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Vishnu Sahasranamam Lyrics in Hindi with Stotram- Vishnumaya

विष्णु सहस्रनाम (Vishnu Sahasranamam Lyrics in Hindi Stotram) एक प्राचीन और मुख्य हिन्दू ग्रंथ है। यह ग्रंथ में भगवान विष्णु के 1000 नाम और उनकी महिमा का वर्णन किया गया है। यह ग्रंथ महाभारत के शांतिपर्व में धर्मराज युधिष्ठिर के द्वारका आगमन के समय ब्राह्मण जबल द्वारा इसे उपस्थित किया गया था। इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि विष्णु सहस्रनाम (Vishnu Sahasranamam Lyrics)  ग्रंथ का महत्व क्या है और इसके पढ़ाई से क्या लाभ होता हैं।

 

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विष्णु सहस्रनाम का महत्व

 

भगवान विष्णु की महिमा का वर्णन – यह ग्रंथ में भगवान विष्णु के 1000 नामों का उल्लेख किया गया है। यह ग्रंथ में भगवान श्री विष्णुजी की महिमा, गुण, और शक्तियों का वर्णन किया गया हैं। इस ग्रंथ की मदद से उनके भक्तों भगवान श्री विष्णु के दिव्य गुणों का स्मरण करने के लिए प्रतिदिन पढ़ते है।

ध्यान, साधना और आराधना-  ध्यान और साधना एक ऐसा मुख्य स्त्रोत है, जिसे हर व्यक्ति अपने जीवन को जप ध्यान और आध्यात्मिक से जुड़े रहते है। इस स्तोत्र का हर दिन पढ़ने से भगवान विष्णु अपने भक्तों पे प्रसन्ना रहते है। इस स्तोत्र के माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन को मानसिक शांति, आत्मा की सुख-शांति पाने के लिए प्रभु श्री विष्णु की आराधना करते है।

पुण्य पाना – इस का पाठ (vishnumaya sahasranamam) करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक पुण्य की प्राप्ति होती है।

कर्मों का परिणाम: इस संसार में “जैसी करनी वैसी भरनी” का शब्दप्रयोग हर व्यक्ति के जीवन को लागु पड़ता है। इस शब्दप्रयोग का अर्थ यह होता है, की आप जैसा कर्म करेंगे वैसा फल की प्राप्ति होगी। इसीलिए यह स्तोत्र का पाठ करने से कर्मों का सुखद परिणाम भक्तों को मिलता है।

आध्यात्मिक संवाद – इस भागदौड़ भरे संसार में हर कोई भक्त अपने प्रभु से सीधा संपर्क में रहना चाहता है। अर्थात हर भक्त की आखरी इच्छा यह होती है की वह अपने जीवन में भक्ति के मार्ग पर जाकर प्रभु विष्णु से आध्यात्मिक संवाद करने की आखरी इच्छा होती है। यह स्तोत्र हर व्यक्ति को अपने प्रभु से आध्यात्मिक संवाद करने में मददरूप साबित होता है।

 

Vishnumaya Sahasranamam

Om sree vishnumaya swamine namah
Om sree bhuvaneswaryai namah
Ohm shri ponnuni vishnumaye namaha
Ohm sri vishnumaya kuttichathaya namah

Aum namo bhagavathi balasatwaya, shivasuthaya, vishnumaya sahithaya,
Sachidananda, parabrahma, paramapurusha paramatmane hum phat swaha

Om shree vishnumaye namaha
Om gaurishankarasutaaya namaha

Om shree vishnumaye namaha
Om bhootaganaanvithaaya namaha

Om shree vishnumaye namaha
Om duritashamanaaya namaha

Om shree vishnumaye namaha
Om paramaanandaroopaaya namaha

Om shree vishnumaye namaha
Om dukkhavinaashakaaya namaha

Om shree vishnumaye namaha
Om maayaavigrahaaya namaha

Om shree vishnumaye namaha
Om dukkhavinaashakaaya namaha

Om shree vishnumaye namaha
Om mitrajanolsukhaaya namaha

Om shree vishnumaye namaha
Om vaavanapujitaaya namaha

Om shree vishnumaye namaha
Om akhilagunamurthaye

Om shree vishnumaye namaha
Om mangalaaya namaha
Om shree vishnumaye namaha

 

 

Vishnu Sahasranamam Lyrics Hindi Stotram

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:

ॐ विश्वं विष्णु: वषट्कारो भूत-भव्य-भवत-प्रभुः ।
भूत-कृत भूत-भृत भावो भूतात्मा भूतभावनः ।। 1 ।।

पूतात्मा परमात्मा च मुक्तानां परमं गतिः।
अव्ययः पुरुष साक्षी क्षेत्रज्ञो अक्षर एव च ।। 2 ।।

योगो योग-विदां नेता प्रधान-पुरुषेश्वरः ।
नारसिंह-वपुः श्रीमान केशवः पुरुषोत्तमः ।। 3 ।।

सर्वः शर्वः शिवः स्थाणु: भूतादि: निधि: अव्ययः ।
संभवो भावनो भर्ता प्रभवः प्रभु: ईश्वरः ।। 4 ।।

स्वयंभूः शम्भु: आदित्यः पुष्कराक्षो महास्वनः ।
अनादि-निधनो धाता विधाता धातुरुत्तमः ।। 5 ।।

अप्रमेयो हृषीकेशः पद्मनाभो-अमरप्रभुः ।
विश्वकर्मा मनुस्त्वष्टा स्थविष्ठः स्थविरो ध्रुवः ।। 6 ।।

अग्राह्यः शाश्वतः कृष्णो लोहिताक्षः प्रतर्दनः ।
प्रभूतः त्रिककुब-धाम पवित्रं मंगलं परं ।। 7।।

ईशानः प्राणदः प्राणो ज्येष्ठः श्रेष्ठः प्रजापतिः ।
हिरण्य-गर्भो भू-गर्भो माधवो मधुसूदनः ।। 8 ।।

ईश्वरो विक्रमी धन्वी मेधावी विक्रमः क्रमः ।
अनुत्तमो दुराधर्षः कृतज्ञः कृति: आत्मवान ।। 9 ।।

सुरेशः शरणं शर्म विश्व-रेताः प्रजा-भवः ।
अहः संवत्सरो व्यालः प्रत्ययः सर्वदर्शनः ।। 10 ।।

अजः सर्वेश्वरः सिद्धः सिद्धिः सर्वादि: अच्युतः ।
वृषाकपि: अमेयात्मा सर्व-योग-विनिःसृतः ।। 11 ।।

वसु:वसुमनाः सत्यः समात्मा संमितः समः ।
अमोघः पुण्डरीकाक्षो वृषकर्मा वृषाकृतिः ।। 12 ।।

रुद्रो बहु-शिरा बभ्रु: विश्वयोनिः शुचि-श्रवाः ।
अमृतः शाश्वतः स्थाणु: वरारोहो महातपाः ।। 13 ।।

सर्वगः सर्वविद्-भानु:विष्वक-सेनो जनार्दनः ।
वेदो वेदविद-अव्यंगो वेदांगो वेदवित् कविः ।। 14 ।।

लोकाध्यक्षः सुराध्यक्षो धर्माध्यक्षः कृता-कृतः ।
चतुरात्मा चतुर्व्यूह:-चतुर्दंष्ट्र:-चतुर्भुजः ।। 15 ।।

भ्राजिष्णु भोजनं भोक्ता सहिष्णु: जगदादिजः ।
अनघो विजयो जेता विश्वयोनिः पुनर्वसुः ।। 16 ।।

उपेंद्रो वामनः प्रांशु: अमोघः शुचि: ऊर्जितः ।
अतींद्रः संग्रहः सर्गो धृतात्मा नियमो यमः ।। 17 ।।

वेद्यो वैद्यः सदायोगी वीरहा माधवो मधुः।
अति-इंद्रियो महामायो महोत्साहो महाबलः ।। 18 ।।

महाबुद्धि: महा-वीर्यो महा-शक्ति: महा-द्युतिः।
अनिर्देश्य-वपुः श्रीमान अमेयात्मा महाद्रि-धृक ।। 19 ।।

महेष्वासो महीभर्ता श्रीनिवासः सतां गतिः ।
अनिरुद्धः सुरानंदो गोविंदो गोविदां-पतिः ।। 20 ।।

मरीचि:दमनो हंसः सुपर्णो भुजगोत्तमः ।
हिरण्यनाभः सुतपाः पद्मनाभः प्रजापतिः ।। 21 ।।

अमृत्युः सर्व-दृक् सिंहः सन-धाता संधिमान स्थिरः ।
अजो दुर्मर्षणः शास्ता विश्रुतात्मा सुरारिहा ।। 22 ।।

गुरुःगुरुतमो धामः सत्यः सत्य-पराक्रमः ।
निमिषो-अ-निमिषः स्रग्वी वाचस्पति: उदार-धीः ।। 23 ।।

अग्रणी: ग्रामणीः श्रीमान न्यायो नेता समीरणः ।
सहस्र-मूर्धा विश्वात्मा सहस्राक्षः सहस्रपात ।। 24 ।।

आवर्तनो निवृत्तात्मा संवृतः सं-प्रमर्दनः ।
अहः संवर्तको वह्निः अनिलो धरणीधरः ।। 25 ।।

सुप्रसादः प्रसन्नात्मा विश्वधृक्-विश्वभुक्-विभुः ।
सत्कर्ता सकृतः साधु: जह्नु:-नारायणो नरः ।। 26 ।।

असंख्येयो-अप्रमेयात्मा विशिष्टः शिष्ट-कृत्-शुचिः ।
सिद्धार्थः सिद्धसंकल्पः सिद्धिदः सिद्धिसाधनः ।। 27।।

वृषाही वृषभो विष्णु: वृषपर्वा वृषोदरः ।
वर्धनो वर्धमानश्च विविक्तः श्रुति-सागरः ।। 28 ।।

सुभुजो दुर्धरो वाग्मी महेंद्रो वसुदो वसुः ।
नैक-रूपो बृहद-रूपः शिपिविष्टः प्रकाशनः ।। 29 ।।

ओज: तेजो-द्युतिधरः प्रकाश-आत्मा प्रतापनः ।
ऋद्धः स्पष्टाक्षरो मंत्र:चंद्रांशु: भास्कर-द्युतिः ।। 30 ।।

अमृतांशूद्भवो भानुः शशबिंदुः सुरेश्वरः ।
औषधं जगतः सेतुः सत्य-धर्म-पराक्रमः ।। 31 ।।

भूत-भव्य-भवत्-नाथः पवनः पावनो-अनलः ।
कामहा कामकृत-कांतः कामः कामप्रदः प्रभुः ।। 32 ।।

युगादि-कृत युगावर्तो नैकमायो महाशनः ।
अदृश्यो व्यक्तरूपश्च सहस्रजित्-अनंतजित ।। 33 ।।

इष्टो विशिष्टः शिष्टेष्टः शिखंडी नहुषो वृषः ।
क्रोधहा क्रोधकृत कर्ता विश्वबाहु: महीधरः ।। 34 ।।

अच्युतः प्रथितः प्राणः प्राणदो वासवानुजः ।
अपाम निधिरधिष्टानम् अप्रमत्तः प्रतिष्ठितः ।। 35 ।।

