल, धूप, दीपक, कपड़ा, और नाग मूर्ति या फोटो हमेशा आपने साथ में लेके जाये।

पूजा का समय – Nag panchami puja करने का समय बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। अगर आप यह पूजा सुबह के समय करते है तो वह समय बहोत ही शुभ माना जाता है।

मंत्रों का पाठ – पूजा के दौरान मंत्रों का पाठ करें, जैसे कि ॐ नमः शिवाय और ॐ नागाय नमः। नाग पंचमी की पूजा के दौरान भगवान सर्पों की पूजा का महत्वपूर्ण मंत्र है ॐ नागाय नमः।

गरीबों को भोजन – पूजा (Nagula panchami) के बाद गरीबों को भोजन बाटें। अगर आप किसी गरीब को इस भोजन रूपी प्रसाद के स्वरुप में आप बाटतें हो तो इसे भगवान भोलेनाथ की कृपा आप पर सदा बनी रहेगी। यह कार्य करने से भोलेनाथ अपने भक्तों पे खुश होते है, और उनकी हर मनोकामना पूर्ण करते है।

Kaal Sarp Puja on Nag Panchami

 

काल सर्प पूजा आप नाग पंचमी के दिन करना चाहते है, तो हमने यहाँ पर इसका वर्णन किया है। आप यहाँ पर पढ़ सकते है:

जन्मकुंडली में काल सर्प दोष – काल सर्प दोष तब बनता है जब किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में सभी ग्रह राहु और केतु के बीच स्थित होते है। जब किसी व्यक्ति के जन्मकुंडली में यह दोष होता है, तब व्यक्ति अपने जीवन में चुनौतियाँ, अवरोध, और मुश्किलें पाता है। हर तरह से वह नासिपास हो जाता है। नाग पंचमी के दिन को इस दोष को दूर करने और कम करने का एक अच्छा समय माना जाता है।

अगर आप काल सर्प पूजा को नाग पंचमी के दिन करना चाहते है, तो यहां हमने कुछ बातें शामिल की हैं । We will know how to do Kaal Sarp Puja on Nag Panchami.

1. ज्योतिषज्ञ से संपर्क करें – हर व्यक्ति अपनी कुंडली में क्या समस्या चल रही होती है वह नहीं जानता। इसीलिए आप अपनी जन्मकुंडली को किसी अच्छे ज्योतिशास्त्र जानने वाले व्यक्ति का समपर्क करें। उनको अपनी जन्मकुंडली दिखाए। आपको अपने कुंडली में जो भी विधि करनी होगी वह आपको बता देंगे।

2. एक मंदिर को पसंद करे – वैसे तो यह पूजा कोई नदी के किनारे भी कर सकते है। पर ज्योतिषज्ञ के अनुसार काल सर्प पूजा करने के लिए कोई अच्छा मंदिर को पसंद करे। ज्यादातर इस पूजा को भगवान शिव के मंदिरों में की जाती है, क्योंकि भगवान शिव को काल सर्प दोष के मुक्ति देने के लिए सर्व श्रेष्ठ माना जाता है।

3. पूजा सामग्री तैयार करें – इस पूजा की शुरुआत करने से पहल आप आवश्यक पूजा सामग्री जैसे कि फूल, फल, धूप, कपूर, तिल, दूध, शहद, घी, और भगवान शिव के लिए अर्पण के लिए सामग्री तैयार करें।

4. अभिषेक करें – अभिषेक यानि जो भगवान शिव के शिवलिंग दूध, दही, शहद, घी, और पानी चढ़ाना। यह पूजा आमतौर पर अभिषेक के साथ शिवलिंग पर शुरू होती है, जिसमें विधि में दिखाए गए सामग्री के साथ मंत्र उच्चारित करते हुए किया जाता है।

5. मंत्र पढ़ें – जब भी आप यह पूजा में बैठे है, तो आपको भगवान शिव के लिए और काल सर्प दोष को कम करने के लिए उनकी आशीर्वाद की याचना करने वाले मंत्रों को पढ़ना चाहिए।