स्कन्दः स्कन्द-धरो धुर्यो वरदो वायुवाहनः ।
वासुदेवो बृहद भानु: आदिदेवः पुरंदरः ।। 36 ।।

अशोक: तारण: तारः शूरः शौरि: जनेश्वर: ।
अनुकूलः शतावर्तः पद्मी पद्मनिभेक्षणः ।। 37 ।।

पद्मनाभो-अरविंदाक्षः पद्मगर्भः शरीरभृत ।
महर्धि-ऋद्धो वृद्धात्मा महाक्षो गरुड़ध्वजः ।। 38 ।।

अतुलः शरभो भीमः समयज्ञो हविर्हरिः ।
सर्वलक्षण लक्षण्यो लक्ष्मीवान समितिंजयः ।। 39 ।।

विक्षरो रोहितो मार्गो हेतु: दामोदरः सहः ।
महीधरो महाभागो वेगवान-अमिताशनः ।। 40 ।।

उद्भवः क्षोभणो देवः श्रीगर्भः परमेश्वरः ।
करणं कारणं कर्ता विकर्ता गहनो गुहः ।। 41 ।।

व्यवसायो व्यवस्थानः संस्थानः स्थानदो-ध्रुवः ।
परर्रद्वि परमस्पष्टः तुष्टः पुष्टः शुभेक्षणः ।। 42 ।।

रामो विरामो विरजो मार्गो नेयो नयो-अनयः ।
वीरः शक्तिमतां श्रेष्ठ: धर्मो धर्मविदुत्तमः ।। 43 ।।

वैकुंठः पुरुषः प्राणः प्राणदः प्रणवः पृथुः ।
हिरण्यगर्भः शत्रुघ्नो व्याप्तो वायुरधोक्षजः ।। 44।।

ऋतुः सुदर्शनः कालः परमेष्ठी परिग्रहः ।
उग्रः संवत्सरो दक्षो विश्रामो विश्व-दक्षिणः ।। 45 ।।

विस्तारः स्थावर: स्थाणुः प्रमाणं बीजमव्ययम ।
अर्थो अनर्थो महाकोशो महाभोगो महाधनः ।। 46 ।।

अनिर्विण्णः स्थविष्ठो-अभूर्धर्म-यूपो महा-मखः ।
नक्षत्रनेमि: नक्षत्री क्षमः क्षामः समीहनः ।। 47 ।।

यज्ञ इज्यो महेज्यश्च क्रतुः सत्रं सतां गतिः ।
सर्वदर्शी विमुक्तात्मा सर्वज्ञो ज्ञानमुत्तमं ।। 48 ।।

सुव्रतः सुमुखः सूक्ष्मः सुघोषः सुखदः सुहृत ।
मनोहरो जित-क्रोधो वीरबाहुर्विदारणः ।। 49 ।।

स्वापनः स्ववशो व्यापी नैकात्मा नैककर्मकृत ।
वत्सरो वत्सलो वत्सी रत्नगर्भो धनेश्वरः ।। 50 ।।

धर्मगुब धर्मकृद धर्मी सदसत्क्षरं-अक्षरं ।
अविज्ञाता सहस्त्रांशु: विधाता कृतलक्षणः ।। 51 ।।

गभस्तिनेमिः सत्त्वस्थः सिंहो भूतमहेश्वरः ।
आदिदेवो महादेवो देवेशो देवभृद गुरुः ।। 52 ।।

उत्तरो गोपतिर्गोप्ता ज्ञानगम्यः पुरातनः ।
शरीर भूतभृद्भोक्ता कपींद्रो भूरिदक्षिणः ।। 53 ।।

सोमपो-अमृतपः सोमः पुरुजित पुरुसत्तमः ।
विनयो जयः सत्यसंधो दाशार्हः सात्वतां पतिः ।। 54 ।।

जीवो विनयिता-साक्षी मुकुंदो-अमितविक्रमः ।
अम्भोनिधिरनंतात्मा महोदधिशयो-अंतकः ।। 55 ।।

अजो महार्हः स्वाभाव्यो जितामित्रः प्रमोदनः ।
आनंदो नंदनो नंदः सत्यधर्मा त्रिविक्रमः ।। 56 ।।

महर्षिः कपिलाचार्यः कृतज्ञो मेदिनीपतिः ।
त्रिपदस्त्रिदशाध्यक्षो महाश्रृंगः कृतांतकृत ।। 57 ।।

महावराहो गोविंदः सुषेणः कनकांगदी ।
गुह्यो गंभीरो गहनो गुप्तश्चक्र-गदाधरः ।। 58 ।।

वेधाः स्वांगोऽजितः कृष्णो दृढः संकर्षणो-अच्युतः ।
वरूणो वारुणो वृक्षः पुष्कराक्षो महामनाः ।। 59 ।।

भगवान भगहानंदी वनमाली हलायुधः ।
आदित्यो ज्योतिरादित्यः सहिष्णु:-गतिसत्तमः ।। 60 ।।

सुधन्वा खण्डपरशुर्दारुणो द्रविणप्रदः ।
दिवि:स्पृक् सर्वदृक व्यासो वाचस्पति:अयोनिजः ।। 61 ।।

त्रिसामा सामगः साम निर्वाणं भेषजं भिषक ।
संन्यासकृत्-छमः शांतो निष्ठा शांतिः परायणम ।। 62 ।।

शुभांगः शांतिदः स्रष्टा कुमुदः कुवलेशयः ।
गोहितो गोपतिर्गोप्ता वृषभाक्षो वृषप्रियः ।। 63 ।।

अनिवर्ती निवृत्तात्मा संक्षेप्ता क्षेमकृत्-शिवः ।
श्रीवत्सवक्षाः श्रीवासः श्रीपतिः श्रीमतां वरः ।। 64 ।।

श्रीदः श्रीशः श्रीनिवासः श्रीनिधिः श्रीविभावनः ।
श्रीधरः श्रीकरः श्रेयः श्रीमान्-लोकत्रयाश्रयः ।। 65 ।।

स्वक्षः स्वंगः शतानंदो नंदिर्ज्योतिर्गणेश्वर: ।
विजितात्मा विधेयात्मा सत्कीर्तिश्छिन्नसंशयः ।। 66 ।।

उदीर्णः सर्वत:चक्षुरनीशः शाश्वतस्थिरः ।
भूशयो भूषणो भूतिर्विशोकः शोकनाशनः ।। 67 ।।

अर्चिष्मानर्चितः कुंभो विशुद्धात्मा विशोधनः ।
अनिरुद्धोऽप्रतिरथः प्रद्युम्नोऽमितविक्रमः ।। 68 ।।

कालनेमिनिहा वीरः शौरिः शूरजनेश्वरः ।
त्रिलोकात्मा त्रिलोकेशः केशवः केशिहा हरिः ।। 69 ।।

कामदेवः कामपालः कामी कांतः कृतागमः ।
अनिर्देश्यवपुर्विष्णु: वीरोअनंतो धनंजयः ।। 70 ।।

ब्रह्मण्यो ब्रह्मकृत् ब्रह्मा ब्रह्म ब्रह्मविवर्धनः ।
ब्रह्मविद ब्राह्मणो ब्रह्मी ब्रह्मज्ञो ब्राह्मणप्रियः ।। 71 ।।

महाक्रमो महाकर्मा महातेजा महोरगः ।
महाक्रतुर्महायज्वा महायज्ञो महाहविः ।। 72 ।।

स्तव्यः स्तवप्रियः स्तोत्रं स्तुतिः स्तोता रणप्रियः ।
पूर्णः पूरयिता पुण्यः पुण्यकीर्तिरनामयः ।। 73 ।।

मनोजवस्तीर्थकरो वसुरेता वसुप्रदः ।
वसुप्रदो वासुदेवो वसुर्वसुमना हविः ।। 74 ।।

सद्गतिः सकृतिः सत्ता सद्भूतिः सत्परायणः ।
शूरसेनो यदुश्रेष्ठः सन्निवासः सुयामुनः ।। 75 ।।

भूतावासो वासुदेवः सर्वासुनिलयो-अनलः ।
दर्पहा दर्पदो दृप्तो दुर्धरो-अथापराजितः ।। 76 ।।

विश्वमूर्तिमहार्मूर्ति:दीप्तमूर्ति: अमूर्तिमान ।
अनेकमूर्तिरव्यक्तः शतमूर्तिः शताननः ।। 77 ।।

एको नैकः सवः कः किं यत-तत-पद्मनुत्तमम ।
लोकबंधु: लोकनाथो माधवो भक्तवत्सलः ।। 78 ।।

सुवर्णोवर्णो हेमांगो वरांग: चंदनांगदी ।
वीरहा विषमः शून्यो घृताशीरऽचलश्चलः ।। 79 ।।

अमानी मानदो मान्यो लोकस्वामी त्रिलोकधृक ।
सुमेधा मेधजो धन्यः सत्यमेधा धराधरः ।। 80 ।।

तेजोवृषो द्युतिधरः सर्वशस्त्रभृतां वरः ।
प्रग्रहो निग्रहो व्यग्रो नैकश्रृंगो गदाग्रजः ।। 81 ।।

चतुर्मूर्ति: चतुर्बाहु:श्चतुर्व्यूह:चतुर्गतिः ।
चतुरात्मा चतुर्भाव:चतुर्वेदविदेकपात ।। 82 ।।

समावर्तो-अनिवृत्तात्मा दुर्जयो दुरतिक्रमः ।
दुर्लभो दुर्गमो दुर्गो दुरावासो दुरारिहा ।। 83 ।।

शुभांगो लोकसारंगः सुतंतुस्तंतुवर्धनः ।
इंद्रकर्मा महाकर्मा कृतकर्मा कृतागमः ।। 84 ।।

उद्भवः सुंदरः सुंदो रत्ननाभः सुलोचनः ।
अर्को वाजसनः श्रृंगी जयंतः सर्वविज-जयी ।। 85 ।।

सुवर्णबिंदुरक्षोभ्यः सर्ववागीश्वरेश्वरः ।
महाह्रदो महागर्तो महाभूतो महानिधः ।। 86 ।।

कुमुदः कुंदरः कुंदः पर्जन्यः पावनो-अनिलः ।
अमृतांशो-अमृतवपुः सर्वज्ञः सर्वतोमुखः ।। 87 ।।

सुलभः सुव्रतः सिद्धः शत्रुजिच्छत्रुतापनः ।
न्यग्रोधो औदुंबरो-अश्वत्थ:चाणूरांध्रनिषूदनः ।। 88 ।।

सहस्रार्चिः सप्तजिव्हः सप्तैधाः सप्तवाहनः ।
अमूर्तिरनघो-अचिंत्यो भयकृत्-भयनाशनः ।। 89 ।।

अणु:बृहत कृशः स्थूलो गुणभृन्निर्गुणो महान् ।
अधृतः स्वधृतः स्वास्यः प्राग्वंशो वंशवर्धनः ।। 90 ।।

भारभृत्-कथितो योगी योगीशः सर्वकामदः ।
आश्रमः श्रमणः क्षामः सुपर्णो वायुवाहनः ।। 91 ।।

धनुर्धरो धनुर्वेदो दंडो दमयिता दमः ।
अपराजितः सर्वसहो नियंता नियमो यमः ।। 92 ।।

सत्त्ववान सात्त्विकः सत्यः सत्यधर्मपरायणः ।
अभिप्रायः प्रियार्हो-अर्हः प्रियकृत-प्रीतिवर्धनः ।। 93 ।।

विहायसगतिर्ज्योतिः सुरुचिर्हुतभुग विभुः ।
रविर्विरोचनः सूर्यः सविता रविलोचनः ।। 94 ।।

अनंतो हुतभुग्भोक्ता सुखदो नैकजोऽग्रजः ।
अनिर्विण्णः सदामर्षी लोकधिष्ठानमद्भुतः ।। 95।।

सनात्-सनातनतमः कपिलः कपिरव्ययः ।
स्वस्तिदः स्वस्तिकृत स्वस्ति स्वस्तिभुक स्वस्तिदक्षिणः ।। 96 ।।

अरौद्रः कुंडली चक्री विक्रम्यूर्जितशासनः ।
शब्दातिगः शब्दसहः शिशिरः शर्वरीकरः ।। 97 ।।

अक्रूरः पेशलो दक्षो दक्षिणः क्षमिणां वरः ।
विद्वत्तमो वीतभयः पुण्यश्रवणकीर्तनः ।। 98 ।।

उत्तारणो दुष्कृतिहा पुण्यो दुःस्वप्ननाशनः ।
वीरहा रक्षणः संतो जीवनः पर्यवस्थितः ।। 99 ।।

अनंतरूपो-अनंतश्री: जितमन्यु: भयापहः ।
चतुरश्रो गंभीरात्मा विदिशो व्यादिशो दिशः ।। 100 ।।

अनादिर्भूर्भुवो लक्ष्मी: सुवीरो रुचिरांगदः ।
जननो जनजन्मादि: भीमो भीमपराक्रमः ।। 101 ।।

आधारनिलयो-धाता पुष्पहासः प्रजागरः ।
ऊर्ध्वगः सत्पथाचारः प्राणदः प्रणवः पणः ।। 102 ।।

प्रमाणं प्राणनिलयः प्राणभृत प्राणजीवनः ।
तत्त्वं तत्त्वविदेकात्मा जन्ममृत्यु जरातिगः ।। 103 ।।

भूर्भवः स्वस्तरुस्तारः सविता प्रपितामहः ।
यज्ञो यज्ञपतिर्यज्वा यज्ञांगो यज्ञवाहनः ।। 104 ।।

यज्ञभृत्-यज्ञकृत्-यज्ञी यज्ञभुक्-यज्ञसाधनः ।
यज्ञान्तकृत-यज्ञगुह्यमन्नमन्नाद एव च ।। 105 ।।

आत्मयोनिः स्वयंजातो वैखानः सामगायनः ।
देवकीनंदनः स्रष्टा क्षितीशः पापनाशनः ।। 106 ।।

शंखभृन्नंदकी चक्री शार्ङ्गधन्वा गदाधरः ।
रथांगपाणिरक्षोभ्यः सर्वप्रहरणायुधः ।। 107 ।।

सर्वप्रहरणायुध ॐ नमः इति।

वनमालि गदी शार्ङ्गी शंखी चक्री च नंदकी ।
श्रीमान् नारायणो विष्णु: वासुदेवोअभिरक्षतु ।

हमने यहाँ पर विष्णु सहस्रनाम के लिरिक्स हिंदी में दे रखे है। जिसे आप चाहे तो प्रतिदिन इसका पाठ कर सकते है। अगर आप यह स्तोत्र का पाठ अंग्रेजी में, Vishnu Sahasranamam Lyrics in Hindi Stotram पढ़ना चाहते है, तो आप थोड़ा ऊपर स्क्रॉल करके वहाँ पर vishnumaya sahasranamam को अंग्रेजी में पढ़ सकते है।

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Mahalakshmi Mantra: महालक्ष्मी मंत्र, Mahalaxmi Mantra

क्या आप देवी महालक्ष्मी के बारे में जानते है? श्री महालक्ष्मी देवी हिन्दू धर्म में नियमित रूप से पूजा की जाती है। उनके भक्तों द्वारा मंत्र हर दिन पढ़ा जाता है। इस मंत्र का नाम महालक्ष्मी मंत्र (Mahalakshmi Mantra) है। ऐसा माना जाता है की यह मंत्र का जाप करने से व्यक्ति के जीवन में धन, संपत्ति, और सौभाग्य की प्राप्ति में सफलता मिलती हैं। देवी महालक्ष्मी प्रभु श्री विष्णु की धर्म पत्नी स्वरुप में पूजा की जाती है। इस आर्टिकल में हम महालक्ष्मी मंत्र की महत्वपूर्ण जानकारी देंगे।

 

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महालक्ष्मी मंत्र का महत्व | Importance of Mahalakshmi Mantra

यहाँ पर हम आपको महालक्ष्मी मंत्र का क्या महत्व है इसके बारे में हिंदी में बताएँगे। अगर आप इस मंत्र को अंग्रेजी में, Mahalakshmi Mantra में पढ़ना चाहते है, तो आप थोड़ा निचे स्क्रॉल करके जायेंगे वही पर आप इस मंत्र को विस्तृत रूप से पढ़ सकेंगे। इस संसार में धन की कमी होने की बजह से उनके हर भक्त प्रतिदिन माता लक्ष्मी की पूजा करके उनके आशीर्वाद प्राप्त करते है।

  • धन, समृद्धि, और सौभाग्य में बढ़ोतरी – आमतौर पर माता लक्ष्मी की विशेष रूप से अपने भक्त पूजा और अर्चना करते है। अगर आप धनतेरस के दिन घर और ऑफिस पर माता लक्ष्मी की विशेष रूप से पूजा करते है, तो उन व्यक्ति का जीवन धन, समृद्धि, और सौभाग्य की बढ़ोतरी होती है। यह दिन माता लक्ष्मी को प्रसन्ना करने का एक खास दिन है। अगर कोई भक्त सच्चे मन से माता लक्ष्मी का मंत्र नियमित रूप से जाप करता है, तो व्यक्ति अपने जीवन में आर्थिक सुख और समृद्धि की ओर अग्रसर होने में मददरूप होता है।
  • आध्यात्मिक विकास – इस भागदौड़ भरे जीवन में हर व्यक्ति मन से शांति चाहता है। शांति तब मिलती है जब आप अपने जीवन को आध्यात्मिक से जोड़ सके। आध्यात्मिक जीवन जीने के किये आपको तप करना पड़ेगा और आप अपने इष्ट देव की आराधना करके आप यह मार्ग पे जा सकते हो। यह मंत्र के जाप से व्यक्ति की आध्यात्मिक विकास निश्चितरूप से होता है। यह मंत्र व्यक्ति को ध्यान, श्रद्धा, और सही मार्ग पर चलने की दिशा को पसंद करने में मदद करता है।
  • प्रेम और सहयोग – आज के जीवन में धन का महत्व अधिक है। हमने इस जीवन में परिवार के बिच कलेश धन की बजह से देखे है। इस धन के मामले में भाई-भाई के बिच रिश्ते में भी दरार आती है। अगर आप के पास अधिक मात्रा में धन है, तो ही समाज में आप की कदर होती है। अगर आप यह परिवार के कलेश से मुक्ति और आर्थिक रूप से मजबूत होना चाहते है, तो यह मंत्र का जाप व्यक्ति को प्रेम और सहयोग की भावना से मिल जुलके रहने में मददरूप होता है। यह परिवार और समाज को एकसाथ रहने में हर्ष और सुख का साधन बन सकता है।

 

महालक्ष्मी मंत्र (Goddess Lakshmi) के जाप आप किसी भी समय कर सकते है। कई भक्तों के मन में यह सवाल होता है, क्या यह मंत्र मंदिर में जाके करना चाहिए? इसके जवाब में हम यह कह सकते है, घर के मंदिर में लक्ष्मी जी का फोटो रखे। आप इस फोटो के सामने भी प्रतिदिन आप यह मंत्र का जाप कर सकते है।

 

प्रमुख महालक्ष्मी मंत्र | Mahalakshmi Mantra

  1.  श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि। तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्।
  2. यह मंत्र माँ महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए उनके भक्त प्रतिदिन इसे पढ़ सकते है।
     ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः।
  3. यह श्री लक्ष्मी माँ के लिए सबसे अधिक उच्चारण किये जाने वाला एक शक्तिशाली मंत्र है।
     ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं त्रैलोक्य वसिं क्लीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः।

 

 

लक्ष्मी बीज मंत्र – Mahalaxmi Beej Mantra

ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभयो नमः

ॐ श्रीं श्रियें नमः 

ॐ श्री ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्मयै नमः

 

महालक्ष्मी मंत्र (Goddess Lakshmi) के जाप की महत्वपूर्ण बातें

  1. मंत्र का उच्चारण – कई भक्त जल्दबाजी में मंत्र को पढ़ते है। जब व्यक्ति के पास इस मंत्र को पढ़ने के लिए पूरा समय नहीं होता है, तब व्यक्ति इस मंत्र का उच्चारण गलतरूप से पढ़ता है। हमारी आपको यह सलाह है की जब भी आप किसी मंत्र का जाप करो, तब उसका उच्चारण सही होना चाहिए। गलत उच्चारण से नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है।
  2. नियमितता – नियमितता एक ऐसा साधन है जो व्यक्ति के सारे सफल होने का सपना सच कर देता है। इस जीवन में जो लोग सफल है उसका मुख्य कारण नियमितता ही है। इसीलिए अगर आप माता लक्ष्मी को प्रसन्ना करना चाहते हे, तो यह मंत्र का नियमित रूप से जाप करना पड़ेगा।
  3. स्वच्छता और पवित्रता – इस मंत्र का जाप करने से पहले स्नान करे। अच्छे स्वच्छ कपडे पहने। जाप के लिए एक शांत और पवित्र स्थान को पसंद करें। अगर आप एक ही स्थान पसंद है तो वह आपके लिए बेहतर होगा।
  4. संख्या का महत्व – अगर आप किसी इष्ट देव के मंत्रो को जाप करते है, तो इसमें संख्या का महत्व अधिक है। अधिकतर हर व्यक्ति १०८ बार माला को जाप करते है। यह १०८ की संख्या पे ध्यान देना बहुत सरल हो जाता है।

 

Mahalakshmi Gayatri Mantra | लक्ष्मी गायत्री मंत्र

ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ॥

 

हमने यहाँ पर आपको माता महालक्ष्मी मंत्र (Goddess Lakshmi) के जाप की विस्तृत माहिती प्रदान की है। हम आशा करते है की आपने यह माहिती अच्छी तरह से पढ़ी होगी। हर मंत्र को उच्चारण भी आपने सही तरह से पढ़ा होगा। हम आपसे यह विनंती करते है की आप जब चाहे तब माता लक्ष्मी को यह मंत्र जब भी आपके पास समय हो तब आप पढ़े। हमने यहाँ पर दूसरे देवी-देवताओं के मंत्र दिए हुए है। अगर आपके पास समय है तो आप इसे भी पढ़ सकते है। जय माँ लक्ष्मी।

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Shiv Ji Ki Aarti: Om Jai Shiv Omkara Lyrics, PDF in Hindi

Lord Shiva is the greatest god in Hindu religions. Om Jai Shiv Omkara is a famous Shiv Ji Ki Aarti that is dedicated to Lord Shiva. Every shiva’s devotees pray to shiv by chanting this aarti every day. There are so many people in the world who visit Shiv temples to pray for him. In this article, I will provide you with Shiv Aarti lyrics in Hindi and English. You can read it online as well as offline. There are so many people who are searching for PDFs. Shiv chalisa is one of the most powerful chalisas, which is also associated with Lord Shiva.

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Shiv Ji Ki Aarti (Om Jai Shiv Omkara) Lyrics, PDF in Hindi

Om jai shiv omkara, prabhu jai shiv omkara
Brahma vishnu sada shiv, ardhangii dhara
Om jai shiv omkara…

Ekanana chaturanan panchanan raje
Hansanan, garuraasan vrishvahan saje
Om jai shiv omkara….

Do bhuja, chaar chaturbhuja dashabhuja ati sohe
Tiinon roop nirakhate tribhuvan jan mohe
Om jai shiv omkara…

Aksamala vanamala mundamala dhari
Chandana mrigamad sohai bhaale shashidhaari
Jai shiv omkara…

Shvetambara piitambara baaghambara ange
Brahmadhik sanakaadhik pretaadhik sange
Om jai shiv omkara…

Kara madhye kamandalu au trishul dhari
Jagkarta jagharta jagapalan karta
Jai shiv omkara…

Brahma vishnu sadashiva janata aviveka
Pranavaksar ke madhaya tinonh eka
Om jai shiv omkara…

Trigun swami ki aarti jo koi nar gave
Kahata shivananda swami mana vanchita phala pave
Jai shiv omkara…

महादेव की आरती  शिव आरती हिंदी में  

भगवान शिव को भोलेनाथ से भी जाना जाता है। माता पार्वती के पति, ब्रह्मा-विष्णु-महेश के रूप में पूजे जाने वाले भगवान शिवजी एक मुख्य देवता हैं। शिव चालीसा और महादेव की आरती उनके भक्तों द्वारा प्रतिदिन करी जाती है। इस दुनिया में भगवान शिव के भक्तगण का समुदाय बहोत बड़ा है। शिवजी की आराधना भक्तों के दिलों में अपने प्रेम और भक्ति की आग भर देती है। भगवान शिव की आरती, उनके मुख्य पूजा का हिस्सा है, जो कई शिव मंदिर में सुबह और साम को पुजारी द्वारा की जाती हैं। शिव जी की आरती का प्रारंभ होता है ‘जय शिव ओंकारा’ के मंत्र से शुरुआत होती है। इस आर्टिकल में हम शिव आरती हिंदी में लिरिक्स PDF और अंग्रेजी में देखेंगे।

शिव-जी-की-आरती-हिंदी-लिरिक्स

रूद्राष्टकम्
रुद्राष्टकम् एक ऐसा स्तोत्र और स्तुति है, जो भगवान शिव की महिमा की प्रशंसा करता है। यह स्तोत्र में शिवजी के भयंकर और महाकालीय रूप का वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र इस आरती का मुख्य हिस्सा है जो उनके असीम शक्तिशाली विभूतियों को प्रकट करता है।

चन्द्रशेखर अष्टकम
इस आरती में शिव जी का चंद्रशेखर रूप का वर्णन किया गया है। ऐसा मन जा रहा है की यह रूप को भगवान शिवजी को सहायक और आश्रय दाता रूप दर्शाता है।

शिव आरती हिंदी में: आत्मा की प्रेम और श्रद्धा

शिव जी की आरती भगवान शिवजी के दिव्य गुणों और शक्तियों की महिमा का परिचय करता है। इस आरती के द्वारा उनके भक्त और शिवजी का अदभुत ध्यान मिलता है, की जैसे उनके सारे भक्तों उनसे प्रसन्ना हो जाते है। यह आरती के उच्चारण से हर भक्त आतंरिक सुख का अनुभव करता है। इतना ही नहीं बल्कि वह आध्यात्मिक जीवन में आनंद, शांति, और समृद्धि की अनुभूति भी प्राप्त करता है।

हमने आपको यहाँ पर शिव जी की आरती के लिरिक्स हिंदी में पीडीऍफ़ और अंग्रेजी में प्रदान किये हुए है। जो आपने यह लिरिक्स पढ़ लिए होंगे। आप प्रतिदिन घर या ऑफिस में शिवजी के फोटो के सामने आप यह आरती प्रतिदिन कर सकते है। भगवान शिव आपकी हर मनोकामना पूर्ण करे ऐसी भावना के साथ या आर्टिकल यहाँ पर समाप्त करते है। यदि आप चाहे तो दूसरे देवी-देवताओं की आरती हमने निचे दे रखी है, जहाँ से आप पढ़ सकते है।

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Shiv Tandav Stotram PDF: शिव तांडव स्तोत्र सरल भाषा में

हिन्दू धर्म के देवता भगवान शिव का एक अत्यधिक शक्तिशाली और भावपूर्ण शिव तांडव स्तोत्र सरल भाषा में  महिमा और दिव्यता की महत्वपूर्ण झलकियों को हमारे सामने प्रस्तुत करता है। Shiv Tandav Stotram PDF शिव भगवान के नृत्य और उनके महाकालीय रूप की महानता का परिचय देता है, जिसमें देवता का विश्वनाशक तांडव दर्शाया गया है।

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महत्वपूर्ण श्लोकों की महिमा:

शिव तांडव स्तोत्रम  के १६ श्लोक भगवान शिव की महिमा, शक्ति, और दिव्यता को व्यक्त करते हैं। स्तोत्रम के प्रत्येक श्लोक में शिव के विभिन्न रूपों का वर्णन किया गया है, जो विश्व के नायक, सर्वशक्तिमान, और महाकाल के रूप में प्रकट होते हैं।

 

Shiv Tandav Stotram PDF | शिव तांडव स्तोत्र सरल भाषा में 

जटा-टवी-गलज्-जल-प्रवाह-पावित-स्थले
गलेऽव-लम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम्
डमड्-डमड्-डमड्-डमन्-निनाद-वड्-डमर्वयं
चकार चण्ड-ताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्॥1॥

जटा-कटाह-सम्भ्रम-भ्रमन्-निलिम्प निर्झरी
विलोल-वीचि-वल्लरी-विराज-मान मूर्धनि।
धगद्-धगद्-धगज्-ज्वलल्-ललाट-पट्ट पावके
किशोर-चन्द्र-शेखरे रतिः प्रति-क्षणं मम: ॥2॥

धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-विलास-बन्धु बन्धुर
स्फुरद्-दिगन्त-सन्तति-प्रमोद-मान मानसे।
कृपा-कटाक्ष-धोरणी-निरुद्ध-दुर्धरा-पदि
क्वचिद्-दिगम्बरे मनो विनोद-मेतु वस्तुनि ॥3॥

जटा भुजङ्गपिङ्गल स्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे।
मदान्धसिन्धु रस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥

सहस्र-लोचन-प्रभृत्य-शेष-लेख-शेखर
प्रसून-धूलि-धोरणी-विधू-सराङ्घ्रि-पीठ-भूः।
भुजङ्ग-राज-मालया निबद्ध-जाट-जूटक:
श्रियै चिराय जायतां चकोर-बन्धु-शेखरः ॥5॥

ललाट-चत्वर-ज्वलद्-धनञ्जय-स्फुलिङ्गभा
निपीत-पञ्च-सायकं नमन्-निलिम्प-नायकम्।
सुधा-मयूख-लेखया विराज-मान-शेखरं
महा-कपालि सम्पदे शिरो जटाल-मस्तुनः ॥6॥

कराल-भाल-पट्टिका-धगद्-धगद्-धगज्-ज्वलद्
धनञ्जया-हुती-कृत-प्रचण्ड-पञ्च-सायके।
धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-कुचाग्र-चित्र-पत्रक-
प्रकल्प-नैक-शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥7॥

नवीन-मेघ-मण्डली-निरुद्ध-दुर्धर-स्फुरत्
कुहू-निशीथिनी-तमः-प्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः।
निलिम्प-निर्झरी-धरस्-तनोतु कृत्ति-सिन्धुरः
कला-निधान-बन्धुरः श्रियं जगद्-धुरन्धरः ॥8॥

प्रफुल्ल-नील-पङ्कज-प्रपञ्च-कालिम-प्रभा
वलम्बि-कण्ठ-कन्दली-रुचि-प्रबद्ध-कन्धरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छि-दान्ध-कच्छिदं तमन्त-कच्छिदं भजे ॥9॥

अगर्व-सर्व-मङ्गला-कला-कदम्ब मञ्जरी
रस-प्रवाह-माधुरी-विजृम्भणा-मधु-व्रतम्।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्त-कान्ध-कान्तकं तमन्त-कान्तकं भजे ॥10॥

जयत्व-दभ्र-विभ्रम-भ्रमद्-भुजङ्ग मश्वस
द्विनिर्गमत्-क्रम-स्फुरत्-कराल-भाल-हव्य-वाट्
धिमिद्-धिमिद्-धिमिद्-ध्वनन्-मृदङ्ग-तुङ्ग-मङ्गल
ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित-प्रचण्ड-ताण्डवः शिवः ॥11॥

दृषद्-विचित्र-तल्पयोर्-भुजङ्ग-मौक्ति-कस्रजोर्
गरिष्ठ-रत्न-लोष्ठयोः सुहृद्-विपक्ष-पक्ष-योः।
तृणारविन्द-चक्षुषोः प्रजा-मही-महेन्द्रयोः
समं-प्रवृत्ति-कः कदा सदा-शिवं भजाम्यहम् ॥12॥

कदा निलिम्प-निर्झरी-निकुञ्ज-कोटरे वसन्
विमुक्त-दुर्मतिः सदा शिरःस्थ-मञ्जलिं वहन्।
विलोल-लोल-लोचनो ललाम-भाल-लग्नकः
शिवेति मन्त्र मुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥13॥

निलिम्प नाथ-नागरी कदम्ब मौल-मल्लिका
निगुम्फ-निर्भक्षरन्म धूष्णिका-मनोहरः।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनीं-महनिशं
परिश्रय परं पदं तदङ्ग-जत्विषां चयः॥14॥

प्रचण्ड वाड-वानल प्रभा-शुभ-प्रचारणी
महा-अष्टसिद्धि कामिनी जनावहूत जल्पना।
विमुक्त वाम लोचनो विवाह-कालिक-ध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्॥15॥

इमं हि नित्य-मेव-मुक्त-मुत्त-मोत्तमं स्तवं
पठन् स्मरन् ब्रुवन्-नरो विशुद्धि-मेति सन्ततम्।
हरे गुरौ सुभक्ति-माशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम् ॥16॥

पूजा-वसान-समये दश-वक्त्र-गीतं
यः शम्भु-पूजन-परं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथ-गजेन्द्र-तुरङ्ग-युक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ॥17॥

। इति श्री शिव तांडव स्तोत्र सम्पूर्णम् ।

 

भावभरी नृत्य की अद्वितीयता:

यह स्तोत्रम (shiv tandav stotram lyrics pdf in hindi) में शिव का भयंकर और उत्कृष्ट नृत्य वर्णित है, जिसका दर्शन करने में आत्मा की उच्चतम भावना को प्राप्त होता है। उनके दिव्य नृत्य से प्रकट होने वाली शक्ति और ऊर्जा व्यक्ति को अपने अंतरात्मा की गहराईयों तक ले जाती है।

धार्मिक और मानवीय महत्व:

शिव तांडव स्तोत्र सरल भाषा में न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका मानवीय अर्थ भी गहरा है। यह स्तोत्रम हमें जीवन की अनिश्चितता और परिवर्तन के साथ साहसी रूप से मुकाबला करने की प्रेरणा देता है।

यह एक दिव्य और अद्वितीय स्तोत्रम है जो हमें भगवान शिव के दिव्य रूप और उनकी शक्ति का अनुभव करने का अवसर प्रदान करता है। इसके अंतर्गत वर्णित शिव के नृत्य का दर्शन करने से हमारी आत्मा को उद्दीपन मिलता है और हम अपने जीवन को उद्घाटन और समर्पण की दिशा में प्रस्थान कर सकते हैं।

शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से क्या होता है?

शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से मानव जीवन में विभिन्न प्रकार के शुभ फल प्राप्त हो सकते हैं। यह स्तोत्रम भगवान शिव की महिमा, शक्ति, और दिव्यता का परिचय कराता है और उनके भक्तों को उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने का माध्यम हो सकता है।

शिव जी तांडव कब करते हैं?

शिव जी का तांडव उनकी महाकाल और विनाशकारी रूप की प्रतीक होता है, जब वे विश्व के सर्वोच्च न्यायी और नाशकर्ता रूप में प्रकट होते हैं। तांडव काल उनके नायक और शिव-शक्ति के महत्वपूर्ण पहलु को प्रकट करता है। विश्व के सर्वोच्च न्यायी के रूप में, शिव जी का तांडव ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर तीनों देवताओं के लिए एक समान और न्यायपूर्ण रूप होता है। तांडव के द्वारा वे अधर्म को नष्ट करके धर्म की स्थापना करते हैं। यह तांडव उनके महाकालीय रूप की भी प्रतीक है, जिसमें उनका नृत्य प्रलय की स्थिति की प्रतीक्षा करता है। इस रूप में, शिव जी का तांडव विनाश की प्रक्रिया का प्रतीक होता है और उनकी महाशक्ति का प्रकटीकरण होता है।

शिव तांडव कौन लिखा था?

शिव तांडव का रचनाकार रावण माना जाता है। यह स्तोत्र उनकी देवता के प्रति उनकी भक्ति का परिणाम माना जाता है। रावण रामायण के महाकाव्य में राक्षसराज के रूप में उपस्थित होते हैं और उनकी शक्तियों का वर्णन किया गया है। उन्होंने भगवान शिव की उपासना करके उनकी कृपा प्राप्त की थी, और इसी कृपा का परिणाम स्वरूप उन्होंने शिव तांडव स्तोत्र का रचना किया था।

शिव तांडव कितने प्रकार के होते हैं?

शिव तांडव को विभिन्न प्रकार के तांडवों में विभाजित नहीं किया जाता है। यह एक ही स्तोत्र है जिसमें भगवान शिव की महिमा, शक्ति, और दिव्यता का वर्णन किया गया है। शिव तांडव को उनके महाकालीय रूप का प्रतीक माना जाता है जिसमें उनका नृत्य और उनकी शक्ति का प्रदर्शन होता है। इसमें १६ श्लोक होते हैं जो कि उनके विभिन्न रूपों की गूढ़ भावनाओं को व्यक्त करते हैं।

क्या हम रात में शिव तांडव स्तोत्रम सुन सकते हैं?

जी हां, आप रात में भी शिव तांडव स्तोत्रम का पाठ या सुनाई कर सकते हैं। ध्यान दें कि शिव तांडव स्तोत्रम भगवान शिव की महिमा और उनके दिव्य रूप का वर्णन करने वाला एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक स्तोत्र है। इसका पाठ या सुनना आपके मानसिक और आत्मिक शांति, स्थिरता, और ध्यान को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है। रात में शिव तांडव स्तोत्रम का पाठ करते समय आपको शांत और प्राकृतिक वातावरण में होने की कोशिश करनी चाहिए। आप इसका पाठ करते समय अपने मन को शांत और ध्यानित रखने का प्रयास कर सकते हैं, ताकि आपका ध्यान स्तोत्र के अर्थ और महत्व पर संरचित हो सके।

 

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Sai Kasht Nivaran Mantra PDF Hindi: साईं कष्ट निवारण मंत्र

मानव जीवन में कभी न कभी कष्ट और परेशानियाँ आती ही हैं। साईं कष्ट निवारण मंत्र (Sai Kasht Nivaran Mantra) इन कठिनाइयों का सामना करने के लिए हमारे पास आध्यात्मिक उपाय भी होते हैं, और इनमें से एक है “साईं कष्ट निवारण मंत्र” का जाप। यह मंत्र साईं बाबा की कृपा और आशीर्वाद को प्राप्त करने का एक शक्तिशाली माध्यम है, जो हमें जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति दिलाता है।

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मंत्र का महत्व

“साईं कष्ट निवारण मंत्र” का महत्व आध्यात्मिक तंत्र में गहरा है। यह मंत्र भगवान श्री साईं बाबा के दिव्य शक्तियों को प्राप्त करने में सहायक होता है और हमें दुखों और कष्टों से मुक्ति प्रदान करता है। मंत्र की शक्ति से हम आत्मा को शुद्ध करके चिंताओं और दुखों के बोझ को हर तरह से कम कर सकते हैं।

 

Sai Kasht Nivaran Mantra PDF Hindi | साईं कष्ट निवारण मंत्र

 

सदगुरू साईं नाथ महाराज की जय

कष्टों की काली छाया दुखदायी है,
जीवन में घोर उदासी लायी है |

संकट को तालो साई दुहाई है,
तेरे सिवा न कोई सहाई है |

मेरे मन तेरी मूरत समाई है,
हर पल हर शन महिमा गायी है |

घर मेरे कष्टों की आंधी आई है,
आपने क्यूँ मेरी सुध भुलाई है |

तुम भोले नाथ हो दया निधान हो,
तुम हनुमान हो तुम बलवान हो |

तुम्ही राम और श्याम हो,
सारे जग त में तुम सबसे महान हो |

तुम्ही महाकाली तुम्ही माँ शारदे,
करता हूँ प्राथना भव से तार दे |

तुम्ही मोहमद्‌ हो गरीब नवाज़ हो,
नानक की बानी में ईसा के साथ हो |

तुम्ही द्गम्बर तुम्ही कबीर हो,
हो बुध तुम्ही ओर महावीर हो |

सारे जगत का तुम्ही आधार हो,
निराकार भी और साकार हो |

करता हूँ वंदना प्रेम विशवास से,
सुनो साईं अल्लाह के वास्ते |

अधरों पे मेरे नहीं मुस्कान है,
घर मेरा बनने लगा शमशान है |

रहम नज़र करो उन्हे वीरान पे,
जिंदगी संवरेगी एक वरदान से |

पापों की घुप से तन लगा हारने,
आपका यह दास लगा पुकारने |

आपने सदा ही लाज बचाई है,
देर न हो जाये मन शंकाई है |

धीरे-धीरे धीरज ही खोता है,
मन में बसा विशवास ही रोता है |

मेरी कल्पना साकार कर दो,
सूनी जिंदगी में रंग भर दो |

ढोते-ढोते पापों का भार जिंदगी से,
में गया हार जिंदगी से |

नाथ अवगुण अब तो बिसारो,
कष्टों की लहर से आके उबारो |

करता हूँ पाप में पापों की खान हूँ,
ज्ञानी तुम ज्ञानेश्वर में अज्ञान हूँ |

करता हूँ पग-पग पर पापों की भूल में,
तार दो जीवन ये चरणों की धूल से |

तुमने ऊजरा हुआ घर बसाया,
पानी से दीपक भी तुमने जलाया |

तुमने ही शिरडी को धाम बनाया,
छोटे से गाँव में स्वर्ग सजाया |

कष्ट पाप श्राप उतारो,
प्रेम दया दृष्टि से निहारो |

आपका दास हूँ ऐसे न टालिए,
गिरने लगा हूँ साईं संभालिये |

साईजी बालक में अनाथ हूँ,
तेरे भरोसे रहता दिन रात हूँ |

जैसा भी हूँ , हँ तो आपका,
कीजे निवारण मेरे संताप का |

तू है सवेरा और में रात हूँ,
मेल नहीं कोई फिर भी साथ हूँ

साईं मुझसे मुख न मोड़ो,
बीच मझधार अकेला न छोड़ो |

आपके चरणों में बसे प्राण हे,
तेरे वचन मेरे गुरु समान है |

आपकी राहों पे चलता दास है,
ख़ुशी नहीं कोई जीवन उदास है |

आंसू की धारा में डूबता किनारा,
जिंदगी में दर्द नहीं गुजारा |

लगाया चमन तो फूल खिलायो,
फूल खिले है तो खुशबू भी लायो |

कर दो इशारा तो बात बन जाये,
जो किस्मत में नहीं वो मिल जाये |

बीता ज़माना यह गाके फ़साना,
सरहदे ज़िन्दगी मौत तराना |

देर तो हो गयी है अंधेर ना हो,
फ़िक मिले लकिन फरेब ना हो |

देके टालो या दामन बचा लो,
हिलने लगी रहनुमाई संभालो |

तेरे दम पे अल्लाह की शान है,
सूफी संतो का ये बयान है |

गरीबों की झोली में भर दो खजाना,
ज़माने के वली करो ना बहाना |

दर के भिखारी है मोहताज है हम,
शंहंशाये आलम करो कुछ करम |

तेरे खजाने में अल्लाह की रहमत,
तुम सदगुरू साईं हो समरथ |

आये हो घरती पे देने सहारा,
करने लगे क्यूँ हमसे किनारा |

जब तक ये ब्रह्मांड रहेगा,
साईं तेरा नाम रहेगा |

चाँद सितारे तुम्हे पुकारेंगे,
जन्मोजनम हम रास्ता निहारेंगे |

आत्मा बदलेगी चोले हज़ार,
हम मिलते रहेंगे बारम्बार |

आपके कदमो में बेठे रहेंगे,
दुखड़े दिल के कहते रहेंगे |

आपकी मर्जी है दो या ना दो,
हम तो कहेंगे दामन ही भर दो |

तुम हो दाता हम है भिखारी,
सुनते नहीं क्यूँ अर्ज़ हमारी |

अच्छा चलो एक बात बता दो,
क्या नहीं तुम्हारे पास बता दो |

जो नहीं देना है इनकार कर दो,
ख़तम ये आपस की तकरार कर दो |

लौट के खाली चला जायूँगा,
फिर भी गुण तेरे गायूँगा |

जब तक काया है तब तक माया है,
इसी में दुखो का मूल समाया है |

सबकुछ जान के अनजान हूँ में,
अल्लाह की तू शान तेरी शान हूँ में |

तेरा करम सदा सब पे रहेगा,
ये चक्र युग-युग चलता रहेगा |

जो प्राणी गायेगा साईं तेरा नाम,
उसको मुक्ति मिले पहुंचे परम धाम |

ये मंत्र जो प्राणी नित दिन गायेंगे,
राहू , केतु , शनि निकट ना आयेंगे |

टाल जायेंगे संकट सारे,
घर में वास करें सुख सारे |

जो श्रधा से करेगा पठन,
उस पर देव सभी हो प्रस्सन |

रोग समूल नष्ट हो जायेंगे,
कष्ट निवारण मंत्र जो गायेंगे |

चिंता हरेगा निवारण जाप,
पल में दूर हो सब पाप |

जो ये पुस्तक नित दिन बांचे,
श्री लक्ष्मीजी घर उसके सदा विराजे |

ज्ञान, बुधि प्राणी वो पायेगा,
कष्ट निवारण मंत्र जो घयायेगा |

ये मंत्र भक्तों कमाल करेगा,
आई जो अनहोनी तो टाल देगा |

भूत-प्रेत भी रहेंगे दूर,
इस मंत्र में साईं शक्ति भरपूर |

जपते रहे जो मंत्र अगर,
जादू-टोना भी हो बेअसर |

इस मंत्र में सब गुण समाये,
ना हो भरोसा तो आजमाए |

ये मंत्र साई वचन ही जानो,
सवयं अमल कर सत्य पहचानो |

संशय ना लाना विशवास जगाना,
ये मंत्र सुखों का है खज़ाना |

 

 

मंत्र का जाप

“ओम श्री साईं कष्ट निवारणाय नमः”

इस मंत्र का नियमित जप करने से हम आत्मा को शांति और सुख प्राप्त कर सकते हैं, और जीवन की चुनौतियों का सामना करने में सहायता प्राप्त कर सकते हैं। शिरडी साईं बाबा के दिव्य आशीर्वाद से हमारे मन में आत्मविश्वास और प्रेम का अभिवादन होता है, जो हमें जीवन के हर कठिन मोड़ पर सहायता प्रदान करता है।

 

 

आशीर्वाद और सहायता

सर्व कष्ट निवारण मंत्र का नियमित जप आपके जीवन में आध्यात्मिक ऊर्जा को बढ़ावा देता है और आपको अपने मार्ग में साईं बाबा के दिव्य आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। यह मंत्र हमें दुखों के प्रति आत्म-निर्भरता प्रदान करता है और हमें अपने जीवन की समस्याओं का समाधान खोजने में मदद करता है। साईं बाबा के प्रेम और दया की अनुभूति कराते हुए यह मंत्र हमें दुःखों के साथ समझौता करने की कला सिखाता है और हमें जीवन की सार्थकता की ओर अग्रसर करता है।

आध्यात्मिक मंत्रों का जप करने से पहले आपको उपयुक्त गुरु की मार्गदर्शन और सलाह प्राप्त करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह मंत्र सिर्फ आध्यात्मिक उद्देश्यों के लिए होता है और इसका नियमित जप आपके आत्मिक सामर्थ्य को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।

 

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Hare Krishna Mantra: हरे कृष्ण मंत्र | Kirtan Lyrics Hindi

हरे कृष्ण मंत्र (Hare Krishna Mantra) आध्यात्मिकता का सबसे मधुर और आनंदमयी रास्ता होता है भगवान के नाम की जपन की ओर भगवान श्रीकृष्ण की अनंत दिव्यता और अपार प्रेम का प्रतीक है। यह मंत्र विश्वभर में लाखों भक्तों के द्वारा चंदन और तुलसी की माला में मंत्र जाप की जाती है और इसका श्रवण भक्तों को शांति, सुख, और आत्मा के मेल का अनुभव कराता है।

 

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Hare Krishna Mantra का महत्व

हरे कृष्ण मंत्र का महत्व वेदों में उल्लिखित है और यह कहा गया है कि इस मंत्र का जप करने से आत्मा का उद्धारण होता है और मानव जीवन को आनंदित बनाने में सहायक होता है। यह मंत्र चेतना को शुद्ध करके नेगेटिविटी को दूर करने में मदद करता है और आत्मा को शांति और समृद्धि की ओर ले जाता है।

 

Hare Rama Hare Krishna

Om Krishnaya Namah is a simple and powerful invocation to Lord Krishna. Chanting hare krishna mantra with devotion can bring a sense of peace, positivity, and alignment with the spiritual essence of Krishna.

 

Krishna Mantra for Love

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्दाय गोपीजन वल्लभाय स्वाहा॥

This mantra is effective for requesting Lord Krishna’s blessings and heavenly love. It is thought to facilitate the attraction of love, peaceful relationships, and the development of a strong bond with Krishna’s immeasurable love. By reciting this mantra with devotion and sincerity which one can increase the vibrations of love in their life and experience happiness and fulfilment.

 

हरे कृष्ण मंत्र

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।

यह मंत्र भगवान श्री कृष्ण के महानतम गुणों की स्तुति और समर्पण का प्रतीक है। इस मंत्र की जपन से हम उनके दिव्य स्वरूप के साथ जुड़कर उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। यह एक शांति पूर्ण और आत्मा को उन्नति दिलाने वाला मंत्र है जो हमें भगवान के प्रेम और सत्य की ओर मार्गदर्शन करता है।

 

Krishna Gayatri Mantra for Love

ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्णः प्रचोदयात्॥

This is the Krishna Gayatri Mantra for invoking the divine love and blessings of Lord Krishna:

“ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्णः प्रचोदयात्॥”

Chanting this mantra with sincerity and devotion can help you connect with the love and grace of Lord Krishna, inviting his blessings for love, harmony, and a deeper spiritual connection.

 

Shri Krishna Mantra की शक्ति

यह मंत्र का जप करने से मानव मन का अंतरात्मा सुख और शांति से परिपूर्ण हो जाता है। यह मंत्र मन की विचारशक्ति को बढ़ावा देता है और आत्मा के उत्कर्ष की दिशा में मार्गदर्शन करता है। भक्ति और आदर्श जीवन जीने के लिए भगवान के नाम की अद्वितीय शक्ति का अनुभव किया जा सकता है।

भगवान की प्रेम भाषा

हरे कृष्ण मंत्र (Hare Krishna Mantra) भगवान की अपार प्रेमभाषा है जिससे उनका प्रेम और आदर्श मानव जीवन में गहरी पहुंचता है। यह मंत्र जीवन को सरलता और सहजता से जीने की राह दिखाता है और व्यक्ति को आत्मा की महत्वपूर्णता का अनुभव कराता है।

 

कृष्ण मंत्र फॉर लव

“कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने। प्रणतक्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नमः॥”

यह मंत्र भगवान कृष्ण के प्रेम और आनंद की शक्ति को आह्वानित करने के लिए है। इस मंत्र की जपन से आप प्रेम, संवाद, और संगीत की ओर अपने जीवन को मोड़ सकते हैं और आपके जीवन में एक नया दिमाग पैदा कर सकते हैं। इस मंत्र का नियमित जपन आपके मनोबल को बढ़ावा देता है और प्रेम के नाम पर एक नयी दिशा में आपको आग्रहित करता है।

आत्मा की मोक्षमार्गी

यह मंत्र का जप करने से आत्मा का मोक्षमार्ग में प्रगति होती है। यह जीवन को अनंत ज्ञान, प्रेम, और समृद्धि की ओर ले जाता है और व्यक्ति को भगवान के अद्वितीय रूप की अनुभूति होती है।

हरे कृष्ण मंत्र (Hare Krishna Mantra) एक दिव्यता से भरपूर और आनंदमयी राह है जो आत्मा को उच्चतम प्रेम, शांति, और आत्मज्ञान की ओर ले जाती है। इस मंत्र की जपन से मन की शुद्धि होती है और जीवन में आत्मा की उन्नति की दिशा में मार्गदर्शन होता है। यह भगवान की अपार प्रेम और आनंद की अनुभूति कराता है, जिससे जीवन सुंदर और सतत बनता है।

 

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Ganpati Mantra: Ganesh Mantra Lyrics Hindi | गणेश मंत्र

  • गणेश मंत्र (Ganpati Mantra, Ganesh Mantra Lyrics Hindi) हिंदू धर्म में भगवान गणेश को विघ्नहर्ता, बुद्धिदाता और सर्वशक्तिमान के रूप में पूजा जाता है। उनकी आराधना का विशेष महत्व है जो भक्तों को सफलता और समृद्धि के मार्ग पर प्रेरित करता है। गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi), भद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को आयोजित होने वाले विशेष त्योहार में भक्त गणेश को विशेष मंत्रों के द्वारा स्तुति करते हैं। हम गणेश मंत्रों के महत्व, प्रयोग और लाभों के बारे में जानेंगे।

 

 

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गणेश मंत्रों (Ganesh Mantra) का महत्व:

  • Ganpati Mantra का महत्वपूर्ण स्थान हिंदू धर्म में है। ये मंत्र विभिन्न गुणों और विशेषताओं का प्रतीक होते हैं, जो भगवान गणेश की प्रतिमा को प्रकट करते हैं और उनकी कृपा को प्राप्त करने के लिए एक माध्यम होते हैं। ये मंत्र भक्तों के जीवन में सफलता, शक्ति, और सुख को आत्मसात करते हैं। गणेश मंत्रों के जाप से भक्त का मन शांत होता है और उसे सकारात्मक दिशा में प्रेरित करता है।

 

 

गणेश मंत्रों (Ganpati Mantra) के प्रकार 

Hindi Ganesh Mantra 

 

  • “ॐ गण गणपतये नमः (Om Gan Ganapataye Namah)”
    यह मंत्र भगवान गणेश का सर्वांगी स्वरूप को प्रकट करता है। इस मंत्र का जाप करने से भक्त के मन में गणेश की प्रतिमा स्थापित होती है और उनकी कृपा भक्त पर बनी रहती है।
  • “वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
    निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥” (Vakratunda Mahakaya Suryakoti Samaprabha।
    Nirvighnam Kuru Me Deva Sarvakaryeshu Sarvada॥)
    यह मंत्र गणेश को विघ्नहर्ता, यानी विघ्नों को हरने वाले के रूप में स्तुति करता है। भक्त इस मंत्र का जाप करके सभी कार्यों में विघ्नों से मुक्त होता है और सफलता की प्राप्ति में समर्थ होता है।
  • “विघ्नेश्वराय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि।
    तन्नो दन्ति प्रचोदयात्॥” (Vighneshvaraya Vidmahe Vakratundaya Dhimahi।
    Tanno Danti Prachodayat॥)
    यह मंत्र भगवान गणेश के विकर्महर्ता रूप को स्तुति करता है। इस मंत्र के जाप से भक्त का मन नियमित और विनीत बनता है और विघ्नों से मुक्ति प्राप्त होती है।
  • ॐ एकदन्ताय विद्धमहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ति प्रचोदयात् .
  • ॐ लम्बोदराय नमः .
  • ऊँ श्री गणेशाय नम: .
  • ऊँ नमो भगवते गजाननाय .
  • ॐ नमो सिद्धि विनायकाय सर्व कार्य कर्त्रे सर्व विघ्न प्रशमनाय सर्व राज्य वश्यकरणाय सर्वजन सर्वस्त्री पुरुष आकर्षणाय श्रीं ॐ स्वाहा ॥
  • ऊँ हीं श्रीं क्लीं गौं ग: श्रीन्महागणधिपतये नम:। ऊँ ।
  • हीं श्रीं क्लीं गौं वरमूर्र्तये नम: ।
  • हीं श्रीं क्लीं नमो भगवते गजाननाय ।
  • ॐ सुमुखाय नमः
  • ॐ गजकर्णकाय नमः
  • ॐ विनायकाय नमः
  • ॐ गणेश ऋणं छिन्धि वरेण्यं हुं नमः फट्॥

 

 

 

गणेश मंत्रों के लाभ | Ganesh Mantra Benefits

  • Ganpati Mantra का नियमित जाप करने से भक्त का मन शांत होता है और उसकी भक्ति में स्थिरता आती है।
  • Ganesh Mantra lyrics Hindi के जाप से भक्त के दिल में भगवान गणेश के प्रति श्रद्धा बढ़ती है और उसे उनसे संबंधित सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
  • गणेश मंत्रों के जाप से भक्त के जीवन में सभी प्रकार के विघ्न और बाधाएं दूर होती हैं और उसे सफलता के मार्ग पर प्रगति होती है।
  • गणेश मंत्रों के जाप से भक्त का आत्मविश्वास बढ़ता है और उसके मन में सकारात्मक भावनाएं उत्पन्न होती हैं।
  • गणेश मंत्रों के जाप से भक्त को बुद्धि, विवेक, और धैर्य की प्राप्ति होती है और उसके जीवन में सुख-शांति का आनंद मिलता है।

 

 

  • Ganpati Mantra lyrics Hindi का जाप भगवान गणेश की आराधना में एक महत्वपूर्ण और शक्तिशाली उपाय है। ये मंत्र भक्तों को सफलता, समृद्धि, और आनंद की प्राप्ति में मदद करते हैं और उन्हें दुर्भाग्य और अशुभ स्थितियों से मुक्ति प्रदान करते हैं। गणेश मंत्रों का नियमित जाप करने से भक्त भगवान गणेश के साथ अपने जीवन की हर कठिनाई का सामना करता है और उसे विजयी बनाने की कला का अनुभव करता है। इसलिए, आइए हम Ganesh Mantra lyrics Hindi के जाप से अपने जीवन को समृद्ध, सकारात्मक, और सम्पन्न बनाने के लिए संकल्पित हों और भगवान गणेश की कृपा को प्राप्त करें।

 

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Anuradha Paudwal Ganesh Aarti: गणेश जी की आरती Lyrics & PDF

गणेश जी की आरती अनुराधा पौडवाल द्वारा गाया गया है। अनुराधा पौडवाल एक प्रमुख हस्ती के रूप में खड़ी हैं जिनकी भावपूर्ण प्रस्तुतियों ने लाखों लोगों के दिलों को छू लिया है। उनके सबसे पसंदीदा और श्रद्धेय कार्यों में से एक गणेश जी की आरती Lyrics, PDF Hindi है, जो हाथी के सिर वाले देवता भगवान गणेश को समर्पित एक भजन है, जो ज्ञान, समृद्धि और बाधाओं को दूर करने वाले का प्रतीक है। गणेश जी की आरती Lyrics & PDF मंत्रमुग्ध कर देने वाले गायन के माध्यम से, अनुराधा पौडवाल (Anuradha Paudwal Ganesh Aarti) ने भक्ति और आध्यात्मिकता के सार को पकड़ लिया है, जिससे गणेश जी की आरती हिंदी में हिंदू अनुष्ठानों और उत्सवों का एक अनिवार्य हिस्सा बन गई है।

 

 

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गणेश जी की आरती भगवान गणेश के फोटो प्रति श्रद्धा और आराधना की हार्दिक अभिव्यक्ति है। इसका जप त्योहारों, धार्मिक समारोहों और दैनिक पूजा सहित विभिन्न शुभ अवसरों पर किया जाता है। Anuradha Paudwal Ganesh Aarti,  गणेश जी की आरती Lyrics & PDF आम तौर पर भक्ति और कृतज्ञता के साथ भजन गाते हुए देवता के सामने एक जलता हुआ दीपक या कपूर लहराकर की जाती है। जैसे ही भक्त मधुर छंदों में डूब जाते हैं, वे भगवान गणेश के आशीर्वाद और सुरक्षा के साथ-साथ अपने रास्ते में आने वाली किसी भी बाधा को दूर करने की कामना करते हैं।

 

 

 

Anuradha Paudwal Ganesh Aarti

गणेश जी की आरती Lyrics & PDF Hindi

 

 

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

एकदन्त दयावन्त चारभुजाधारी
एकदन्त दयावन्त चारभुजाधारी
मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी।
मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी।।

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा
पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा
लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा॥
लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा॥

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

अँधे को आँख देत कोढ़िन को काया
अँधे को आँख देत कोढ़िन को काया
बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया।
बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया।

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

‘सूर’ श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा
‘सूर’ श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा
भक्तजन तोरे शरण कृपा राखो देवा
भक्तजन तोरे शरण कृपा राखो देवा

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥

 

अनुराधा पौडवाल की श्री गणेश जी की आरती की प्रस्तुति दिव्यता से कम नहीं है। अपनी भावपूर्ण और मनमोहक आवाज के साथ, वह प्रत्येक शब्द को वास्तविक भावना और आध्यात्मिकता से भर देती है, जिससे एक अलौकिक वातावरण बनता है जो श्रोताओं को पसंद आता है। शास्त्रीय संगीत तत्वों को समकालीन शैलियों के साथ मिश्रित करने की उनकी अद्वितीय क्षमता पारंपरिक आरती में एक मंत्रमुग्ध कर देने वाला स्पर्श जोड़ती है, जिससे यह जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों के लिए सुलभ और मंत्रमुग्ध हो जाती है।

 

अपने प्रस्तुतिकरण के माध्यम से, अनुराधा पौडवाल अपने दर्शकों में भक्ति और शांति की भावना पैदा करती हैं। जिस तरह से वह प्रत्येक शब्दांश को स्पष्ट करती है और आरती को हार्दिक भावनाओं से भर देती है, वह इसे एक गहरा और ध्यानपूर्ण अनुभव बनाता है। उनकी सुरीली आवाज में भक्ति का रस है, जो श्रोताओं के दिलों को मंत्रमुग्ध कर देती है और परमात्मा के साथ संबंध बनाती है।

 

अनुराधा पौडवाल की गणेश आरती (Anuradha Paudwal Ganesh Aarti) ने दुनिया भर के अनगिनत भक्तों के दिलों पर अमिट प्रभाव छोड़ा है। उनकी प्रस्तुति गणेश चतुर्थी (ganesh chaturthi) समारोह का एक अभिन्न अंग बन गई है, जहां घरों और मंदिरों में आरती अत्यधिक उत्साह और भक्ति के साथ की जाती है। बहुत से लोग उनकी प्रस्तुति में सांत्वना और शक्ति पाते हैं, जीवन की चुनौतियों से उबरने और अपने प्रयासों में सफलता पाने के लिए भगवान गणेश का आशीर्वाद मांगते हैं।

 

अनुराधा पौडवाल की गणेश जी की आरती Lyrics, PDF Hindi की प्रस्तुति, आत्माओं के उत्थान, भक्ति को प्रेरित करने और परमात्मा के साथ गहरा संबंध बनाने के लिए भक्ति संगीत की शक्ति का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। अपनी अद्वितीय गायन क्षमता के माध्यम से, उन्होंने इस कालजयी भजन में नई जान फूंक दी है, जिससे यह आध्यात्मिक उत्सवों और अनुष्ठानों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। चूँकि उनकी आवाज़ भक्तों के दिलों में गूंजती रहती है, अनुराधा पौडवाल की गणेश आरती भगवान गणेश के लिए एक शाश्वत भजन बनी हुई है, जो हमें उनकी याद दिलाती है।

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Ganesh Chalisa Lyrics & PDF in Hindi | गणेश चालीसा

Complete Ganesh Chalisa lyrics and PDF in Hindi for Devotional

 

  • हिंदू धर्म के प्रमुख देवी-देवता में भगवान गणेश को विघ्नहर्ता, बुद्धिदाता, संकटकटा हरने वाला और सर्वशक्तिमान के रूप में पूजा जाता है। उनकी आराधना और स्तुति का विशेष महत्व है जो भक्तों को सफलता और समृद्धि के मार्ग पर प्रेरित करता है। भगवान गणेश की एक प्रमुख पूजा का नाम है गणेश चालीसा (Ganesh Chalisa lyrics and PDF in Hindi) जिसके माध्यम से उन्हें स्तुति किया जाता है। श्री गणेश चालीसा के महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में जानेंगे और उनके सारे रहस्यों को समझने का प्रयास करेंगे।

 

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Ganesh Chalisa PDF   |   गणेश चालीसा के फायदे 

  • गणेश चालीसा इन हिंदी pdf  भगवान गणेश के गुणों, महिमा और उपास्य रूप को प्रकट करता है। यह चालीसा 40 श्लोकों से मिलकर बनी हुई है, जिसमें प्रत्येक श्लोक में गणेश के एक विशेष गुण का वर्णन किया गया है। गणेश चालीसा के जाप से भक्त के मन में भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित हो जाती है और उनकी कृपा भक्त पर बनी रहती है।

 

 

प्रत्येक श्लोक का महत्व

गणेश चालीसा इन हिंदी के प्रत्येक श्लोक का विशेष महत्व है जो भक्तों को गणेश के भक्तिभाव, शक्ति, और विशेषता के प्रती कटिबद्ध करता है। नीचे कुछ प्रमुख श्लोकों का विवरण है:

  • जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा
    गणेश चालीसा हिंदी में प्रारंभिक पंक्ति से हमें भगवान गणेश के समृद्ध संसार में प्रवेश करवा दिया जाता है। “जय गणेश” की उत्साहभरी गर्जना हमारे मन में नई ऊर्जा भर देती है और हमें विघ्नहीनता के मार्ग पर अग्रसर करती है। गणेश चालीसा के संदेश का यह पहला पद आरंभिक उत्थान के समान है जो हमें सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता है।
  • करि विघ्नहरि विनय सुनि कामदिवा
    यह पंक्ति हमें भगवान गणेश की विशेषता दिखाती है जिन्हें विघ्नहरि, यानी विघ्नों को हरने वाले, कहा गया है। गणेश विद्या, बुद्धि, और समृद्धि के प्रतीक हैं ।
  • तुम संकटरक्षक मंगलकर्ता
    श्री गणेश चालीसा की यह पंक्ति हमें भगवान गणेश के महत्वपूर्ण धार्मिक और सामाजिक कार्यों में उनके साथी होने का संकेत देती है। वे हमारे संकटों का रक्षक हैं और हमें सफलता के मार्ग पर प्रगति करने में मदद करते हैं। इस पंक्ति के जरिए, हम गणेश के साथ जुड़कर अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयासरत रहते हैं।
  • सोन उपद्रव चंद्र निभू कृपाकर्ता
    गणेश चालीसा की यह पंक्ति हमें भगवान गणेश की सुंदरता और आकर्षण का वर्णन करती है। उनके चंद्रनाभि और सोने के उपद्रव (जैसे कान की बाली, मुकुट) उनके दिव्य रूप की प्रशस्ति करते हैं। गणेश की कृपा भक्तों पर विशेष रूप से बरसती है, और उनके दर्शन से हम आनंद और शांति की अनुभूति करते हैं।
  • जय जय जय श्री गणराज विद्यासुखदाता
    गणेश चालीसा की इस पंक्ति में हम भगवान गणेश को “गणराज” और “विद्यासुखदाता” कहकर उनके महत्व का बखान करते हैं। गणेश विद्या के दाता हैं जो अपनी विद्यार्थियों को सफलता की प्राप्ति में संचारित करते हैं। वे गणों के राजा भी हैं जो हमें समृद्धि और समृद्ध समाज की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं।
  • महाबीरवनपति गणेश जगवन्दन
    गणेश चालीसा इन हिंदी की यह पंक्ति हमें भगवान गणेश के महाबीरवनपति रूप की स्तुति करती है, जो वे महावीर, यानी शक्तिशाली और शूरवीर हैं, जो समस्त दुष्टता और विपत्तियों का समानीकरण करते हैं। उनके जगवन्दन रूप के दर्शन से हम अपने स्वयं के सामर्थ्य पर विश्वास करते हैं और दुर्भाग्य का परिहार करते हैं।

Ganesh Chalisa PDF, lyrics in Hindi

 

॥ दोहा ॥
जय गणपति सदगुण सदन,
कविवर बदन कृपाल ।
विघ्न हरण मंगल करण,
जय जय गिरिजालाल ॥

॥ चौपाई ॥
जय जय जय गणपति गणराजू ।
मंगल भरण करण शुभः काजू ॥

जै गजबदन सदन सुखदाता ।
विश्व विनायका बुद्धि विधाता ॥

वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना ।
तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ॥

राजत मणि मुक्तन उर माला ।
स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ॥

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं ।
मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥

सुन्दर पीताम्बर तन साजित ।
चरण पादुका मुनि मन राजित ॥

धनि शिव सुवन षडानन भ्राता ।
गौरी लालन विश्व-विख्याता ॥

ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे ।
मुषक वाहन सोहत द्वारे ॥

कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी ।
अति शुची पावन मंगलकारी ॥

एक समय गिरिराज कुमारी ।
पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी ॥ 10 ॥

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा ।
तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा ॥

अतिथि जानी के गौरी सुखारी ।
बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥

अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा ।
मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥

मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला ।
बिना गर्भ धारण यहि काला ॥

गणनायक गुण ज्ञान निधाना ।
पूजित प्रथम रूप भगवाना ॥

अस कही अन्तर्धान रूप हवै ।
पालना पर बालक स्वरूप हवै ॥

बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना ।
लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना ॥

सकल मगन, सुखमंगल गावहिं ।
नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥

शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं ।
सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥

लखि अति आनन्द मंगल साजा ।
देखन भी आये शनि राजा ॥ 20 ॥

निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं ।
बालक, देखन चाहत नाहीं ॥

गिरिजा कछु मन भेद बढायो ।
उत्सव मोर, न शनि तुही भायो ॥

कहत लगे शनि, मन सकुचाई ।
का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥

नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ ।
शनि सों बालक देखन कहयऊ ॥

पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा ।
बालक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥

गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी ।
सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी ॥

हाहाकार मच्यौ कैलाशा ।
शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा ॥

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो ।
काटी चक्र सो गज सिर लाये ॥

बालक के धड़ ऊपर धारयो ।
प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥

नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे ।
प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे ॥ 30 ॥

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा ।
पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥

चले षडानन, भरमि भुलाई ।
रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई ॥

चरण मातु-पितु के धर लीन्हें ।
तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥

धनि गणेश कही शिव हिये हरषे ।
नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे ॥

तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई ।
शेष सहसमुख सके न गाई ॥

मैं मतिहीन मलीन दुखारी ।
करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥

भजत रामसुन्दर प्रभुदासा ।
जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ॥

अब प्रभु दया दीना पर कीजै ।
अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै ॥ 38 ॥

॥ दोहा ॥
श्री गणेश यह चालीसा,
पाठ करै कर ध्यान ।
नित नव मंगल गृह बसै,
लहे जगत सन्मान ॥

सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश,
ऋषि पंचमी दिनेश ।
पूरण चालीसा भयो,
मंगल मूर्ती गणेश ॥

 

 

गणेश चालीसा के जाप का महत्व

  • गणेश चालीसा (Ganesh Chalisa) का जाप भक्तों को मानसिक और आध्यात्मिक स्थिति में स्थिरता प्रदान करता है और उन्हें विभिन्न कष्टों से मुक्ति दिलाता है। गणेश चालीसा के जाप से भक्त के मन में भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित हो जाती है और उनकी कृपा भक्त पर बनी रहती है।

 

  • श्री गणेश चालीसा भगवान गणेश के विशेष भक्ति और प्रसन्नता के लिए एक शक्तिशाली श्रद्धा का प्रतीक है। इसमें गणेश के गुणों, विशेषताओं, और सर्वशक्तिमान स्वरूप का विवेचन है जो हमें सफलता, सुख, और समृद्धि के मार्ग पर प्रेरित करता है। गणेश चालीसा के जाप से हमारे मन की शांति होती है और हम अपने जीवन को सकारात्मकता और धार्मिकता के मार्ग पर चलते हैं। भगवान गणेश चालीसा इन हिंदी pdf का नियमित जाप करने से हम अपने कष्टों से मुक्ति प्राप्त करते हैं और उनकी कृपा से हमें सभी परिस्थितियों में सफलता और आनंद का आनंद अनुभव करने में मदद मिलती है।

 

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Om Jai Jagdish Hare Aarti: Vishnu Ji Ki Aarti Lyrics Hindi

  • विष्णु आरती एक ऐसा प्राचीन आध्यात्मिक रीति-रिवाज है जो भक्तों के दिलों में अद्भुत उत्साह और आनंद उत्पन्न करती है। भारतीय संस्कृति में Om Jai Jagdish Hare Aarti भक्ति का महत्व अविरल रहा है और भगवान विष्णु (Vishnu ji ki aarti) के आराधना भाव में विशेष आदर्श है। विष्णु आरती के रहस्यमयी विश्व को विस्तार से देखेंगे और इस महान आचार की महत्वपूर्णता और अनूठी शक्ति का पता लगाएंगे।

 

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Om Jai Jagdish Hare Aarti: परिचय और महत्व

  • भगवान विष्णु को समर्पित एक प्रकार की पूजा-अर्चना है जिसमें विशेष मानसिक समर्पण और भक्ति व्यक्त की जाती है। इस आरती का पाठ भगवान विष्णु की स्तुति करने और उनसे दिव्य आशीर्वाद मांगने का एक आदर्श रूप है। विष्णु आरती एक प्रसिद्ध धार्मिक आचार है जिसे लाखों भक्तों द्वारा प्रतिदिन पाठ किया जाता है।

 

 

विष्णु आरती के पाठ का महत्व

Benefits of Vishnu Ji Ki Aarti lyrics

 

  • विष्णु आरती (Om Jai Jagdish Hare Aarti, Vishnu ji ki Aarti) का पाठ करने से व्यक्ति को अनेक धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ होते हैं। इसके अभियान के तहत व्यक्ति का मन शांत होता है और वह भगवान विष्णु के दिव्य चरणों में अपनी पूर्ण समर्पण की भावना का अनुभव करता है।
  • दिव्य आशीर्वाद –  इस का नियमित पाठ भगवान विष्णु के दिव्य आशीर्वाद को आमंत्रित करता है। इसे पढ़ने से भगवान विष्णु अपने भक्तों को अपने अनंत कृपा से आभूषित करते हैं और उनकी समस्त व्यथाओं को हल करते हैं।
  • आंतरिक शांति – इसके पाठ से व्यक्ति का मन शांत, धीर, और स्थिर होता है। इससे व्यक्ति के आंतरिक तनाव, चिंताएं और संशय समाप्त होते हैं और वह आंतरिक शांति का अनुभव करता है।
  • भय और नकारात्मकता का नाश – इस के पाठ से भय और नकारात्मकता का नाश होता है। इसके पाठ से व्यक्ति को समस्त भय और नकारात्मक विचारों से मुक्ति मिलती है और वह जीवन में आत्मविश्वास के साथ काम कर सकता है।
  • धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति – इस के पाठ से व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास होता है। इसके पाठ से व्यक्ति की धार्मिक और मानसिक संवृद्धि होती है और वह जीवन में सच्चे और नेक कार्यों में लग जाता है।
  • समृद्धि का साधन – इसके पाठ से व्यक्ति को समृद्धि के मार्ग पर चलने का साधन मिलता है। इसके पाठ से व्यक्ति का व्यावसायिक एवं आर्थिक विकास होता है और उसे आर्थिक समृद्धि की प्राप्ति होती है।

 

Om Jai Jagdish Hare Aarti Lyrics

 

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे
भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट
क्षण में दूर करे, ॐ जय जगदीश हरे

जो ध्यावे फल पावे, दुःखबिन से मन का
स्वामी दुःखबिन से मन का, सुख सम्पति घर आवे
सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का
ॐ जय जगदीश हरे

 

 

मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी
स्वामी शरण गहूं मैं किसकी
तुम बिन और न दूजा, तुम बिन और न दूजा
आस करूं मैं जिसकी, ॐ जय जगदीश हरे

तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी, स्वामी तुम अन्तर्यामी
पारब्रह्म परमेश्वर, पारब्रह्म परमेश्वर
तुम सब के स्वामी, ॐ जय जगदीश हरे

तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता, स्वामी तुम पालनकर्ता
मैं मूरख फलकामी, मैं सेवक तुम स्वामी
कृपा करो भर्ता, ॐ जय जगदीश हरे

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति, स्वामी सबके प्राणपति
किस विधि मिलूं दयामय, किस विधि मिलूं दयामय
तुमको मैं कुमति, ॐ जय जगदीश हरे

 

 

दीन-बन्धु दुःख-हर्ता, ठाकुर तुम मेरे, स्वामी रक्षक तुम मेरे
अपने हाथ उठाओ, अपने शरण लगाओ
द्वार पड़ा तेरे, ॐ जय जगदीश हरे

विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा, स्वामी पाप हरो देवा
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ
सन्तन की सेवा, ॐ जय जगदीश हरे

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे
भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट
क्षण में दूर करे, ॐ जय जगदीश हरे

 

 

  • विष्णु भगवान की आरती pdf (Om Jai Jagdish Hare Aarti with lyrics) हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण धार्मिक आचार है, जिसे भगवान विष्णु की भक्ति और आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए प्रतिदिन किया जाता है। विष्णु आरती के पाठ से व्यक्ति को आंतरिक शांति, दिव्य आशीर्वाद, और आध्यात्मिक उन्नति होती है। इस महान आचार की शक्ति को व्यक्ति के जीवन में अपनाकर उसे आध्यात्मिक समृद्धि और शांति की प्राप्ति होती है।
  • विष्णु आरती एक पवित्र आचार है, इसे श्रद्धा और भक्ति से पढ़ना चाहिए।

 

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